भारतीय रेल के इंजन चालकों की न्याय-संगत मांगों का समर्थन करें!

यह बयान संयुक्त रूप से भारतीय रेल के इंजन चालकों के समर्थन में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सहित लोक राज संगठन, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन, ऑल इंडिया रेलवे एम्प्लॉइज फेडरेषन, वेस्टर्न रेलवे मोटरमैन्स एसोसिएशन, एयर इंडिया एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स एसोसिएशन, एयर इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन, एयरपोर्ट अथारिटी ऑल इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन, ऑल इंडिया सर्विस इंजीनियर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया व

यह बयान संयुक्त रूप से भारतीय रेल के इंजन चालकों के समर्थन में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सहित लोक राज संगठन, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन, ऑल इंडिया रेलवे एम्प्लॉइज फेडरेषन, वेस्टर्न रेलवे मोटरमैन्स एसोसिएशन, एयर इंडिया एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स एसोसिएशन, एयर इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन, एयरपोर्ट अथारिटी ऑल इंडिया एम्प्लॉइज यूनियन, ऑल इंडिया सर्विस इंजीनियर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया वोल्टास एम्प्लाइज़ फेडरेशन, बीएसएनएल एम्प्लॉइज यूनियन, बेस्ट वर्कर्सयूनियन, इंडियन कमर्शियलपायलट्स एसोसिएशन, लड़ाकू गारमेंट मज़दूर संघ, महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेसिडेंट डाक्टर्स, म्युनिसिपल मज़दूर यूनियन और नैशनल फेडरेशन ऑल पोस्टलएम्प्लॉइज ने जारी किया है।

15 नवंबर को सुबह 10 बजे से देशभर के भारतीय रेल के चालक, ऑलइंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के आह्वान पर, 24 घंटों के लिए भूख हड़ताल पर जा रहे हैं। इस दौरान वे बिना खाये अपनी ड्यूटी करेंगे और ऑफ ड्यूटी वाले अपने मुख्यालयों के सामने अपना विरोध प्रदर्शन करेंगे।

रेलचालकों के विरोध की वजह क्या है?

मालगाडि़यां, पैसेंजर, मेल, राजधानी तथा लोकल चलाने वाले चालकों को बहुत ही तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। इससे उनके मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। और इससे यात्रियों का जीवन बहुत खतरे में पड़ जाता है।

चालकों की समस्याएं तथा मांगें क्या हैं?

  1. इंजन चालकों को 24 घंटे, सप्ताह के 7 दिन तथा साल भर में रोज़ काम करना पड़ता है। उनकी ड्यूटी सुबह से शाम बदलती रहती है। सप्ताह के सात दिन उन्हें औसतन रोज़ 7.5 घंटे की ड्यूटी अनिवार्य होती है। इसलिए उनकी मांग है कि ड्यूटी के घंटों पर तथा लगातार रात की ड्यूटी पर सीमा होनी चाहिए।
  2. उनको हर सप्ताह की छुट्टी नहीं मिलती है और न ही राष्ट्रीय छुट्टियां। राष्ट्रीय छुट्टियों के दिनों पर काम करने के लिए उन्हें नगण्य मुआवजा मिलता है, जो उनके प्रतिदिन के वेतन के एक चैथाई से भी कम होता है। इसलिए उनकी मांग है कि उन्हें प्रति महीना 4 बार 46 घंटों का अवकाश मिलना चाहिए, जो प्रति सप्ताह के छुट्टी के समान है। आज के नियमों के अनुसार, उन्हें प्रति महीना 4 बार 30 ही घंटों का अवकाश मिलता है। मिसाल की तौर पर, सोमवार सुबह 10बजे  तक अगर चालक काम करता है, और मंगलवार के दोपहर को 4 बजे अगर उसे रिपोर्ट करना पड़ता है, तो ऐसा माना जाता है कि उसे सप्ताह की छुट्टी मिल गयी!
  3. उन्हें अपने परिवारों से बहुत समय के लिए दूर रहना पड़ता है, जिसकी वजह से पारिवारिक तनाव बहुत बढ़ जाते हैं। अतः उनकी मांग है कि अपने-अपने मुख्यालयों से दूर काम करने के घंटे तथा दिन सीमित होने चाहिए। चालकों के रिक्त स्थान बहुत हैं, जिनको रेल बोर्ड भर नहीं रहा है। इसलिए मौजूदा चालकों पर काम का बहुत ही ज्यादा बोझ है और उन पर ज्यादा काम करने की ज़बरदस्ती की जा रही है।
  4. मुंबई की लोकल चलाने वाले मोटरमैनों के सामने ये सब समस्याएं तो हैं ही। उसके ऊपर उन्हें अकेले लोकल चलाना पड़ता है। इसलिए वे सहायक चालक की मांग कर रहे हैं। मुंबई में जब लोकल सेवा शुरू हुई, तब हर एक ट्रेन में सिर्फ़ 3कोच हुआ करते थे। अब हर लोकल में 12 कोच होते हैं और पश्चिम रेल में तो कई ट्रेनों में 15 कोच तक होते हैं। इसका मतलब हर लोकल ट्रेंन में 5000 से 6000 यात्री होते हैं। सिग्नलों की संख्या भी बहुत ज्यादा हैं, जिसकी वजह से बार-बार तथा दोषरहित रुकना पड़ता है। अगर एक भी गलती हो जाए, तो उसको तुरंत सस्पेंड किया जाता है! रेल के अपने नियमों के अनुसार तो पैसेंजर, मेल और लम्बी दूरी तक चलने वाली, 1400 यात्रियों  की गाडि़यों को एक सहायक लोको चालक अनिवार्य है। रेल व्यवस्थापन के सामने इन न्याय-संगत मांगों को बार-बार रखने के बावज़ूद वह कुछ समाधान नहीं दे रही है और इसलिए मोटरमैनों को बार-बार संघर्ष करना लाजमी बन गया है।

चालकों के काम की परिस्थिति तथा वेतन ढांचे में अनेक अन्यायी विसंगतियां हैं। रेल व्यवस्थापन अटल है और ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के साथ बातचीत करके इनका समाधान करने से इंकार कर रहा है।

हम इन न्याय-संगत मांगों का पुरजोर समर्थन करते हैं तथा सभी श्रमिकों को, उनके संगठनों को तथा सब न्याय प्रेमियों को अपील करते हैं कि चालकों तथा मोटरमैनों की मांगों का समर्थन करके रेल व्यवस्थापन को उनका समाधान करने के लिए विवश करें!

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