अफ़गानिस्तान पर कब्जे़ की दसवीं सालगिरह : साम्राज्यवादियों, अफ़गानिस्तान से बाहर निकलो!

एशिया के राष्ट्रों व लोगों, साम्राज्यवाद के अपराधिक आक्रमण का अन्त करने के लिये एक हो!

दस साल पहले, 8 अक्टूबर को, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने “आतंकवाद पर जंग” के नाम पर अफग़ानिस्तान पर खुल्लम-खुल्ला हमला किया। इन पिछले दस सालों में बहादुर अफग़ान लोगों की धरती को अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके सहयोगियों के सैनिकों के जूतों तले रौंदा है। उनके गांवों, नगरों, सड़कों और यहां

एशिया के राष्ट्रों व लोगों, साम्राज्यवाद के अपराधिक आक्रमण का अन्त करने के लिये एक हो!

दस साल पहले, 8 अक्टूबर को, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने “आतंकवाद पर जंग” के नाम पर अफग़ानिस्तान पर खुल्लम-खुल्ला हमला किया। इन पिछले दस सालों में बहादुर अफग़ान लोगों की धरती को अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके सहयोगियों के सैनिकों के जूतों तले रौंदा है। उनके गांवों, नगरों, सड़कों और यहां तक कि उनके पहाड़ों पर भी बार-बार बम बरसाये हैं। अफग़ानिस्तान पर हमले और कब्जे़ के बाद, अस्तित्वहीन “जनसंहार के हथियारों” को ध्वस्त करने के बहाने, इराक पर अपराधिक बमबारी और साम्राज्यवादी विजय हासिल की गयी।

हमलावरों के सामने कभी सिर न झुकाने की अपनी स्वाभिमानी परंपरा को कायम रखते हुये, अफग़ान लोगों ने इतने सालों तक प्रतिरोध जारी रखा है। इसका नतीजा है कि अमरीकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में किये गये कब्जे़ में भारी समस्यायें छायी हैं। विदेशी बलों के खिलाफ़ विरोध दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है।

मज़दूर एकता लहर की सोच है कि अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके सहयोगियों द्वारा अफग़ानिस्तान पर किया गया हमला और कब्ज़ा, मानवता के खिलाफ़ एक बहुत बड़ा अपराध है, जिसकी निंदा सभी शांति व न्याय पसंद लोगों को ज़बर्दस्त तरीके से करनी चाहिये। विदेशी कब्ज़ाकारी सैनिकों से अपनी मातृभूमि की आज़ादी पाने का, अफग़ान लोगों का संघर्ष पूरी तरह से जायज़ है और यह पूरी मानवता के समर्थन के काबिल है।

अमरीका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी प्रचार, अफग़ानिस्तान के हमले को दस साल पहले, 11 सितंबर, 2001 को ध्वस्त हुयी न्यूयॉर्क की वल्र्ड ट्रेड सेंटर की प्रतिक्रिया बतौर प्रस्तुत करता है। परन्तु सच्चाई तो यह है कि 11 सितंबर के आतंकवादी हमले के महीनों पहले ही वॉशिंगटन, अफग़ानिस्तान पर हमलों की तैयारी कर रहा था। 11 सितंबर के आतंकवादी हमले सच में किसने आयोजित किये थे यह आज भी एक रहस्य है। परन्तु एक चीज जो बिल्कुल साफ है कि इससे अमरीकी सरकार को अफग़ानिस्तान पर बेरोक-टोक हमला करने का बहाना निश्चित रूप से मिला।

 

