तमिलनाडु में कूड़ंगकुलम परमाणु परियोजना के खिलाफ़ जन प्रतिरोध उभर आया है। इसमें दसों-हजारों मजदूरों, किसानों, मछुआरों और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया है।
तमिलनाडु में कूड़ंगकुलम परमाणु परियोजना के खिलाफ़ जन प्रतिरोध उभर आया है। इसमें दसों-हजारों मजदूरों, किसानों, मछुआरों और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया है।
लोगों ने सरकार से इस परियोजना को रद्द करने की मांग को लेकर सामूहिक भूख हड़ताल और लगातार रैलियां आयोजित कीं। न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एन.पी.सी.आई.एल.) रूसी तकनीक और उपकरणों की सहायता से तमिलनाडु के थिरुनालवेली जिले में स्थित कूड़ंगकुलम में 1000 मेगावाट क्षमता का परमाणु बिजली संयंत्र बना रहा है। इसकी पहली यूनिट दिसम्बर 2011 को कार्यान्वित होने की उम्मीद है। लोगों ने चिंता जताई है कि इससे मछुआरों की रोजी-रोटी छिन जायेगी। यदि कोई हादसा होता है तो लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है, जैसे कि हाल ही में जापान के फुकुशिमा में हुआ था।
11 सितम्बर, 2011 को कूड़ंगकुलम के नजदीक इदिन्थाकराइ में 127 लोग सामूहिक भूख हड़ताल पर बैठे। करीब के स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी भी भूख हड़ताल में शामिल हो गये। थिरुनालवेली, कन्याकुमारी, और थोतूकुडी जिले के मछुआरों ने अपना काम-काज बंद करके विरोध प्रदर्शन में शामिल हुये। सैकड़ों हजारों लोग इदिन्थाकराइ में जमा हो गये और परियोजना को बंद करने का फैसला करते हुए नारे लगाये। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के कार्यकर्ता भी जनप्रतिरोध में शामिल थे। 12 दिन के बाद भूख हड़ताल को वापस ले लिया गया जब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखित में निवेदन किया कि जब तक लोगों की चिंता का समाधान नहीं हो जाता तब तक के लिए परियोजना पर काम बंद किया जाये।
कूड़ंगकुलम के जनप्रतिरोध को हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लिए गये फैसले की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए, जब पश्चिम बंगाल सरकार ने पूर्वी मिदनापुर जिले के हरिपुर में 4800 मेगावाट की परमाणु बिजली परियोजना को रद्द करने का फैसला लिया। इसी तरह से महाराष्ट्र के लोग जैतापुर में 9900 मेगावाट परमाणु बिजली परियोजना का भी जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा, हरियाणा के गोरखपुर स्थित 2800 मेगावाट, गुजरातस्थित मीठी विर्दी में 6 गुणा 1000 मेगावाट और मध्यप्रदेश स्थित कटका में 1400 मेगावाट परमाणु बिजली परियोजना को जबरदस्त जनविरोध का सामना करना पड़ रहा है।
इस समय हिन्दोस्तान में एन.पी.सी.आई.एल. के 20संयंत्र 6स्थानों पर काम कर रहे हैं। इनकी कुल क्षमता 4780 मेगावाट है। सरकार इस क्षमता को अगले वर्ष 7,280 मेगावाट, सन् 2020 में 20,000 मेगावाट और सन् 2032 में 63,000 मेगावाट तक बढ़ाने की योजना बना रही है।
लोगों में इन परियोजनाओं को लेकर दो आशंका है – पहला, विस्थापन और रोजी-रोटी खोने का डर तो दूसरा, परमाणु विकिरण का। परियोजना स्थल के चुनाव को लेकर सरकार खुद अपने द्वारा स्थापित नियमों का उल्लंघन करती आई है। उदाहरण के लिए गोरखपुर परियोजना, जो एक घनी आबादी वाले इलाके में स्थापित की जा रही है। इसके अलावा, हिन्दोस्तानी राज्य द्वारा लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर पाने का इतिहास बहुत गंदा रहा है। उदाहरण के लिए भोपाल गैस त्रासदी में देखा गया है कि वारेन एंडरसन को बिना सजा दिये ही भाग जाने की अनुमति दी गयी। इसलिए लोगों को सरकार के दावों और वायदों पर शक है कि यह परियोजना सुरक्षित है।
परमाणु हादसों से निपटने हेतु सरकार की तैयारी के बारे में अटॉमिक एनर्जी रेगुलटरी बोर्ड (ए.इ.आर.बी.) के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. ए. गोपालकृष्णन का कहना है कि “हम इस तरह के हादसों से निपटने के लिए संगठित और बिल्कुल तैयार नहीं हैं। हमारी तैयारी केवल कागजों तक ही सीमित है। जो ड्रिल आयोजित किये जाते हैं वह भी केवल दिखावा है, और केवल खानापूर्ति के लिए की जाती हैं।” कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को खुले पत्र लिखे हैं जिसमें उन्होंने परमाणु ऊर्जा विभाग पर “गैर-जिम्मेदार” तरीके से संकट को कम करके पेश करने का आरोप लगाया गया है और परमाणु नीति पर “बुनियादी पुनर्विचार” करने की मांग की है। उन्होंने यह भी मांग की है कि “जब तक पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक परमाणु गतिविधियों पर रोक लगायी जाये और हाल ही में चालू की गयी परियोजनाओं की अनुमति को वापस लिया जाये”, जो अनुमति हमारे देश के जर्जर ढांचे और बहुताय इस्तेमाल नहीं की गयी आपातकालीन प्रक्रिया को नजरंदाज करके दी गयी है।
इसके ठीक विपरीत, ऐसोसियटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (असोचेम) के सेक्रेटरी जनरल ने कहा है कि सरकार कूड़ंगकुलम में चल रहे जन प्रतिरोध की मांग को ठुकरा दे और अर्थव्यवस्था की “संवर्धन गति” को बरकरार रखने के लिये परमाणु परियोजना को चालू रखे, क्योंकि बारहवीं पंच-वर्षीय योजना (अप्रैल 2011 से मार्च 2017) के लिए एक लाख मेगावाट अतिरिक्त बिजली की जरूरत होगी। हमारे देश के बड़े पूंजीपति परमाणु परियोजना इसलिए चाहते हैं ताकि परमाणु संयंत्रों और उसमें लगने वाले कलपुर्जों की सप्लाई से वे अधिकतम मुनाफे बना सके।