इतिहास में सबसे बड़ी राजकोषीय आर्थिक सहायता के बावजूद, अमरीकी अर्थव्यवस्था अभी तक 2007के दिसम्बर से शुरू हुई विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से सम्भल नहीं पायी है।
इतिहास में सबसे बड़ी राजकोषीय आर्थिक सहायता के बावजूद, अमरीकी अर्थव्यवस्था अभी तक 2007के दिसम्बर से शुरू हुई विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से सम्भल नहीं पायी है।
“सुर्खियां” बेरोजगारी दर, जिस पर मीडिया ज़ोर देती है, वह जून 2011 में 9.2 प्रतिशत थी। अगर हम छोटी अवधि में रोजगार के प्रति हतोत्साहित हुये मज़दूरों को इसमें जोड़ें तो बेरोजगारी दर 16.2 प्रतिशत हो जाती है। अगर लम्बी अवधि में रोजगार के प्रति हतोत्साहित हुये मज़दूरों को भी मिलाया जाये, जैसा कि 1980तक सरकारी तौर पर किया जाता था, तब जून की बेरोजगारी की दर 22.7 प्रतिशत हो जाती है। दूसरे शब्दों में, जो रोजगार चाहते हैं, उनका एक-पांचवें से एक-चैथा हिस्सा रोजगार से वंचित है।
मैक्सिको के प्राध्यापक जेम्स एम. साईफर ने एक अध्ययन में दिखाया है कि 1970 के दशक और वर्ष 2009 के बीच, अमरीकी मज़दूरों की औसत उत्पादकता 55.5 प्रतिशत बढ़ी है। इसी अवधि में, प्रति घंटे वास्तविक आमदनी (भत्तों के बिना) में 10प्रतिशत कटौती हुयी है।
मज़दूर वर्ग के परिवारों में गुस्सा बढ़ रहा है। राष्ट्रपति ओबामा की लोकप्रियता के मूल्यांकन में तेज़ी से गिरावट आई है।
जुलाई के अंतिम और अगस्त के पहले सप्ताह में एक बड़ा नाटक किया गया जिससे अमरीकी लोगों और दुनिया के पूंजीपतियों को लटका कर रखा गया। एक दिखावा किया गया था कि अगर अमरीका की दोनों प्रमुख पार्टियां सार्वजनिक ऋण की सीमा को बढ़ाने में सहमत नहीं होती, तो अमरीकी सरकार के पैसे खत्म हो जायेंगे और पूरी अर्थव्यवस्था ठप्प हो जायेगी। एक लंबे लेन-देन के बाद, जो प्रसार माध्यमों में मुख्य खबर बना रहा, रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच 2अगस्त को सार्वजनिक ऋण के विषय में एक समझौता हुआ।
दोनों पार्टियों को शुरू से ही मालूम था कि सार्वजनिक ऋण की सीमा बढ़ाने में उनकी सहमति थी। उनकी लेन-देन सिर्फ ठोस मात्रा के बारे में थी। यह सहमति बनेगी कि नहीं, इसे लेकर असमंजस और अतिश्योक्तियों से शासक वर्ग ने फायदा उठा कर, मज़दूर-विरोधी और समाज-विरोधी विधेयक तैयार किया और उसे ऐसे पेश किया जैसे कि वह लोगों के लिये अच्छी खबर हो।
12 जुलाई को अमरीका के सभी प्रमुख पूंजीवादी इजारेदारों ने राष्ट्रपति और कांग्रेस के सदस्यों को एक पत्र भेजा जिसमें मांग रखी कि “अमरीकी सरकार किसी भी हालत में अपना वित्तीय दायित्व निभाने में न चूके।” पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में सबसे ताकतवर इजारेदारों के समर्थन जुटाने वाले गुट: बिजनेस राऊंड टेबल, वित्तीय सेवा राऊंड टेबल, उत्पादकों का राष्ट्रीय संस्था, तथा अमरीकी चेंबर ऑफ कॉमर्स शामिल थे। इसमें सिटी ग्रुप, जे.पी. मॉर्गन चेज, मॉर्गन स्टेनली, ऐटना, ऑलस्टेट, डाउ, दूपोन्ट, बेक्टेल, फाईज़र, यू.पी.एस., वेरीजोन, व्हर्लपूल और जि़रोक्स से जुड़े व्यक्ति भी शामिल थे।
14 जुलाई को फैडरल रिज़र्व (अपने देश के रिज़र्व बैंक जैसे) के अध्यक्ष, बर्नान्के ने मांग की कि बजट कटौती की “एक मजबूत विश्वसनीय योजना” होनी चाहिये। उसने कहा कि सार्वजनिक ऋण की सीमा न बढ़ा पाना और बजट में खरबों की कटौती न कर पाना अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा और “वित्त व्यवस्था में गहरा धक्का” लगायेगा।
2 अगस्त के सौदे के अनुसार, अगले दो दशकों में केन्द्रीय बजट में क्रमशः ज्यादा से ज्यादा संभावना बनाई जायेगी, जिससे वित्तीय पूंजी की संस्थाओं के सार्वजनिक ऋणों का सालाना सूद भरा जायेगा और साथ ही सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा पर वित्तीय आवंटन में उतनी ही कटौती की जायेगी।
अमरीका का आर्थिक संकट, पूंजीवाद के उच्चतम पड़ाव पर पहुंचने की वजह से है, जिसमें परजीवी वित्तीय पूंजी पूरी अर्थव्यवस्था और राज्य पर अपना वर्चस्व जमा लेती है। आर्थिक संकट की परिस्थिति में वित्तीय अल्पतंत्रवादी ऐसे कदम लेते हैं जिससे सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा पर आवंटित धन में कटौतियों के जरिये वे अपनी लूट-खसौट को बढ़ाना सुनिश्चित करते हैं। इससे श्रम का शोषण और पूंजीवाद के परजीवीपन का दर्जा और भी बढ़ता है और भविष्य में और भी भयंकर आर्थिक संकटों का रास्ता तैयार हो जाता है।