का. तलेकर, महासचिव, सेंट्रल रेलवे मोटरमैन्स एसोसिएशन

नई आर्थिक नीतियों की वजह से निजीकरण बढ़ गया है। उदाहरण के तौर पर, रेलवे में टिकट सेवाओं का आउटसोर्सिंग करने की कोशिशेंहो रही हैं। 3 महीने पहले उन्होंने जनता टिकट तथा आरक्षण सेवाएं शुरू की, जिनको निजी सस्थाएं चलाएंगी। ये काम पहले रेलवे स्टाफ से किया जाता था। उनको चरणों-चरणों में निकाला जाएगा। टिकट चेकिंग स्टाफ को भी निकाला जाएगा और यह काम निजी संस्थाओं के हाथों में दिया जाएगा। वी.टी.

नई आर्थिक नीतियों की वजह से निजीकरण बढ़ गया है। उदाहरण के तौर पर, रेलवे में टिकट सेवाओं का आउटसोर्सिंग करने की कोशिशेंहो रही हैं। 3 महीने पहले उन्होंने जनता टिकट तथा आरक्षण सेवाएं शुरू की, जिनको निजी सस्थाएं चलाएंगी। ये काम पहले रेलवे स्टाफ से किया जाता था। उनको चरणों-चरणों में निकाला जाएगा। टिकट चेकिंग स्टाफ को भी निकाला जाएगा और यह काम निजी संस्थाओं के हाथों में दिया जाएगा। वी.टी. स्टेशन में तो अभी भी टिकट बेचने का काम इन संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। रेलवे स्टेशनों का तथा कार शेडों की सफ़ाई का पूरा काम निजी ठेकेदारों को दिया गया है। चारों महानगरों में यह किया गया है तथा और स्टेशनों में भी किया जाएगा।

मध्य रेल जो सीमेन्स से नई ट्रेन्स खरीदती है, उनका रखरखाव सीमेन्स ही करती है। पहले रेल स्टाफ यह काम करते थे। मुम्बई में मध्य रेल उपनगरी सेवा में 142 में से 85 सीमेन्स की ट्रेन हैं।

सरकार कहती है कि सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिषत वृध्दि है। लेकिन नौकरियां कहां बढ़ रही हैं? क्या मज़दूर मुम्बई में रह सकता है? क्या वह यहां घर खरीद सकता है? एक मोटरमैन की मासिक कमाई 50,000-60,000 रु. के बीच में होती है। सिर्फ़ खा पीकर जीना उसके लिये मुश्किल है। सिर्फ़ 6000 रु. का मासिक वेतन कमाने वाले मज़दूरों का क्या होता होगा?

सब जीवनावश्यक चीज़ों की कीमतें तेज गति से बढ़ रही हैं। आज हमारा वेतन 50,000-60,000 रु. के बीच होता है। 1996 में हमारा मासिक वेतन 4000 रु. होता था, लेकिन बढ़ती हुई कीमतों की वजह से वेतन वृध्दि ने हमारा जीवन स्तर नहीं बढ़ाया है। रुपये का मूल्य कम हो गया है। आज मुम्बई में एक घर की कीमत 60 लाख  रु. हो गयी है, जो पहले 10 लाख रु. से भी कम हुआ करती थी। अब हमें पश्चिम तरीके से जीना पड़ता है, जहां आप 7 दिनों के काम में जो कमाते हैं, वह सब 7दिनों में ही खर्च करते हैं।

मज़दूर वर्ग के लिये नौकरी की सुरक्षितता है ही नहीं। पूंजीपति वर्ग मनमानी कर सकता है। रिलायन्स और बिड़ला जैसी कई कंपनियों का हिन्दोस्तान पर राज है।

ग्रामीण इलाकों में अमीर किसान ज्यादातर सरकारी योजनाओं के फ़ायदे हड़प लेते हैं। मिसाल के तौर पर, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उन्हीं को कर्ज़ा मिलता है। गरीब किसानों को यह मिलता नहीं है और उन्हें साहुकारों के पास जाना पड़ता है। महाराष्ट्र में सहकारी चीनी कारखानों की परिस्थिति बुरी है। उन पर राजनैतिक नेताओं का नियंत्रण है, जो उन्हें चूस कर बीमार बना रहे हैं। वे ही कर्ज़ों का फ़ायदा हड़प लेते हैं तथा निधियों का दुरुपयोग करते हैं।

भ्रष्टाचार पर नियंत्रण होना चाहिए। मलेशिया में भ्रष्टाचार कानून पारित होने के बाद 4,200 सरकारी अफ़सरों के साथ 125 मंत्रियों को गिरफ्तार किया गया।

मज़दूर वर्ग को एकजुट होना चाहिए।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *