आर्थिक सुधार कार्यक्रम पर मजदूर-मेहनतकशों के विचार

मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की हिमायत करने वाले अखबार और संगठन बतौर, हम मेहनतकशों के नेताओं से यह सवाल कर रहे हैं कि 20 वर्ष पहले शुरू किये गये सुधारों के परिणामों के बारे में हिन्दोस्तान के मेहनतकशों का क्या विचार हैं। क्या उन सुधारों से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को फायदा हुआ है या नुकसान?

मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की हिमायत करने वाले अखबार और संगठन बतौर, हम मेहनतकशों के नेताओं से यह सवाल कर रहे हैं कि 20 वर्ष पहले शुरू किये गये सुधारों के परिणामों के बारे में हिन्दोस्तान के मेहनतकशों का क्या विचार हैं। क्या उन सुधारों से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को फायदा हुआ है या नुकसान? 16-31 अक्तूबर के अंक में हमने हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव, कामरेड लाल सिंह से साक्षात्कार के साथ इस श्रृंखला की शुरुआत की थी। 1-15 नवम्बर के अंक में हमने अर्थव्यवस्था के बैंक, पोर्ट और लोको पाइलेट यूनियनों के नेताओं के साक्षात्कार प्रकाशित किये थे। 16-30 नवम्बर के अंक में इंशोरेन्स, पश्चिम तथा मध्य रेलवे मोटरमैन्स एसोसिएशन, सेंट्रल रेलवे मोटरमैन्स एसोसिएशन, पोस्टल इम्प्लॉइज तथा थाने जिले के एक टे्रड यूनियन नेता का साक्षत्कार छापा। इस अंक में अर्थव्यवस्था के कुछ और क्षेत्रों के मजदूर-मेहनतकशों के नेताओं से साक्षात्कार प्रकाशित कर रहे हैं।

ई. सरावणा मुथुवेल, जिला सचिव, तामिलगा विवसायीगल संगम, तूतुकोडी के साथ साक्षात्कार

म.ए.ल. : बीते 20वर्षों के नीतिगत सुधारों का क्या परिणाम हुआ है?

स.मु. : हमारे जिले में 3 तालुक हैं जो सूखाग्रस्त इलाके हैं – कोविलपट्टी, विलथिकुलमे और ओट्टपिडरम। इन इलाकों में बीते 20 वर्षों में कोई आर्थिक प्रगति नहीं हुई है। छोटे और मंझले किसानों को सहकारी बैकों या राष्ट्रीकृत व्यवसायिक बैकों से कोई उधार नहीं मिल सका है। ये इलाके वर्षा पर निर्भर हैं और यहां 3-4 महीनों में ही फसल उगाना मुमकिन है। अधिकतम किसानों ने सूखी भूमि पर फसल उगाना बंद कर दिया है। सिर्फ वही किसान, जिनके पास पंप सेट हैं, वे ही परिवार के श्रम के सहारे अभी भी फसल उगा रहे हैं। इन इलाकों में किसानों को कोई उधार या सबसिडी या किसी प्रकार का समर्थन नहीं मिला है। बढ़ती संख्या में लोग काम के लिये दूसरे जिलों में जा रहे हैं। कुछ समृध्द किसान भी किरायेदारों को भूमि दिये हैं और उनसे किराया वसूल रहे हैं। किसानों को कोई खाद्य सुरक्षा नहीं है। बैलों और गायों की संख्या घट गयी है। मवेशी को खिलाना इतना महंगा हो गया है कि अब लोग मवेशी भी नहीं पाल सकते। पचास वर्ष से ज्यादा उम्र के किसान बकरियां पालकर गुजारा कर रहे हैं, क्योंकि बकरियां शहरों में ऊंचे दाम पर बिकती हैं।

म.ए.ल. : इन इलाकों में किस प्रकार की भूमि की बिक्री-खरीदी होती रही है?

स.मु. : पहले गांववासियों के आपस में ही भूमि की बिक्री-खरीदी होती थी। अब बाहर के पूंजीपति भूमि खरीदना चाहते हैं, इसलिये भूमि की कीमत इतनी बढ़ गयी है कि कोई किसान भूमि नहीं खरीद पा रहा है। बहुत से किसान फरेबी सौदों में अपनी भूमि खो बैठे हैं और उन्हें यह पता भी नहीं चला है। जिनके पास पूंजी है, वे इस भूमि को खरीदते हैं, अपनी दौलत को जमा करने के लिये, बैंक से उधार लेने के लिये या इन्हें आवास क्षेत्रों में बदलने के लिये। हमारे संगठन सहित अनेक किसान संगठनों ने यह मांग रखी है कि कृषि भूमि का किसी और काम के लिये इस्तेमाल नहीं होना चाहिये, परन्तु राज्य सरकार ने इस पर रोक लगाने वाला कोई कदम नहीं उठाया है।

म.ए.ल. : विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिये क्या कोई भूमि अधिग्रहण किया गया है?

