14 अक्तूबर, 2011 को लोक राज संगठन ने वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता तथा कार्यकर्ता, श्री प्रशांत भूषण पर हमले की निंदा करने के लिये और ज़मीर के अधिकार की हिफ़ाज़त में, एक बहुत महत्वपूर्ण राजनीतिक सभा आयोजित की। अनेक राजनीतिक पार्टियों और संगठनों के प्रतिनिधियों तथा ज़मीर वाले स्त्रियों और पुरुषों ने, बहुत ही कम समय में आयोजित की गई इस सभा में भाग लिया। सभी ने इस हमले की निंदा की और कश्मीर के
14 अक्तूबर, 2011 को लोक राज संगठन ने वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता तथा कार्यकर्ता, श्री प्रशांत भूषण पर हमले की निंदा करने के लिये और ज़मीर के अधिकार की हिफ़ाज़त में, एक बहुत महत्वपूर्ण राजनीतिक सभा आयोजित की। अनेक राजनीतिक पार्टियों और संगठनों के प्रतिनिधियों तथा ज़मीर वाले स्त्रियों और पुरुषों ने, बहुत ही कम समय में आयोजित की गई इस सभा में भाग लिया। सभी ने इस हमले की निंदा की और कश्मीर के मुद्दे पर श्री प्रशांत भूषण के अडिग राजनीतिक रवैये का समर्थन किया। उन्होंने राज्य को इस हमले का आयोजक ठहराते हुये, इसकी निंदा की, और ज़मीर के अधिकार की हिफ़ाज़त करने के महत्व पर ज़ोर दिया। सभा में हुई चर्चा पर मजदूर एकता लहर के संवाददाता की रिपोर्ट को यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
जाने-माने वकील तथा भूतपूर्व न्याय मंत्री, श्री शांति भूषण, लोक राज संगठन के अध्यक्ष, एस. राघवन और सुचरिता के साथ सभा के अध्यक्षमंडल में थे।
सभा में उपस्थित लोगों का स्वागत करते हुये, लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस. राघवन ने तथ्यों के द्वारा निश्चयात्मक रूप से यह दिखाया कि प्रशांत भूषण पर हमला सुनियोजित था और हमलावरों को राज्य से पूरी सुरक्षा प्राप्त थी। राघवन ने समझाया कि प्रशांत भूषण पर हमला इसलिये किया गया क्योंकि उन्होंने अपने बयान में कश्मीरी लोगों के आत्म-निर्धारण के अधिकार की हिफ़ाज़त की थी और कश्मीर में इस विषय पर जनमत संग्रह करवाने के पक्ष में बात की थी। उन्होंने फासीवादी सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम को वापस लेने और सेना को कश्मीर से हटाने की मांग की थी। उन पर हमला इसलिये किया गया क्योंकि उन्होंने असूलों के आधार पर यह कहा था कि कश्मीर का भविष्य तय करने का अधिकार कश्मीरी लोगों का है, न कि हिन्दोस्तान या पाकिस्तान की सरकारों या किसी और का।
राघवन ने यह समझाया कि जो भी कश्मीरी लोगों के, खुद अपना भविष्य तय करने के अधिकार की हिमायत करता है, उसे “आतंकवादी” और “राष्ट्र-विरोधी” बताया जाता है। बड़े पूंजीजीपति और संसद में बैठे उनके राजनीतिक प्रतिनिधि यह नहीं चाहते कि लोग मौजूदे व्यवस्था पर कोई भी सवाल उठायें। वे इन निर्णायक विषयों पर वाद-विवाद को रोकने के लिये धमकी, हिंसा, या कोई और तरीका इस्तेमाल करते हैं। प्रशांत भूषण पर हमला ज़मीर के अधिकार पर हमला है और इस हमले का विरोध करने के लिये उन्होंने एकताबद्ध जन आन्दोलन की मांग की। उन्होंने सभी से आगे आकर अपने विचारों को बेझिझक पेश करने का आह्वान किया।
श्री शांति भूषण ने अनेक तथ्यों से यह दिखाया कि प्रशांत भूषण पर हमला विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के किराये के गुंडों का काम था। उन्होंने कहा कि ज़मीर का अधिकार, बोलने व अभिव्यक्ति करने की आज़ादी, ये बहुत महत्वपूर्ण अधिकार हैं, क्योंकि विचारों का वाद-विवाद किसी भी समाज की प्रगति के लिये निर्णायक है। जिस विचार को आज बहुत लोग नहीं स्वीकार करते हैं, वह भविष्य में सही साबित हो सकता है। कश्मीर के विषय पर प्रशांत भूषण के विचारों का समर्थन करते हुये, उन्होंने कहा कि हिन्दोस्तानी राज्य ने कश्मीरी लोगों से किये गये वादों को पूरा नहीं किया है। आत्म-निर्धारण