मणिपुर में नाकाबंदी : मणिपुर के वर्तमान संकट के लिए हिन्दोस्तानी राज्य की ‘बांटो और राज करो’ की राजनीति जिम्मेदार है

1 अगस्त से, बीते 3 महीनों से, मणिपुर के दो राष्ट्रीय महामार्ग, एन.एच. 39 और एन.एच. 53, पर नाकाबंदी लगी हुई है। एक तरफ, कूकी लोगों के संगठनों ने वर्तमान सेनापति जिले के अंदर, अलग सदर पर्वतीय जिले के निर्माण की मांग को लेकर नाकाबंदी शुरू किया, तो दूसरी तरफ मणिपुर में युनाइटेड नगा काउंसिल (यू.एन.सी.) ने इस मांग का विरोध करने के लिये, अपनी नाकाबंदी लागू कर दी। अब सिर्फ यू.एन.सी.

1 अगस्त से, बीते 3 महीनों से, मणिपुर के दो राष्ट्रीय महामार्ग, एन.एच. 39 और एन.एच. 53, पर नाकाबंदी लगी हुई है। एक तरफ, कूकी लोगों के संगठनों ने वर्तमान सेनापति जिले के अंदर, अलग सदर पर्वतीय जिले के निर्माण की मांग को लेकर नाकाबंदी शुरू किया, तो दूसरी तरफ मणिपुर में युनाइटेड नगा काउंसिल (यू.एन.सी.) ने इस मांग का विरोध करने के लिये, अपनी नाकाबंदी लागू कर दी। अब सिर्फ यू.एन.सी. की नाकाबंदी ही जारी है क्योंकि 1 नवंबर को राज्य सरकार ने घोषणा कर दी कि किसी अनिर्धारित दिन पर एक अलग सदर पर्वतीय जिला बनाया जायेगा।

इंफाल को गुवाहाटी और सिलचर के साथ जोड़ने वाले महामार्गों पर यह नाकाबंदी लागू है। ये महामार्ग मणिपुर की अर्थव्यवस्था के लिये निर्णायक हैं, इसीलिये मणिपुर में चीजों के कीमतों और सप्लाई पर इसका भयानक असर हुआ है। पेट्रोल 170 रुपया प्रति लीटर और रसोई गैस 2000 रुपये प्रति सिलेंडर की कीमत पर बिक रहे हैं। राज्य के बाहर से आने वाली चीजें, जीवन रक्षक दवाईयां और इलाज के सामान बहुत ही कम सप्लाई में हैं।

सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम के खिलाफ़ 5 नवम्बर को संसद पर धरने को संबोधित करते हुये लोक राज संगठन के नेता 

मणिपुर के लोगों के लिये यह स्पष्ट है कि इस हालत के लिये सरकार और मुख्यतः केन्द्र सरकार जिम्मेदार है। इस इलाके के अलग-अलग लोग लम्बे अरसे से खुद अपना शासन करने और अधिक राजनीतिक अधिकार पाने के लिये मांग करते आ रहे हैं। सरकार यह बहुत अच्छी तरह जानती है। परन्तु लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं की उपेक्षा करना, लोगों की मांगों को गंभीरता से सुनने से इंकार करना, यह इस इलाके के प्रति केन्द्र सरकार की नीति की विशेषता है। मिसाल के तौर पर, फासीवादी सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम को हटाने की इस इलाके के लोगों की सांझी मांग को सरकार ने बार-बार खारिज कर दिया है। कुछ वर्ष पहले मणिपुर के लोगों ने इस कानून को हटाने की मांग लेकर कई महीनों तक जबरदस्त आंदोलन चलाया था। परन्तु केन्द्र सरकार ने लगातार इस मांग की उपेक्षा की। फिर कुछ महीने बाद सरकार ने घोषित किया कि इस मांग पर विचार करने के लिये एक कमेटी बिठाई जायेगी। कुछ और साल बाद सरकार ने इस मांग को मानने से पूरी तरह इंकार कर दिया।

