सितंबर 2011 के अंतिम सप्ताह में, यूनान के एथेंस और दूसरे शहरों में दसियों-हजारों लोग, अपने जीविका पर सरकार द्वारा हमले की एक नयी लहर के विरोध में सड़कों पर उतरे।
सितंबर 2011 के अंतिम सप्ताह में, यूनान के एथेंस और दूसरे शहरों में दसियों-हजारों लोग, अपने जीविका पर सरकार द्वारा हमले की एक नयी लहर के विरोध में सड़कों पर उतरे।
यूनानी सरकार पर यूरोपीय संघ (ई.यू.), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) और यूरोपी केन्द्रीय बैंक (ई.सी.बी.) का जबरदस्त दबाव है कि वह बैंकों से लिये गये अपने पुराने उधार को चुकाने के लिये, ऋण की अगली किश्त पाने की शर्त बतौर अपने खर्चों में कटौतियां करे।
खर्चे में कटौतियों के लिये यह कदम बताये गये हैं:
- सरकारी नौकरियों में साल के अंत तक 30,000 कटौती
- आयकर सीमा के नीचे वाले मज़दूरों को आयकर के घेरे में लाना
- 1,200 यूरो से ज्यादा पेंशन में 20 प्रतिशत की कटौती
- 55 वर्ष से कम उम्र वालों की पेंशन में 50 प्रतिशत कटौती
- सार्वजनिक संपत्ति की बिक्री और राज्य द्वारा चलाये जा रहे उद्यमों को बंद करना
- सार्वजनिक क्षेत्र में कर्मचारियों को बेरोजगार करना
24 घंटे के लिये बस, ट्राम, रेलगाड़ी और टैक्सी चालकों, मेट्रो कर्मचारियों तथा सरकारी स्कूलों के अध्यापकों ने काम रोका। ये सब सेवायें ठप्प थीं। मज़दूरों के यूनियनों ने प्रण लिया कि वे कटौतियों का विरोध और तेज़ करने के लिये आम हड़तालों की श्रृंखलाआयोजित करेंगे। उन्होंने घोषणा की कि “जब तक जरूरी होगा, तब तक, वे सरकार और ट्रोईका (ई.यू., आई.एम.एफ., ई.सी.बी.) के खिलाफ़ जंग छेडेंगे।”
यूनान के लोग पहले से ही करों में वृद्धि, महंगाई, वेतन और पेंशन में कटौतियों से पीडि़त हैं। अनुमान है कि 20 महीने के कठोरता अभियान के फलस्वरूप पहले ही औसत घरेलू आमदनी 50 प्रतिशत गिर चुकी है। बहुत से परिवार गरीबी में धकेले जा चुके हैं। अतः आम यूनानी लोगों को और भी अच्छे से मालूम है कि कठोर कदमों से देश के हालात बहुत बिगड़ रहे हैं।
यूनानी संकट पूरे यूरोप की बैंकिंग व्यवस्था को ख़तरे में डाल रहा है। साम्राज्यवाद और उनकी उधार देने वाली एजेंसियां, बड़े बैंकों को बचाने के लिये यूनानी सरकार को मेहनतकश लोगों पर हमले और तेज़ करने के लिये बाध्य कर रहे हैं। यूनान के बहादुर मेहनतकश लोग, इन हमलों के विरोध में दृढ़ता से लड़ रहे हैं।