और अलग भी होने का अधिकार सभी राष्ट्रों और लोगों का अधिकार है और अगर कश्मीरी लोगों को यह अधिकार दिया जाये तो शायद वे अलग नहीं होना चाहेंगे, परन्तु जब तक उन्हें यह अधिकार नहीं दिया जाता, तब तक उनके आज़ादी के आन्दोलन को वहशी बलप्रयोग से कुचला नहीं जा सकता, जैसा कि हिन्दोस्तानी राज्य करने की कोशिश करता रहा है। कश्मीर के मुद्दे पर जनमत संग्रह की मांग कश्मीरी लोगों के संप्रभु अधिकार की अभिव्यक्ति है। उन्होंने इस प्रकार के हमलों के विरोध में एक व्यापक जन आन्दोलन तथा गुनहगारों को कड़ी सज़ा की मांग की।
श्री शान्ति भूषण ने समझाया कि ज़मीर के अधिकार की हिफ़ाज़त करने का संघर्ष उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि जन लोकपाल बिल के लिये संघर्ष। उन्होंने कई बीते दशकों के अपने निजी अनुभवों को बताया, जब उन्हें दिवंगत जस्टिस वी.एम.तारकुंडे जैसे जाने-माने व्यक्तियों समेत अपने सहकर्मियों को यह समझाना पड़ा था कि ज़मीर के अधिकार को अमल में लाना तथा उसकी हिफ़ाज़त करना आवश्यक है। इसके अलावा, जिन गोंडों ने 13 अक्तूबर को बसों में भरके पटियाला हाउस कोर्ट में आकर, पुलिस की आंखों के सामने, प्रशांत भूषण के समर्थकों पर हमला किया था, उनके बारे में श्री शान्ति भूषण ने बताया कि कुछ समय पहले, स्टिंग ऑपरेशन से पता चला था कि खास राजकीय संस्थानों और राजनीतिक ताकतों के ये किराये के गुंडे हैं। श्री शान्ति भूषण ने प्रस्ताव किया कि ज़मीर के अधिकार की हिफ़ाज़त करने तथा उसका हनन करने वालों को सज़ा देने के लिये एक सख्त कानून होना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान स्थिति के चलते, इन हमला करने वाले गुंडों को एक-दो दिन में जमानत पर छोड़ दिया जायेगा।
समाजवादी नेता व सामाजिक कार्यकर्ता डा. सुनीलम, जो मध्य प्रदेश में दो बार विधायक रहे हैं, ने बताया कि प्रशांत भूषण पर हमला राजनीतिक संस्थानों द्वारा जनहित में काम करने वालों को सबक सिखाने का एक प्रयास था। उन्होंने बताया कि प्रशांत भूषण अन्ना हजारे के आन्दोलन के एक प्रमुख नेता थे, जिस आन्दोलन में देश भर के नौजवान और लोग लामबंध हुये थे। लोग इस व्यवस्था पर भरोसा खो बैठे हैं। दबे-कुचले लोगों के हित में संघर्ष करने के अपने अनुभवों को बताते हुये, उन्होंने शासक वर्ग को साम्प्रदायिकता फैलाने का दोषी ठहराया, ताकि लोगों को बांटा जाये और जन विरोध को कमज़ोर किया जाये। वर्तमान घटना में हमलावरों के साथ पुलिस की मिलीभगत साफ़-साफ़ दिखाता है कि यह सच बोलने वालों को चुप कराने के लिये एक आयोजित धमकी थी, उन्होंने कहा।
सोशलिस्ट युनिटी सेंटर आफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के दिल्ली सचिव, प्रताप सामल ने जनता के विरोध के अधिकार का हनन करने वाली फासीवादी ताकतों का जिक्र किया और ऐलान किया कि इन फासीवादी ताकतों को हराना हम सब के सामने एक चुनौती है। यह आम लोगों का नहीं, बल्कि संगठित ताकतों का काम था। भगत सिंह और उनके साथियों ने हिन्दोस्तान पर ब्रिटिश राज के अत्याचार का पर्दाफाश करने के लिये, फांसी के फंदे को चूमा था। भगत सिंह के लिये हमारे लोगों की इज़्जत की भावना का दुरूपयोग करने के लिये, उनके नाम को इस घिनावनी हरकत के साथ जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कश्मीरी लोगों के खिलाफ़ हिन्दोस्तानी राज्य और उसकी सेना के अनगिनत अपराधों पर ध्यान दिलाया, और यह बताया कि जब भी कोई इस पर सवाल उठाता है तो उसे राष्ट्र-विरोधी बताया जाता है और उसके साथ किसी अपराधी की तरह सलूक किया जाता है। उन्होंने सभी जनतांत्रिक विचार वाले लोगों से आह्वान किया कि हम एकजुट होकर, इन फासीवादी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दें।
