महाराष्ट्र में जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष

महाराष्ट्र सरकार ने ठाणे जिले में 8 बाँध बनाने का निर्णय करीब 7 साल पहले लिया। ये सभी बाँध ठाणे जिले में स्थित हैं। मगर उनका उद्देश्य यह नहीं है कि जिन इलाकों में वे बनाये जायेंगे उन इलाकों की जनता की सुविधा उनसे हो। वे तो बनाये जायेंगे मुंबई, नवी मुंबई तथा ठाणे शहर को पानी की जरूरत पूरी करने के लिये। जिन नदियों पर वे बनाये जायेंगे उन नदियों के इलाकों में दसियों हजार किसान तथा आदिवासी कई पीढ़

महाराष्ट्र सरकार ने ठाणे जिले में 8 बाँध बनाने का निर्णय करीब 7 साल पहले लिया। ये सभी बाँध ठाणे जिले में स्थित हैं। मगर उनका उद्देश्य यह नहीं है कि जिन इलाकों में वे बनाये जायेंगे उन इलाकों की जनता की सुविधा उनसे हो। वे तो बनाये जायेंगे मुंबई, नवी मुंबई तथा ठाणे शहर को पानी की जरूरत पूरी करने के लिये। जिन नदियों पर वे बनाये जायेंगे उन नदियों के इलाकों में दसियों हजार किसान तथा आदिवासी कई पीढ़ियों से वहाँ रहते आये हैं। उन्हें वैसे भी पानी की समस्या सालभर सताती है। बाँध बनने के बाद उनकी समस्या और भी जटिल होगी। इससे पहले भी मुंबई तथा ठाणे शहरों को भातसा, तानसा, वैतरणा आदि बाँधों से पानी दिया जाता है। उन इलाकों में जो लोग विस्थापित हुये थे उन्हें भी सरकार ने उचित मुआवजा नहीं दिया और न ही उनका ठीक से पुनर्वास किया। उन पानी के स्रोतों के पास जो लोग रहते हैं उन्हें वहाँ से पानी नहीं मिलता। 1990 के दशक में ठाणे जिले के विक्रमगढ़ तहसील में सूर्या बाँध बनाया गया था। उसकी वजह से 12 गाँव बाधित हुये थे। उनका अनुभव भी बहुत बुरा है।

इन्हीं बुरे अनुभवों की वजह से शाई, कालू, पिंजार, पोशिर आदि 8 परियोजनाओं का हजारों किसान तथा आदिवासी कड़ा विरोध कर रहे हैं। शाई बाँध के क्षेत्र में 8 ग्रामसभा हैं। उन सभी ने 2005 से आज तक कई बार शाई परियोजना के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। 12, 13, 14 अक्तूबर को कालू बाँध के क्षेत्र में 12 ग्रामसभाओं ने एकमत से कालू परियोजना के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। इस विरोध के बावजूद, पुलिस तथा गुंडों का इस्तेमाल करके कुछ जगह पर निर्माण कार्य शुरू किया गया है। भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही भी जबरन शुरू की गई है।

जैतापुर के मामले में भी हमने म.ए.ल. में पहले बताया है कि वहाँ की सभी ग्रामसभाओं ने बार-बार जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना का विरोध किया है। मगर सरकार ने जबरन जैतापुर परियोजना का काम शुरू कर दिया है। इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण लोगों को सत्ता में सांझेदार बनाने की सरकार की घोषणा कितनी झूठी है।

सरकार अलग-अलग तरह से अब प्रचार करके यह झूठ प्रस्थापित करने की कोशिश कर रही है कि बाँध योजनाओं का यह मसला, ग्रामीण जनता एवं शहरी जनता, इनके बीच की टक्कर है। सरकार का कहना है कि अगर आप इन बाँध योजनाओं का विरोध करेंगे तो इसका मतलब होगा कि आप शहर वासियों के खिलाफ हैं। सरकार यह जताने की कोशिश कर रही है कि उसे शहर वासियों की बहुत फिक्र है। मगर यह साफ झूठ है। शहर में रहने वाले मजदूर तथा आम जनता को न तो ठीक से पानी मिलता है न ही बिजली। शहर के सभी श्रमिकों को अच्छी तरह पता है कि ये सब योजनाएं सिर्फ निजी मुनाफे कमाने के सरमायदारी उद्देश्य से प्रेरित है। शहर तथा ग्रामीण श्रमिक सभी का हित एक ही है। पानी तथा बिजली की जरूरत दोनों को है। पर्यावरण के संतुलन को कायम रखकर सभी श्रमिकों के हित में योजनाएं बनाना मुमकिन है। मगर उसके लिये आवश्यक है कि राज्यसत्ता मजदूरों-किसानों के हाथों में हो, सरमायदारों के नहीं।

मजदूर एकता लहर की ओर से हम इन परियोजनाओं को जबरन जारी रखने वाली सरकार की भर्त्सना करते हैं और उनका विरोध करने वाले किसान तथा अदिवासियों की हिमायत करते हैं। जब तक अपने देश में मजदूरों-किसानों का राज नहीं आता तब तक मजदूर, किसान तथा आदिवासियों के हित की सुनिश्चिति नहीं हो सकती।

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