अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा अफगानिस्तान पर हमले की दसवीं बरसी पर :

साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतें साम्राज्यवादियों को एशिया से बाहर भगाने का वादा करती हैं

9 अक्तूबर, 2011 को नई दिल्ली में साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतों ने एक सार्वजनिक सभा आयोजित की। लोक राज संगठन और जमात ए इस्लामी हिन्द ने म

साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतें साम्राज्यवादियों को एशिया से बाहर भगाने का वादा करती हैं

9 अक्तूबर, 2011 को नई दिल्ली में साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतों ने एक सार्वजनिक सभा आयोजित की। लोक राज संगठन और जमात ए इस्लामी हिन्द ने मिलकर यह सभा आयोजित की थी। यहां हम मजदूर एकता लहर के संवाददाता द्वारा लिखित इस सभा की रिपोर्ट को प्रकाशित कर रहे हैं। हमारे देश की साम्राज्यवाद-विरोधी, जंग-विरोधी ताकतों के लिये आगे की कार्यदिशा तय करने के उद्देश्य से यह सभा आयोजित की गई थी।

अफ़गानिस्तान, इराक, लिबिया और सारी दुनिया से अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके मित्रों को भगाने के लिये, हिन्दोस्तान की सभी साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतों को एकजुट होना होगा। हमें लोगों और राष्ट्रों के अधिकारों की हिफ़ाज़त में एक शक्तिशाली साम्राज्यवाद-विरोधी, जंग-विरोधी आन्दोलन विकसित करना होगा।

अफ़गानिस्तान के लोगों के साथ हमारा खून का रिश्ता है। वे अमरीका नीत नाटो कब्ज़ाकारी ताकतों के शिकार हैं। नाटो हमलों की वजह से 13 लाख लोग मारे गये हैं। अमरीकी हमले और कब्ज़े की वजह से 50 लाख से अधिक अफ़गान लोग मारे गये हैं। 30 लाख से अधिक लोग ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ही अन्दर शरणार्थी शिविरों में जी रहे हैं।

अफ़गान लोगों के साथ हमारे प्राचीन और सकारात्मक संबंध हैं। उन्होंने हमें जरूरत की घड़ी में मदद की है। हम कभी नहीं भूल सकते कि अफ़गानिस्तान के तत्कालीन शासक ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ग़दर पार्टी को काबुल में पहली स्वतंत्र हिन्दोस्तानी सरकार स्थापित करने की इजाज़त दी थी। बर्तानवी, रूसी और अमरीकी कब्ज़ाकारी ताकतों के खिलाफ़ अफ़गान लोगों के बहादुर प्रतिरोध संघर्षों के बारे में सभी जानते हैं। हमें इस बात पर गर्व है कि ब्रिटिश सेना के हिन्दोस्तानी सिपाहियों ने उपनिवेशवादी शासन के दौरान अफ़गान लोगों पर गोली चलाने से इंकार किया था और इसलिये उन्हें ब्रिटिश ने गोलियों से उड़ा दिया था।

हम यह मांग करते हैं कि हिन्दोस्तान की सरकार अपनी अफ़गान-विरोधी, हिन्दोस्तान-विरोधी, साम्राज्यवाद-परस्त नीति को पलट दे। हम यह मांग करते हैं कि सभी राष्ट्रों और लोगों के विदेशी साम्राज्यवादी दबाव से मुक्त, अपनी-अपनी आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था निर्धारित करने के अधिकारों की हिफ़ाज़त की जाये।

अफ़गान लोगों के साम्राज्यवाद-विरोधी, राष्ट्र-मुक्ति के संघर्ष पर हमला करने के लिये, अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा गठित कठपुतली अफ़गान सेना को “प्रशिक्षण” देने के मकसद के साथ, हिन्दोस्तानी सेना को अफ़गानिस्तान भेजने के मनमोहन सिंह सरकार के फैसले की हम कड़ी निंदा करते हैं। हम मानते हैं कि यह अपने अफ़गान भाइयों और बहनों के खिलाफ़ अफ़गानिस्तान में हस्तक्षेप करने का एक बहाना है।