प्रकाश राव ने यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि समस्या क्या है और यह समस्या खड़ा करने वाला कौन है? राज्य और विभिन्न ताकतें कह रही हैं कि प्रशांत भूषण समस्या खड़ा कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने कश्मीर पर अपने विचार रखे। सच तो यह है कि राज्य और शासक वर्ग की मुख्य पार्टियां समस्या खड़ी कर रही हैं। वे राजनीतिक समस्याओं का राजनीतिक समाधान रोकने के लिये, वहशी बलप्रयोग और राजकीय दमन का इस्तेमाल करते हैं, जैसा कि कश्मीर, मणिपुर और दूसरे इलाकों में कर रहे हैं। वे प्रतिरोध को कुचलने के लिये बलप्रयोग करते हैं। कभी-कभी वे पुलिस का इस्तेमाल करते हैं, तो कभी अपनी गुप्त संस्थाओं का, जैसा कि इस मामले में। कश्मीरी लोगों के खुद अपना भविष्य तय करने के अधिकार पर प्रशांत भूषण के विचारों को इस हमले का औचित्य बताया जा रहा है। यह हिन्दोस्तानी राज्य का स्वाभाविक तरीका है, कि जब भी वह अपने रवैये को सही नहीं ठहरा सकता, तब हिंसा का प्रयोग करता है। कश्मीर, मणिपुर व दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम के खिलाफ़ जनता के प्रतिरोध के बावजूद, केन्द्र सरकार इन जगहों में बर्बर सैनिक शासन को खत्म करने और लोगों को अपना भविष्य खुद तय करने का अधिकार नहीं देना चाहती है। जनसंघर्षों को खून में बहाने के लिये, हिन्दोस्तानी राज्य और उसकी मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने बार-बार साम्प्रदायिक कत्लेआम आयोजित किये हैं, जैसे कि 1984, 1993 और 2002 में।
प्रकाश राव ने कहा कि हाल के दिनों में जो जन आन्दोलन देखने में आया, उससे यह अहम सवाल हमारे सामने उठा है – कि क्या बड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों के हितों को सर्वप्रधान मानने वाले संसद को संप्रभु होना चाहिये, या जनसमुदाय को। राज्य इस निर्णायक मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने के लिये और लोगों को डराने के लिये बलप्रयोग कर रहा है। हमारे शासक ज़मीर के अधिकार को उसी हद तक सीमित रखना चाहते हैं, जितना उनके हित में हो। अगर कोई किसी दूसरी जाति या समुदाय के लोगों को बेइज़्जत या बदनाम करना चाहता है तो, ऐसे विचारों का पूरा प्रचार किया जाता है परंतु अगर कोई जनता के अधिकारों, लोकतंत्र और प्रगति के पक्ष में बोलना चाहता है तो उसे दबाया जाता है। भक्ति आन्दोलन का उदाहरण देते हुये, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ज़मीर के अधिकार के लिये संघर्ष की हमारे समाज में गहरी जड़ें हैं। अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों और संगठनों से आये इतने सारे लोगों का इस सभा में एकत्रित होना, यह दिखाता है कि हमारे समाज में प्रगतिशील और लोकतांत्रिक विचार बहुत मजबूत हैं। पुरानी सोच और नई सोच के बीच संघर्ष ही समाज की प्रगति का द्वार खोलता है, उन्होंने समझाया। उन्होंने ज़मीर के अधिकार के लिये संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये लोगों को लामबंध करने पर ज़ोर दिया। हम गुनहगारों को कड़ी सज़ा दिलाने की मांग करते हैं, उन्होंने कहा, पर गुनहगारों को कौन सज़ा देगा? जब लोगों के हाथ में राजनीतिक सत्ता होगी, तब वे यह सुनिश्चित कर पायेंगे कि गुनहगारों को सज़ा दी जायेगी, उन्होंने समझाया। कवि इंतजार नईम, जमात ए इस्लामी हिंद के नेता, ने प्रशांत भूषण पर हमले तथा कश्मीरी लोगों के अधिकारों के मुद्दे पर साम्प्रदायिक उत्तेजना भड़काने की शासक वर्ग की कोशिशों की निंदा की। हिन्दोस्तानी राज्य और उसके सशस्त्र बलों द्वारा कश्मीर में चलायी जा रही आतंक की मुहिम पर ज़ोर देते हुये, उन्होंने ज़मीर के अधिकार के लिये संघर्ष को जिंदा रखने की भावुक अपील की।
पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ़ इंडिया (पी.डी.एफ.आई.) के नेता, कामरेड अर्जुन ने प्रशांत भूषण और कश्मीर पर उनके विचारों का समर्थन किया। ये पूरे हिन्दोस्तान तथा खास कर कश्मीर में हजारों-हजारों लोगों की भावनाओं के अनुसार है, उन्होंने कहा। कश्मीर के लोग हिन्दोस्तानी सेना के अत्याचार को सहते आ रहे हैं, और वीरता से इसका विरोध कर रहे हैं। प्रशांत भूषण पर हमला एक सुनियोजित हरकत थी, जिसे राज्य का पूरा समर्थन प्राप्त था, ऐसा उन्होंने कहा। वर्तमान हिन्दोस्तानी समाज की तमाम समस्याओं का जिक्ऱ करते हुये, उन्होंने गरीबों, दलितों व अन्य उत्पीडि़त समुदायों के संघर्षों को कुचलने के लिये बलप्रयोग की कड़ी निंदा की और इसका विरोध करने के लिये एकजुट, मजबूत जन आन्दोलन बनाने का आह्वान किया।
भाकपा (माले)-अम्बेडकरवादी के कामरेड मैथ्यू ने प्रशांत भूषण को मानव अधिकारों के अनेक मुद्दों पर एक अगुवा कार्यकर्ता बताया और उन पर हमले की निंदा करते हुये बताया कि यह पीडि़तों के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने वालों को डराने-धमकाने का राज्य का कायर प्रयास है। कश्मीरी लोगों के आत्म-निर्धारण के अधिकार की हिफ़ाज़त में, उन्होंने राज्य द्वारा हिंसा के प्रयोग की निंदा की और सभी लोकतांत्रिक ताकतों से एकजुट होकर इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाने का बुलावा दिया।
कैंपेन फॉर जुडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफोर्म (सी.जी.ए.आर.) के सदस्य डा. वेंकटेश ने कहा कि प्रशांत भूषण पर हमला उन सभी पर हमला है जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन चाहते हैं। बड़ी इजारेदार कंपनियों और उनके राज्य के पक्ष में बोलने वालों, पिछड़े साम्प्रदायिक और जातिवादी विचारों का प्रचार करने वालों पर कभी हमला नहीं किया जाता है, परन्तु वर्तमान व्यवस्था में जो जनता के पक्ष में परिवर्तन लाना चाहते हैं, उन पर हमला किया जाता है। उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर बताया कि कैसे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वालों को राज्य कुलचता है। इस हमले के गुनहगारों को सज़ा दिलाने की मांग करते हुये, उन्होंने इस क्रूर और नाजायज़ व्यवस्था को चुनौती देने के लिये, लोगों से एकजुट होकर आगे आने का आह्वान किया।
कश्मीर में हिन्दोस्तानी सेना द्वारा वहशी आतंक की मुहिम और मानव अधिकारों का घोर हनन हिन्दोस्तानी राज्य के असली चेहरे को स्पष्ट करता है, ऐसा भाकपा (मा-ले) कानु सान्याल के का. जगदीश ने कहा। हमें कश्मीरी लोगों के, खुद अपना भविष्य तय करने के संप्रभु अधिकार की हिफ़ाज़त करनी चाहिये। प्रशांत भूषण पर हमले की निंदा करते हुये, उन्होंने बताया कि यह भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जन आन्दोलन को राष्ट्र-विरोधी रंगों में दिखाने का राज्य का प्रयास है, ताकि आन्दोलन को बांट कर कमज़ोर किया जाये। इसका हमें डटकर विरोध करना चाहिये, उन्होंने कहा।
मणिपुरी नौजवानों के जज़बातों को प्रकट करते हुये, मणिपुरी स्टूडेंट्स एसोसियेशन ऑफ दिल्ली (एम.एस.ए.डी.) की ओर से रोजेश ने फासीवादी, उपनिवेशवादी सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को वापस लेने की जोश भरी अपील की। इस अधिनियम के तहत, हिन्दोस्तानी सेना द्वारा
कश्मीर, मणिपुर, आदि के लोगों के खिलाफ़ अनगिनत अपराधों पर सभी का ध्यान लाते हुये, उन्होंने इस बात की निंदा की कि राज्य और मीडिया इन अत्याचारों के खिलाफ़ बोलने वालों को “राष्ट्र-विरोधी” करार देती हैं। उन्होंने सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम को रद्द करने तथा मणिपुरी लोगों के आत्म-निर्धारण के अधिकार पर ज़ोर देने के लिये, नई दिल्ली में संसद के सामने 5नवंबर को होने वाले जन प्रदर्शन में सभी को आमंत्रित किया।