साथ ही साथ, हमारे देश के इस भाग में, जहां बहुत से अलग-अलग राष्ट्रों व राष्ट्रीयताओं के लोग तथा आदिवासी लोग बसे हुये हैं, वहां केन्द्र सरकार ने हमेशा ही ‘बांटो और राज करो’ की नीति अपनाई है। केन्द्र कभी तो खुलकर या कभी अप्रत्यक्ष तरीके से किसी एक तबके की मांग को प्रश्रय देती है, जबकि उसे मालूम है कि किसी दूसरे तबके को यह पसंद नहीं होगा। उसके बाद केन्द्र सरकार अपना वादा तोड़ देती है और इसके लिये यह बहाना देती है कि दूसरा तबका इसका विरोध करेगा। केन्द्र सरकार का इरादा है वहां के विभिन्न लोगों के बीच में तनाव और दुश्मनी फैलाना, ताकि वे एकजुट होकर अपने सांझे अत्याचारी के खिलाफ़ संघर्ष न कर सकें।

मणिपुर और पूर्वोत्तर इलाके के सभी लोगों का सांझा अत्याचारी केन्द्रीय राज्य है, जो इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में शोषक वर्गों के नियंत्रण में है। अत्यंत आर्थिक पिछड़ापन, अत्यधिक बेरोजगारी, मूल मानव अधिकारों, राजनीतिक अधिकारों और राष्ट्रीय अधिकारों का हनन – यह उस इलाके के सभी लोगों की सामान्य स्थिति है। “हिन्दोस्तान की एकता और अखंडता” को बचाने या सरहदी इलाके की रक्षा करने के नाम पर केन्द्र सरकार उस इलाके में बेझिझक भारी मात्रा में सेना और अर्धसैनिक बल तैनात करती है, आपात्कालीन कानून थोप देती है और तरह-तरह के फासीवादी कदम उठाती है। परन्तु जब उस इलाके के लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसा कि मणिपुर के लोगों को बीते कुछ महीनों से करना पड़ रहा है, तब केन्द्र सरकार लापरवाही दर्शाती है और जानबूझ कर हालत को और बिगड़ने के लिये छोड़ देती है। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय महामार्गों की रक्षा करने और जरूरी चीजों की यातायात को बनाये रखने के लिये कोई कदम नहीं उठाया है। केन्द्र सरकार ऐसा बर्ताव कर रही है जैसे कि मणिपुर के लोगों के दुख-दर्द से पूरे देश के लोगों का कोई संबंध ही नहीं है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उस इलाके के लोग खुद को नई दिल्ली का उपनिवेश जैसा मानते हैं।

वर्तमान हिन्दोस्तानी संघ के ढांचे में लोगों के राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों का हनन निहित है। इस हिन्दोस्तानी संघ के अन्दर, कुछ राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं, खास तौर पर पूर्वोत्तर इलाके के राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं को ऐतिहासिक तौर पर, अत्यधिक राष्ट्रीय शोषण का शिकार बनाया गया है। इस गहरी ऐतिहासिक समस्या का समाधान करना होगा।

मणिपुर की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और जन संगठनों को मिलकर सीधे तौर पर आपस में बातचीत करके, अपनी राजनीतिक एकता बनानी होगी। उन्हें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिये कि केन्द्र सरकार या उसके आदेशों का पालन करने वाली राज्य सरकारें “ईमानदार मध्यस्थता“की भूमिका निभायेंगी या लोगों को सच्चे माइने में इंसाफ दिलायेंगी। 

हमारे देश के मजदूर वर्ग के कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण

हिस्सा हिन्दोस्तानी संघ का पुनर्गठन है। हिन्दोस्तानी संघ को एक स्वेच्छा पर आधारित संघ बतौर पुनर्गठित करना होगा, जिसमें सभी विभिन्न राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और आदिवासी लोगों के अधिकारों और हितों को मान्यता देनी होगी तथा इनके बीच में सामंजस्य लाना होगा। मणिपुर और पूर्वोत्तर इलाकों के अन्य लोगों की लम्बे अरसे से चली आ रही समस्याओं को हल करने का रास्ता यही है कि एक नये संविधान के आधार पर, नयी बुनियादों पर हिन्दोस्तानी राज्य और समाज का लोकतांत्रिक नवनिर्माण करने के लिये मजदूर वर्ग के साथ मिलकर संघर्ष को आगे बढ़ाया जाये।

 

 

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