हम मानते हैं कि अमरीकी साम्राज्यवाद आतंकवाद का सबसे बड़ा स्रोत है।

कब्ज़ाकारी सेनाओं के खिलाफ़ अफ़गानिस्तान के लोगों के क्रान्तिकारी संघर्ष को आतंकवाद नहीं कहा जा सकता है। हम उनके क्रान्तिकारी मुक्ति संघर्ष का समर्थन करते हैं।

पाकिस्तान, हिन्दोस्तान और दूसरे देशों में, ट्रेनों व बसों, मस्जिदों व मंदिरों, अदालतों व बाजारों में, बम विस्फोटों से बेकसूर लोगों को मौत के घाट पहुंचाना – यह आतंकवाद है। हम इस आतंकवाद की निन्दा करते हैं। हम अमरीका में 11 सितम्बर, 2001 को आतंकवादी हमलों की निन्दा करते हैं।

यह सभा का मुख्य विषय था।

लोक राज संगठन के अध्यक्ष श्री राघवन ने बताया कि बीते 10 वर्षों में किस तरह अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके मित्रों ने राष्ट्रों की आज़ादी और संप्रभुता पर और प्रत्येक राष्ट्र व लोगों के अपनी पंसद की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था अपनाने के अधिकार पर सभी प्रस्थापित कायदे-कानूनों को पलट देने की कोशिश की है। क्रूर सैनिक हस्तक्षेप के जरिये “सत्ता परिर्वतन” करना और अपने पिट्ठुओं को सत्ता पर लाना – इसी तरीके से उन सभी देशों में साम्राज्यवादी हितों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो अमरीकी साम्राज्यवादियों के हुक्म को नहीं मानते हैं।

मोहम्मद सलीम इंजिनियर, जमात ए इस्लामी हिन्द के सचिव, ने कई तथ्यों के आधार पर अपना यह तर्क पेश किया कि अमरीकी राज्य खुद ही 11 सितम्बर, 2001 के आतंकवादी हमले का आयोजक था। उस हमले को अफ़गानिस्तान पर आक्रमण करने का बहाना बनाया गया था। उन्होंने अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ मित्रता बनाने के खतरों पर रोशनी डाली। उन्होंने अफ़गान लोगों के खुद अपना भविष्य तय करने के संप्रभु अधिकार की हिफ़ाज़त में सभी को आगे आने का आह्वान किया।

प्रकाश राव ने दुनिया पर हावी होने की वर्तमान बर्तानवी-अमरीकी रणनीति की मुख्य विशेषताओं पर विस्तारपूर्वक बात रखी। इस रणनीति का उद्देश्य है मध्य व पश्चिमी एशिया के प्रचूर तेल स्रोतों पर अपना साम्राज्यवादी नियंत्रण जमाना और सभी संभावित प्रतिस्पर्धियों को पीछे धकेलना। इस रणनीति के दूसरे पहलू हैं – तथाकथित “मानवतावादी” कारणों के लिये “सत्ता परिवर्तन” के नाम पर, हमलावर जंग और सैनिक दखलंदाजी करना, “आतंकवाद पर जंग” के नाम से सारी दुनिया के मुसलमान लोगों पर भयानक हमला करना और बढ़ता हुआ राजकीय आतंकवाद।

70 के दशक के अंतिम वर्षों में ईरान की क्रान्ति और अफ़गानिस्तान पर सोवियत सामाजिक साम्राज्यवादी कब्जे़ से शुरू करके, उन्होंने इस इलाके में पूरे घटनाक्रम का विवरण पेश किया और यह स्थापित किया कि आज अमरीकी साम्राज्यवाद ही आतंकवाद का मुख्य स्रोत है।

उन्होंने बताया कि सारी दुनिया में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों को इस हमले का खास शिकार बनाया जा रहा है, क्योंकि उन लोगों ने शासन के तरीकों व जीवन शैली में बर्तानवी-अमरीकी नुस्खों को मानने से इंकार किया है।

