बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवाद एशिया से बाहर निकलो!
अमरीकी साम्राज्यवाद ने अपने भूतपूर्व मित्र, पाकिस्तान पर निशाना साध रखा है, जबकि पहले वह पाकिस्तान को “आतंकवाद पर जंग” में अपना “रणनैतिक सांझेदार” मानता था। बीते वर्ष के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा, विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन और सर्वोच्च अमरीकी सैनिक कमांडर व सी.आई.ए.
बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवाद एशिया से बाहर निकलो!
अमरीकी साम्राज्यवाद ने अपने भूतपूर्व मित्र, पाकिस्तान पर निशाना साध रखा है, जबकि पहले वह पाकिस्तान को “आतंकवाद पर जंग” में अपना “रणनैतिक सांझेदार” मानता था। बीते वर्ष के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा, विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन और सर्वोच्च अमरीकी सैनिक कमांडर व सी.आई.ए. के प्रधान द्वारा बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाया जा रहा है, कि पाकिस्तानी राज्य और सेना उन आतंकवादी गिरोहों को रक्षा और समर्थन दे रही हैं जो अफ़गानिस्तान में अमरीकी अड्डों पर हमले कर रहे हैं।
राष्ट्रपति ओबामा ने पहले खुलेआम ऐलान किया था कि अगर पाकिस्तान आतंकवादियों को प्रश्रय देता है तो अमरीका उस पर हमला करेगा। अमरीका ने पाकिस्तान के उत्तरी वज़ीरिस्तान इलाके से जुड़े हुये अफ़गानिस्तान के क्षेत्रों में हेलिकॉप्टर और भारी हथियारों व विस्फोटकों सहित हजारों सैनिकों को तैनात कर रखा है। उन क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाया गया है और घर-घर तलाशी ली जाती है। पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान सीमा को सील कर दिया गया है।
अमरीकी विदेश सचिव क्लिंटन ने पाकिस्तान की सरकार और सेना पर और ज्यादा दबाव डालने के लिये 20 अक्तूबर को इस्लामाबाद की यात्रा की। उनके साथ सी.आई.ए. के निदेशक डेविड पैक्ट्रास, वर्तमान सेना अध्यक्ष जनरल मारटिन डेंप्से और रक्षा नीति के उपसचिव मिशेल फ्लोरनोय भी थे। अमरीकी सरकार और मीडिया के अनुसार, यह यात्रा अमरीका और पाकिस्तान के बीच सम्बधों को बचाने की “आखिरी कोशिश” है। यात्रा के दौरान “लोकतांत्रिक संस्थानों और लोकतांत्रिक शासन को मजबूत करने” पर बातचीत हुई, जिससे यह संदेश मिलता है कि शायद अमरीका वहां “सत्ता परिवर्तन” की तैयारी कर रहा है।
पाकिस्तान पहले से ही अमरीका के बहुत सारे ड्रोन बमबारी के हमलों का शिकार बना हुआ है, जिसके कारण सैकड़ों लोग मर चुके हैं। मई में ओसामा बिन लादेन को पकड़ने और मारने के बहाने, अमरीकी सेना ने पाकिस्तान की संप्रभुता का हनन किया और बड़ी बेशर्मी के साथ उसे जायज़ ठहराया। वर्तमान समय पर जानबूझकर तनाव बढ़ाया जा रहा है, ताकि पाकिस्तान की संप्रभुता पर और ज्यादा हमले करने की हालतें तैयार हो जायें।
पाकिस्तान का जवाब
पाकिस्तानी लोग अपनी संप्रभुता के बार-बार हनन होने से बहुत गुस्से में हैं। वे इस बात पर दुखी हैं कि अमरीकी साम्राज्यादियों द्वारा, ड्रोन हमलों और दूसरे आतंकवादी हमलों से उनके सैकड़ों-हजारों देशवासी मारे गये हैं। पाकिस्तान के लोग ज्यादा से ज्यादा हद तक यह समझने लगे हैं कि पाकिस्तान में बार-बार जो बहुत सारे समुदायिक आतंकवादी हमले होते रहते हैं, उनके पीछे मुख्यतः बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवाद और उनके खुफिया दलों का हाथ है।
