मारूती-सुजुकी के मजदूर विरोधी प्रचार अभियान की निंदा करें!

मारूती-सुजुकी के मानेसर प्लांट में तीसरी हड़ताल के समाप्त होने के बाद प्रबंधन ने प्लांट के मजदूरों और संपूर्ण मजदूर वर्ग पर जलील हमला किया है। 2 निलंबित नेताओं को धमकी देकर अपनी नौकरियों से इस्तीफा देने को मजबूर करके, प्रबंधन ने इजारेदार पूंजीपतियों की मीडिया के जरिये, इन दोनों नेताओं को पैसे से ''खरीदने'' की अफवाहें फैलायी हैं।

मारूती-सुजुकी के मानेसर प्लांट में तीसरी हड़ताल के समाप्त होने के बाद प्रबंधन ने प्लांट के मजदूरों और संपूर्ण मजदूर वर्ग पर जलील हमला किया है। 2 निलंबित नेताओं को धमकी देकर अपनी नौकरियों से इस्तीफा देने को मजबूर करके, प्रबंधन ने इजारेदार पूंजीपतियों की मीडिया के जरिये, इन दोनों नेताओं को पैसे से ''खरीदने'' की अफवाहें फैलायी हैं।

इस प्रचार का पहला उद्देश्य बाकी मारूती-सुजुकी मजदूरों और अपना यूनियन बनाने के उनके संघर्ष को हतोत्साहित करने। दूसरा, उद्देश्य है संपूर्ण मानेसर-गुड़गांव क्षेत्र के सभी मजदूरों को हतोत्साहित करना जो मारूती-सुजुकी के मजदूरों के साथ भाईचारा दर्शाते हुए बहादुरी से संघर्ष करते आये हैं। पूंजीपतियों के जहरीले प्रचार से मजदूरों को यह संदेश दिया जा रहा है कि ''तुम्हारा संघर्ष कोई मायना नहीं रखता क्योंकि तुम्हारे नेता बिकाऊ हैं।''

मजदूर वर्ग को इस प्रचार का शिकार नहीं बनना चाहिए। सवाल 1-2 नेताओं की भूमिका का नहीं है। सवाल मजदूरों के वर्ग संघर्ष का है। मारूती-सुजुकी के मजदूर अपना यूनियन बनाने के अधिकार के लिए जायज़ संघर्ष कर रहे हैं। उनके साथ भाईचारा दिखाकर हड़तालों में भाग लेने वाले उस क्षेत्र की दूसरी फैक्ट्रियों के मजदूर, 'एक पर हमला सभी पर हमला' मानते हुए, पूरे मजदूर वर्ग के हितों की रक्षा के लिए जायज़ संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी ओर, मारूती-सुजुकी प्रबंधन, हरियाणा सरकार और केन्द्र सरकार ने बलपूर्वक मजदूरों के संघर्ष को कुचलने, मजदूरों को अपना यूनियन बनाने के कानूनी अधिकार से वंचित करने तथा मारूती-सुजुकी के मजदूरों और उस इलाके के सभी मजदूरों को बांटने के लिए तरह-तरह की नीच हरकतें की हैं। सबसे हाल के समझौते के बाद कहा गया था कि निलंबित मजदूरों की जांच की जायेगी, जिसमें श्रम विभाग को भी शामिल किया जायेगा। परंतु इन दोनों भूतपूर्व नेताओं पर खूब दबाव डालकर इन्हें इस्तीफा देने को मजबूर किया गया। यह प्रबंधन और सरकार के मजदूर विरोधी रवैये को दर्शाता है। इसके अलावा मजदूरों को हतोत्साहित करने का अभियान भी चल रहा है।

दोषी मजदूर नहीं, मारूती-सुजुकी प्रबंधन है। मजदूर नेताओं को खरीदने के लिए उसे पैसा कहां से मिला? ट्रेड यूनियनों को भ्रष्टाचार के लिए मारूती-सुजुकी प्रबंधन पर मुकदमा चलाने की मांग करनी चाहिए और श्रम कानूनों का उल्लंघन करने के लिए उसे अदालत में ले जाना चाहिए। मारूती-सुजुकी प्रबंधन के मजदूर-विरोधी जलील प्रचार अभियान का यही सही जवाब होगा।

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