इस समय अमरीकी साम्राज्यवाद पाकिस्तान पर क्यों निशाना साध रहे हैं और हिन्दोस्तान के लिये इसका क्या परिणाम होगा, इस पर विस्तारपूर्वक बात रखते हुये, उन्होंने अमरीकी नीति के खिलाफ़ पाकिस्तान में जन विरोध का जिक्र किया। पाकिस्तान की जनता अफ़गानिस्तान में अमरीकी साम्राज्यवादियों की मदद नहीं करना चाहती है। पाकिस्तान, चीन और हिन्दोस्तान के लिये प्रवेश द्वार भी है।

चीन, हिन्दोस्तान, रूस तथा ईरान को रोकना – यह इस इलाके में बर्तानवी-अमरीकी नीति है।

प्रकाश राव ने अफ़गानिस्तान के लोगों के खिलाफ़ लड़ने के उद्देश्य से, कठपुतली अफ़गान सरकार को प्रशिक्षण देने के लिये हिन्दोस्तानी सेना को भेजने के मनमोहन सिंह सरकार के फैसले की निन्दा की। उन्होंने अपने देश के लोगों से आह्वान किया कि इस संकट की घड़ी में अफ़गान और पाकिस्तानी लोगों का साथ दें और बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यावादियों को एशिया से बाहर भगाने के लिये सभीसाम्राज्यवाद-विरोधी ताकतों की एकता बनायें।

डा. राकेश रफीक ने हिन्दोस्तान के मामलों में बढ़ती अमरीकी साम्राज्यवादी दखलंदाज़ी की निंदा की और इस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवाद के इरादों के खिलाफ़ एक व्यापक साम्राज्यवाद-विरोधी आन्दोलन का आह्वान किया।

उन्होंने बताया कि दोनों अफ़गानिस्तान और इराक में हिन्दोस्तानी राज्य कब्ज़े के आरंभ से व उससे पहले भी, अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर काम करता रहा है। सोवियत कब्जे़ के दौरान हिन्दोस्तान ने सोवियत सामाजिक साम्राज्यवादियों के साथ सहकार्य किया। अफ़गानिस्तान में हिन्दोस्तानी राज्य जो आधारभूत ढांचा बना रहा है, वह कब्ज़ाकारी ताकतों को मदद करने के लिये है। वे लोगों के लिये स्कूल और अस्पताल नहीं बना रहे हैं।

सभा को संबोधित करने वाले अन्य वक्ता थे मोहम्मद अहमद, प्रोफ. अनंत नारायण, पी.सी. हमजाह, का. प्रताप श्यामल, प्रोफ. भरत सेठ, जम्मू एंड कश्मीर पीस फाउंडेशन की ओर से मोहम्मद अमीन भट्ट, प्रोफ. शिवमंगल सिद्धांतकर, इंतेजार नईम, आदि। इराक के कब्जे़ के विषय पर एक भावुक उर्दू गीत पेश किया गया।

मणिपुरी छात्र कार्यकर्ताओं, मलेम और रोजेश ने विभिन्न राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं के प्रति हिन्दोस्तानी राज्य की साम्राज्यवादी नीति तथा लोगों के राष्ट्रीय जज़बातों को नकारने के लिये बलप्रयोग की कड़ी निंदा की। उन्होंने देश की सभी साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम का विरोध करने का आह्वान किया।

सभा में एकमत से कई प्रस्ताव स्वीकार किये गये। प्रस्तावों के विषय थे – अफगानिस्तान से सभी विदेशी सेनाओं को फौरन बाहर निकालने की मांग; शान्ति और लोगों की खुशहाली के लिये सबसे बड़े खतरे बतौर अमरीका नीत आतंक पर जंग की निंदा; पाकिस्तान के लोगों के साथ भाईचारा; अमरीका और हिन्दोस्तान के बीच निकट संबंधों के खिलाफ़; और एक मजबूत साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन गठित करने के लिये सभी शान्तिपूर्ण और लोकतांत्रिक ताकतों की एकता।

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