पाकिस्तान की सरकार और सेना तलवार की धार पर चल रही हैं। एक तरफ, जनमत के दबाव के कारण, उन्हें साम्राज्यवाद के खिलाफ़ बयान देना पड़ रहा है। दूसरी तरफ, पाकिस्तानी प्रशासन में अमरीका ने काफी गहराई तक अपना पैर जमा रखा है, जिसके कारण साम्राज्यवादियों से पाकिस्तानी सरकार और सेना पर बहुत दबाव है और साम्राज्यवादी दबाव तले उनके झुक जाने की बहुत संभावना है।
जब अमरीका ने यह इल्जाम लगाया कि पाकिस्तान हक्कानी “आतंकवादी” गिरोह को प्रश्रय दे रहा है, तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़ार ने कहा कि “ये टिप्पणियां हमें बहुत नापसंद हैं। इसका कोई सबूत नहीं है। हमें इसके बारे में कोई सबूत नहीं दिया गया है।
“अगर हम संबंधों की बात करते हैं, तो मुझे पूरा यकीन है कि सी.आई.ए. का भी दुनिया के अनेक आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध है, यानि खुफिया संबंध हैं।
“और यह खास गिरोह, जिसके बारे में अमरीका बार-बार जिक्र कर रहा है, यह अनेक सालों तक अमरीकी सी.आई.ए. का अपना सबसे प्यारा बच्चा रह चुका है।
“मैं सिर्फ यह उम्मीद करती हूं कि हमें आपस में मिलकर काम करने का मौका दिया जायेगा और इसके लिये दरवाजे खुले रहेंगे – क्योंकि इस प्रकार के बयानों का मतलब है कि ये दरवाजे बंद होने वाले हैं।
“मैं यह सोचती हूं कि जितना हम सह सकते हैं, उससे ज्यादा हमारा परीक्षण नहीं किया जाना चाहिये।”
पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष जनरल कयानी ने कहा है कि अमरीका को अच्छी तरह मालूम है कि कौन-कौन से देश हक्कानी गिरोह के साथ संबंध में हैं, इसलिये ”सिर्फ पाकिस्तान पर निशाना साधना न तो उचित है और न ही इससे कोई फायदा होगा”।
समाचार सूत्रों में काफी विस्तृत रूप से यह रिपोर्ट किया गया है कि अमरीका, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान की करजाई सरकार पहले किसी हक्कानी नेता को अफ़गानिस्तान की कठपुतली सरकार में उपप्रधान मंत्री बनाने की कोशिश कर रही थी। पर बाद में यह योजना असफल हो गयी।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने भी कई बार खुलेआम बताया है कि अफगानिस्तान में सोवियत कब्ज़े के दौरान, अफ़गान लोगों के विरोध आंदोलन में घुसपैठ करने के लिये, पाकिस्तान में आतंकवादी गिरोहों को आयोजित करने में अमरीका की अहम भूमिका थी। अमरीका इससे खुश नहीं है।
सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सत्र के दौरान, जब अमरीका ने पाकिस्तान पर अपना हमला बढ़ाया, तो पाकिस्तान की सरकार ने अपने विदेश मंत्री को वापस बुला लिया।
क्लिंटन की यात्रा से दो दिन पहले, सत्ता पक्ष की पार्टी और विपक्ष के उच्च नेताओं और सेना अध्यक्षों की बैठक हुई, जिसमें एक सांझा बयान जारी किया गया। जनरल कयानी ने अमरीकी नेताओं को दो टूक जवाब दे दिया – कि उन्हें पाकिस्तान की संप्रभुता का हनन करने से पहले दस बार सोचना चाहिये, क्योंकि पाकिस्तान इराक या अफगानिस्तान नहीं है।
हिन्दोस्तानी लोगों का क्या रवैया होना चाहिये?