स.मु. : हां, विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिये कृषि भूमि का अधिग्रहण किया गया है। किसानों के बेटों को नौकरी दिलाने का वादा किया गया। पर वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। किसानों और उनके बच्चों को माली या सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी भी नहीं दी जा रही है। स्थानीय पंचायत नेताओं और विधायकों पर ''दबाव'' डाला जा रहा है कि भूमि अधिग्रहण की इजाज़त दें। एक आई.टी. कंपनी, एलकॉट के मामले में पंचायत यूनियन की इजाज़त के बिना भूमि अधिग्रहण किया गया था। इस पर शिकायत दर्ज करते हुये, जिला कलेक्टर को एक पत्र भेजा गया था। शिकायतकर्ता को रात्रि भोज पर बुलाया गया और ज़हर खिलाकर मार दिया गया।

म.ए.ल. : बिजली की सप्लाई की क्या स्थिति है? क्या नि:शुल्क बिजली मिलती है।

स.मु. : प्रतिदिन 12 घंटे नि:शुल्क बिजली मिलनी चाहिये। पर वास्तव में, सप्लाई अनिश्चित है, कम घंटों के लिये मिलती है और इसके बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं दी जाती। इसकी वजह से, किसी को दिन-रात खेत पर इंतज़ार करना पड़ता है ताकि जब-जब बिजली आये, तब-तब पंप चलाया जा सके। सिर्फ 3-4घंटे लगातार बिजली मिलती है। जिनके पास पंप सेट है, उन पर यह एक अतिरिक्त बोझ है। बीते दस वर्षों में कोई नया कनेक्शन नहीं लगाया गया है। इस वजह से किसानों को डीज़ल पर चलने वाले पंप सेट इस्तेमाल करने पड़ रहे हैं, जिससे खर्चा बढ़ जाता है।

म.ए.ल. : उर्वरक की सप्लाई के बारे में बताएं?

स.मु. : पहले किसानों को उर्वरक की सीधी सप्लाई मिलाती थी परन्तु अब प्रत्येक किसान को अपने-अपने ब्लाक (विकास) या तालुक के सहायक कृषि निदेशक द्वारा हस्ताक्षरित चिट्ठी लेनी पड़ती है। इस वजह से किसानों को जब जरूरत होती है तो तब सप्लाई नहीं मिलती।

म.ए.ल. : किसानों के उत्पादों के लिये क्या कोई सरकारी समर्थन मूल्य है?

स.मु. : सरकार सिर्फ धान खरीदती है और वह भी सिर्फ सिंचाई वाले क्षेत्रों से। सरकार सिर्फ ऊंचे क्वालिटी का धान ही खरीदती है। किसान ज्यादातर निजी बाज़ार में अपना उत्पाद बेचते हैं, जहां कोई राजकीय नियंत्रण नहीं होता। निजी व्यापारी फौरन पैसे दे देते हैं, जबकि सरकारी संस्थान से पैसा मिलने में किसानों को तीन दिन इंतजार करना पड़ता है। सूखी मिर्च और कपास के लिये सहकारी विभाग के तहत सरकार नियंत्रित बाज़ार हैं। परन्तु हमें पूरा पैसा एक साथ नहीं मिलता। अगर मैं 10कुंतल बेचता हूं तो मुझे सिर्फ 7कुंतल का पैसा मिलता है और 15दिन बाद आकर बाकी पैसा लेने को कहा जाता है। कपास को पहले देकर आना पड़ता है, फिर क्वालिटी कंट्रोल अफसर आकर उसका मूल्यांकन करके उसकी कीमत तय करता है। किसानों को बहुत देर तक इंतजार करना पड़ता है।

म.ए.ल. : पानी की सप्लाई में क्या कोई उन्नति हुई?

स.मु. : कुछ पूंजीवादी कंपनियों, जैसे कि स्पिक फरटिलाइज़र, थरमल पावर प्लांट, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, आदि द्वारा गहरे बोर वेल खोद गये हैं। इन कंपनियों को पानी के टैंकर सप्लाई करने की इजाज़त दी गई है। इसकी वजह से भूमिगत जल स्तर और नीचे हो गया है और अधिकतम किसानों के लिये पानी निकालना ज्यादा कठिन हो गया है। यह राज्य द्वारा आयोजित जल दोहन है। गांव के कुएं में भी पानी नहीं होता है।

कई गांवों की एक संयुक्त तथाकथित जल सप्लाई योजना है परन्तु राजकीय संस्थान जरूरी क्वालिटी का पानी नहीं सप्लाई करता है। अगर एक सड़क पर पानी मिलता है तो दूसरी सड़क पर नहीं मिलता, गांव में 10 दिन में सिर्फ एक बार पानी आता है। लोगों को अपने खर्च पर बोर वेल खोदना पड़ता है। राज्य सरकार ने किसान मालिकों से सलाह किये बिना या उन्हें सूचित किये बिना, स्मॉल इंडस्ट्रीज़ करपोरेशन (सिडको) को बंजर भूमि दे दिया है। किसानों के सामूहिक संघर्ष की वजह से अब इसे कुछ समय के लिये रोका गया है।

म.ए.ल. : शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की क्या दशा है?

स.मु. : गांव के स्कूलों में शिक्षा की क्वालिटी में कोई उन्नति नहीं हुई है। 10 गांवां के लोगों के लिये सिर्फ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पी.एच.सी.) है। अधिकतम लोगों के लिये पी.एच.सी. बहुत दूर पड़ता है। बहुत सी महिलायें पी.एच.सी. पहुंचने से पहले, टैक्सी या रिक्शा में ही बच्चे को जन्म दे चुकी हैं। सांप काटने पर इसका कोई इलाज नहीं होता है क्योंकि हमेशा दवाइयों की कमी होती है।

म.ए.ल. : पूरी हालत का आप कैसे वर्णन करेंगे?

स.मु. : पूरे तौर पर देखा जाये तो किसानों ने अपनी आर्थिक आज़ादी, अपनी रोजी-रोटी, अपनी ज़मीन, गांव का सामूहिक जीवन और संस्कृति खोयी है। सबके मन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब गांव छोड़कर कहां जाना चाहिये। अब गांव में सिर्फ बुजुर्ग लोग ही रह गये हैं।  

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