नई आर्थिक नीति का लाभ पूंजीपतियों के साथ-साथ सरकार को भी हुआ है। इस नीति से सार्वजनिक तथा निजी उद्यमों में बड़े पैमाने पर उसने ठेका मज़दूरी लागू की है।
उदाहरण के तौर पर, रेलवे में साफ़-सफ़ाई ठेकेदार से करवाते हैं। तीसरी तथा चैथी श्रेणी के अनेक पदों को खत्म कर दिया गया है, लेकिन अफ़सरों के पद बढ़ाये गये हैं।
नई आर्थिक नीति का लाभ पूंजीपतियों के साथ-साथ सरकार को भी हुआ है। इस नीति से सार्वजनिक तथा निजी उद्यमों में बड़े पैमाने पर उसने ठेका मज़दूरी लागू की है।
उदाहरण के तौर पर, रेलवे में साफ़-सफ़ाई ठेकेदार से करवाते हैं। तीसरी तथा चैथी श्रेणी के अनेक पदों को खत्म कर दिया गया है, लेकिन अफ़सरों के पद बढ़ाये गये हैं।
सरकार कहती है कि सकल घरेलू उत्पाद बढ़ रहा है। लेकिन वास्तव में तो गरीबी बढ़ रही है। गरीबी रेखा के नीचे वालों की संख्या आज के मुकाबले 1947 में कम थी। फिर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि से क्या फ़ायदा है? अमीर और अमीर बन रहे हैं और गरीब और गरीब। अमीर और अमीर बन रहे हैं क्योंकि उनके पास सत्ता है। वही हिन्दोस्तान के असली शासनकर्ता हैं। हिन्दोस्तान में कोई समाजवाद नाम की चीज़ है ही नहीं, बल्कि बढ़ती हुई असमानताएं हैं।
हाल के बजट में बड़े औद्योगिक घरानों को 1,75,000 करोड़ रुपये की करों में छूट क्यों दी गयी थी? अमीरों को करों में छूट दी जा रही है जबकि श्रमिकों से ज्यादा कर वसूले जा रहे हैं। इतने सारे घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। मिसाल के तौर पर 2-जी घोटाला, राष्ट्रमंडल घोटाला, इत्यादि। लेकिन वसूली क्यों नहीं हो रही है? इतने बड़े पैमाने पर आर्थिक अपराध करने वाले इन पूंजीपतियों को तथा राजनैतिक नेताओं को जनता के सामने फांसी देना चाहिये। वह औरों के लिये अच्छा सबक होगा।
क्या करना चाहिए?
हमें निजीकरण का अंत करना चाहिये। सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार करना चाहिये। सब बड़े उद्योगों का राष्ट्रीकरण करना चाहिये। उनका नियंत्रण आम जनता के हाथों में होना चाहिए।