अमरीकी साम्राज्यवाद पाकिस्तान पर बहुत दबाव डाल रहा है। यह ऐसे समय पर किया जा रहा है जब यह पक्के तौर पर स्थापित हो चुका है कि सारी दुनिया में अमरीका खुद ही आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रश्रयकर्ता है। अमरीकी साम्राज्यवाद ने अफगानिस्तान पर दबाव बना रखा है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अमरीका का “आतंकवाद पर जंग” पहले एशिया और फिर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा करने की उसकी रणनीति ही है। अमरीकी साम्राज्यवाद की अर्थव्यवस्था गहरी मंदी से गुजर रही है। अमरीका इससे बाहर निकलने के लिये सैन्यवाद, फासीवाद और साम्राज्यवादी जंग का रास्ता लेने की कोशिश कर रहा है। अमरीका मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के अनमोल तेल, प्राकृतिक गैस और खनिज संसाधनों को हथियाना चाहता है। अमरीका की रणनीति ईरान को घेरना और फिर चीन, रूस और हिन्दोस्तान पर दबाव डालना है। परन्तु अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लोग इस रणनीति को लागू करने के रास्ते में रुकावट बनकर खड़े हैं। अफगान लोगों का प्रतिरोध बढ़ता जा रहा है और उसके प्रति पाकिस्तानी लोगों में समर्थन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तान के लोगों को सीमा के उस पार अपने अफगान भाइयों के साथ बहुत हमदर्दी है। पाकिस्तान के लोग इस बात से नफ़रत करते हैं कि अमरीकी साम्राज्यवाद अपने दुष्ट इरादों के लिये उन्हें इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान के लोग सही निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि अमरीकी साम्राज्यवाद आज उनका सबसे बड़ा दुश्मन है।
हिन्दोस्तान के लोगों को यह समझना चाहिये कि कल अफगानिस्तान में क्या हुआ था और आज पाकिस्तान में क्या हो रहा है। जो आज पाकिस्तान में हो रहा है, वह कल हिन्दोस्तान में भी हो सकता है।
इस इलाके में बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादी योजना हिन्दोस्तानी लोगों तथा इस इलाके के दूसरे लोगों की सुरक्षा और शांति के लिये बहुत बड़ा खतरा है। हमारे इलाके के लोगों को बांटकर यहां अपना प्रभुत्व जमाये रखने का बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों का पुराना इतिहास है। यह बड़ी दुख की बात है कि इस इलाके के शासक वर्गों और अमीर वर्गों के कुछ तबके, इतिहास में समय-समय पर, साम्राज्यवादियों की साजि़शों के शिकार बन गये और अपने तंग, खुदगजर हितों के लिये अपने लोगों से विश्वासघात कर बैठे। यह उपनिवेशवादी समय में हुआ और उसके बाद बीते 64 वर्षों में भी कई बार हुआ।
इस संकटपूर्ण मोड़ पर, पाकिस्तान के लोग और अफगानिस्तान के लोग हिन्दोस्तानी लोगों से मदद की उम्मीद कर रहे हैं। हमें हिन्दोस्तानी शासक वर्ग और उसके प्रतिनिधियों के तंग, खुदगर्ज दृष्टिकोण को नहीं अपनाना चाहिये। शासक वर्ग पाकिस्तान की वर्तमान कठिन परिस्थितियों से फायदा उठाना चाहता है। हमें पाकिस्तान की संप्रभुता की हिफ़ाज़त में और अमरीकी साम्राज्यवाद को इस इलाके से बाहर भगाने के लिये अपना संघर्ष तेज़ करना होगा। साथ ही साथ, हमें यह मांग करनी होगी कि हिन्दोस्तान की सरकार अमरीका और अफगानिस्तान की करजाई सरकार के साथ मिलकर काम करना बंद करे। इसके बजाय हमारी सरकार को पाकिस्तान की सरकार के साथ दोतरफा चर्चा करनी चाहिये, कि साम्राज्यवाद-विरोधी एकता कैसे बढ़ाई जाये और अमरीकी तथा दूसरे विदेशी साम्राज्यवादियों को इस इलाके से कैसे खदेड़ा जाये।