अमरीकी नेतृत्व में अफग़ानिस्तान पर हमला और कब्ज़ा, पिछले कुछ दशकों के दौरान एशिया में खेली जाने वाली भू-राजनीति के संदर्भ में ही ठीक से समझा जा सकता है। शीत युद्ध के दौरान, अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी, सोवियत संघ पर काबू रखने के लिये अमरीका शाह नीत ईरान व पाकिस्तान का इस्तेमाल करता आया था। 1979 में अफग़ानिस्तान पर सोवियत हमले और उसी साल ईरानी क्रांति से अमरीकी वफादार शासक, शाह का तख़्ता पलटने के बाद, अमरीका को महसूस हुआ कि इस क्षेत्र पर उनकी पकड़ कमजोर हुयी है। सिर्फ अपने निजी हितों को आगे धकेलने के लिये उसने अफग़ानिस्तान की राजनीति में दखलंदाजी शुरू की। सोवियत कब्जे़ के खिलाफ़ जंग में उन्होंने अलग-अलग समर नेताओं पर अरबों डालर खर्च किये। दस साल के बाद सोवियत बलों की पराजय और उनके वापस जाने के बाद, 1990 के दशक में अमरीका की शह में शक्तिशाली हुये समर नेताओं ने देश को एक अस्त-व्यस्त गृहयुद्ध में धकेल दिया जो कई साल जारी रहा। 1996 में एक नये गुट, तालीबान के सत्ता में आने पर ही गृहयुद्ध समाप्त हुआ।

सोवियत संघ के पतन के बाद, तेल, गैस व अन्य

संसाधनों से सम्पन्न सोवियत संघ में सम्मिलित मध्य एशियाई देशों पर अपना प्रभाव जमाने की अमरीकी योजनाओं में, अफग़ानिस्तान पर उसका नियंत्रण, अत्याधिक महत्वपूर्ण हिस्सा बना। इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि शुरू में, अमरीकी सरकार ने तालीबान सरकार को मजबूत करने में सहयोग दिया। साथ ही, तेल की नयी खदानों पर नियंत्रण जमाने की आशा में, कुछ अमरीकी तेल कंपनियों ने वहां परियोजनाओं में बहुत सा पैसा लगाया। क्लिंटन सरकार के समय, जब तालीबान ने अमरीका के नज़दीक के कुछ समर नेताओं के साथ सत्ता बांटने से इनकार किया, तब अमरीकी साम्राज्यवाद तालीबान के खिलाफ़ होने लगा।

कब्जे़ के पिछले दस वर्षों में अफग़ान लोगों के खिलाफ़ अनगिनत अपराध किये गये हैं। देश के विभिन्न भागों को अलग-अलग कब्ज़ाकारी ताकतों के बीच बांटा गया है। तालीबान और उनके समर्थकों को निकालने के नाम पर, घरों में लगातार छापे मारे जाते हैं; सड़कों पर सशस्त्र विदेशी सैनिक गश्त लगाते हैं, जिनसे महिलाओं व बच्चों और वृद्ध लोगों के सहित आम लोगों पर निर्दयता से अत्याचार होते हैं और उनके जीवन बहुत असुरक्षित हो गये हैं।

असैनिक नागरिक इलाकों और सड़कों पर हवाई बमबारी और विमानों से दागी गयी गोलियों की बौछारों से बड़ी संख्या में लोग मारे गये हैं, जिसे पेंटागन के प्रवक्ता “साथ-साथ होने वाला अनिवार्य नुकसान” बता कर रूखेपन से टाल देते हैं। प्रतिरोध का समर्थन करने के जुर्म में हिरासत में लिये गये लोगों को, देश के अंदर और बाहर के बंदी शिवरों में, वहशी यातनायें दी जाती हैं और मार दिया जाता है। अफग़ानिस्तान के अंदर की घिनौनी परिस्थिति के कारण कम से कम 32लाख अफग़ान लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा है। इनमें से करीब 27 लाख लोग पाकिस्तान व ईरान में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

दुनियाभर में, आक्रमणों और विस्तारवाद की गतिविधियों में, अफग़ानिस्तान पर आक्रमण एक नया स्तर चिन्हित करता है। यह अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके नाटो सहयोगियों द्वारा तथाकथित “आतंकवाद पर जंग” की शुरुआत थी। इस आक्रमण में, मुस्लिम धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को, वे कहीं से भी क्यों न हों, उन्हें दुष्ट बताया जा रहा है। उन पर हमला करने के लिये किसी जुर्म का सबूत देना भी जरूरी नहीं समझा जा रहा है, चाहे वे अमरीकी नागरिक हों, या दुनिया के किसी भी देश की मान्यता-प्राप्त और प्रस्थापित सरकार ही क्यों न हो।