दिल्ली श्रमिक संगठन की ओर से अनिल ने कहा कि प्रशांत भूषण पर हमला हम सभी पर हमला है। दिल्ली शहर के बेघर व विस्थापित लोगों के अधिकारों के संघर्ष में प्रशांत भूषण के योगदान को याद करते हुये, उन्होंने कहा कि यह हमला अवश्य राज्य द्वारा आयोजित था, चाहे हमलावर गुंडे खुद को कोई भी नाम दे रहे हों। उन्होंने गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिये संयुक्त संघर्ष का बुलावा दिया।
प्रो.भरत सेठ, जाने-माने इंजीनियर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के शिक्षक संघ के नेता, ने विस्तारपूर्वक बताया कि ज़मीर के अधिकार का संघर्ष हिन्दोस्तानी समाज की अभिन्न परंपरा रहा है। राज्य हिन्दोस्तानी संघ के अंदर अलग-अलग राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं के अस्तित्व को भी मान्यता नहीं देता है और लोगों के राष्ट्रीय जज़बातों को कुचलने के लिए सशस्त्र बल का प्रयोग करता है। अनेक उदाहरणों के साथ उन्होंने दिखाया कि बीते वर्षों में बड़े-बड़े इजारेदार औद्योगिक घरानों की दौलत कई गुना बढ़ गई है, जबकि मेहनतकशों की हालत बिगड़ती ही रही है। राज्य लोगों के अधिकारों के संघर्ष को फासीवादी आतंक के साथ कुचलता है। उन्होंने जोर दिया कि हमें इसके खिलाफ़ एक मजबूत, एकजुट आंदोलन चलाना होगा।
सोशल जस्टिस अलायंस की ओर से सी.एल.नागर ने राज्य और उसकी मीडिया की आलोचना की और कहा कि वे पूंजीवादी कंपनियों के हित में काम करते हैं। क्रांतिकारी और प्रगतिशील विचार वाले लोगों को राज्य के हमलों का सामना करना पड़ता है, जैसा कि प्रशांत भूषण को करना पड़ा। उन्होंने कहा कि हमें इस प्रकार के हमलों का विरोध करने के लिए संगठित होना होगा।
चर्चा का संकलन करते हुए, लोक राज संगठन की ओर से सुचरिता ने इस बात पर जोर दिया कि प्रशांत भूषण पर हमला ज़मीर के अधिकार पर हमला है और उसका हमें डटकर विरोध करना होगा। हिन्दोस्तानी राज्य बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करता है और उन सभी पर हमला करता है, जो मेहनतकश और उत्पीडि़त लोगों के अधिकारों की हिफ़ाज़त में अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं। राज्य लोगों के विरोध को कुचलने के लिए सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करने और राजकीय आतंक की मुहिम चलाने के अपने तरजीही तरीके का इस्तेमाल करता है। राज्य हिन्दोस्तानी संघ के अंदर अलग-अलग राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के जज़बातों का हनन करता है और उन्हें कुलचने के लिए सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम जैसे फासीवादी कानूनों के समर्थन से, अपनी सेना को लागू कर देता है। जो इसके खिलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते हैं, उन पर राज्य के हमलों को जायज़ ठहराने के लिए, उन्हें “राष्ट्र-विरोधी” और “देश की एकता व अखंडता” के विरोध में बताया जाता है। प्रशांत भूषण पर हमला हाल के दिनों में हुए विशाल जन आंदोलन को बांटने व कमजोर करने के लिए राज्य का एक प्रयास है। इस आंदोलन ने यह निर्णायक सवाल उठाया है कि किसे संप्रभु होना चाहिए – बड़ी इजारेदार कंपनियों के हितों की हिमायत करने वाला संसद या जनता। राज्य इस निर्णायक मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने और उन्हें डराने-धमकाने की कोशिश कर रहा है। प्रगति, लोकतंत्र और इंसाफ के पक्ष में सभी ताकतों को एकजुट होकर एक प्रबल जन आंदोलन खड़ा करना होगा, जो लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए, खुद अपना भविष्य तय करने के राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं के अधिकारों के लिए, लोगों के जज़बातों को कुलचने के राज्य के प्रयासों का विरोध करने के लिए और जनता के खिलाफ़ अपराध करने वाले गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिए संघर्ष करेगा, उन्होंने समापन में कहा।