“सत्ता परिवर्तन” और उनके द्वारा चयनित पिट्ठुओं को प्रस्थापित करना, निशाना बनाये गये किसी भी देश में साम्राज्यवादी हित को आगे बढ़ाने का नियमित तरीका बन गया है। ड्रोन हमलों और क्लस्टर बम जैसे नये फासीवादी सैन्य तकनीकी के जरिये विनाश और निशाना बनाये गये लोगों में खौफ को अधिकतम बनाया जा रहा है जबकि इनसे साम्राज्यवादी हमलावरों के लिये जोखिम को कम किया जा रहा है।

लोगों की जिन्दगी, आज़ादी और उनकी राजनीतिक संप्रभुता को किनारे किया जा रहा है जैसे कि इनकी कुछ अहमियत ही नहीं है। इन सबको “मानवता के लिये दखलंदाजी” के नाम पर उचित ठहराया जा रहा है, जैसा कि लिबिया में किया जा रहा है!

अफग़ानिस्तान से अमरीकी फौज को क्रमशः घटाये जाने के आश्वासन देने के साथ ही, इसके विपरीत, अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने कब्ज़ाकारी सैनिकों की संख्या उल्लेखनीय तौर पर बढ़ा दी है। तथाकथित छुपे हुये आतंकवादियों पर निशाना साधने के नाम पर, उसने पाकिस्तानी इलाके में स्त्रीयों, पुरुषों और बच्चों तथा घरों पर ड्रोन वायुयानों से बमबारी और तेज़ कर दी है।

अफग़ान व अरब लोगों के साथ, फ़ारस व बगदाद, मध्य एशिया के राष्ट्रों, चीनी लोगों तथा दूसरे एशियाई देशों के साथ, प्राचीन काल से, हिन्दोस्तानी मज़दूर वर्ग व लोगों के आपस-बीच अच्छे संबंध रहे हैं और पारस्परिक हित के व्यापार संबंध भी रहे हैं। अमरीका के नेतृत्व में “आतंकवाद पर जंग” से एशिया में शांति को, यहां के लोगों की जिन्दगी को तथा प्राचीन राष्ट्रों व सभ्यताओं के बीच मित्रता को गंभीर खतरा है।

हिन्दोस्तानी सरकार के द्वारा अफग़ानिस्तान पर अन्यायी आक्रमण और कब्जे के खिलाफ़ खुल कर विरोध न करना, यह कभी माफ़ नहीं किया जा सकता है। हमारे देश के शासक, अफग़ानिस्तान में निवेश और कूटयुक्तियों के जरिये, हिन्दोस्तानी निगमों के हितों में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि यह सब अफग़ानिस्तान के “पुनर्निर्माण” के नाम पर किया जा रहा है, फिर भी, इनसे इस क्षेत्र में साम्राज्यवादी अपराधों में, हिन्दोस्तानी सरकार की भागीदारी बनती है।

परिस्थिति का तकाज़ा है कि हिन्दोस्तान सहित एशिया की सरकारें, दूरदर्षिता से कदम उठायें, ताकि एशिया में राष्ट्रीय संप्रभुता और शांति पर निर्दयी अमरीका नीत साम्राज्यवादी हमले बंद हों।

आक्रमणकारी देशों के लोगों सहित, दुनिया भर के आज़ादी पसंद लोगों ने पिछले दस सालों में कभी भी अमरीका के नेतृत्व के साम्राज्यवादी आक्रमण को नहीं माना है। अफ़गानिस्तान और इराक के सैन्य कब्जे़ के विरोध में आज तक जन विरोध प्रदर्शन जारी हैं, जिनमें अमरीकी लोगों ने घोषणा की है “हमारे नाम पर नहीं!” और सैनिकों को तुरन्त वापस लाने की मांग की है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *