देश और दुनिया में हाल ही में हुई घटनाओं से आधुनिक समाज में संप्रभुता किसके हाथों में होनी चाहिए यह सवाल तीव्रता से सबके सामने पेश आया है। 11 सितम्बर, 2011 को लोक राज संगठन ने इस महत्त्वपूर्ण विषय पर दिल्ली में एक जनसभा का आयोजन किया। लोगों के हाथों
देश और दुनिया में हाल ही में हुई घटनाओं से आधुनिक समाज में संप्रभुता किसके हाथों में होनी चाहिए यह सवाल तीव्रता से सबके सामने पेश आया है। 11 सितम्बर, 2011 को लोक राज संगठन ने इस महत्त्वपूर्ण विषय पर दिल्ली में एक जनसभा का आयोजन किया। लोगों के हाथों में संप्रभुता लाने के आंदोलन से सरोकार रखने वाले कार्यकर्ताओं ने इस जनसभा में हिस्सा लिया। बड़ी संख्या में नौजवान इस सभा में शामिल हुए। सभा के मुख्य वक्ता कामरेड प्रकाश राव ने इस सवाल के सभी पहलुओं का विश्लेषण पेश किया।
अपनी प्रस्तुति की शुरुआत में उन्होंने याद दिलाया कि यह दिन न्यूयार्क पर हुए आतंकी हमले की 10वीं सालगिरह है जिसमें हजारों बेगुनाह लोग मारे गए थे। इस आतंकी हमले का बहाना बनाकर अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने “आतंकवाद पर जंग” का ऐलान किया और अफगानिस्तान पर हमला किया। अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके साथी देशों – ब्रिटेन और फ्रांस ने ऐलान किया कि वे देशों और लोगों की प्रभुसत्ता की कोई कद्र नहीं करते हैं। उन्होंने जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत को चरितार्थ किया है। लोगों को धोखा देने के लिए “आतंकवाद पर जंग”, “मानवीय सहायता” जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए उन्होंने खुद को किसी भी देश पर हमला करने का अधिकारी होने का ऐलान किया। इराक के पास जनसंहार के हथियार हैं, ऐसा दावा करते हुए अमरीकी साम्राज्यवाद ने इराक पर हमला किया और उस पर कब्ज़ा जमाया। हाल ही में अमरीकी साम्राज्यवाद ने अन्य साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ मिलकर लिबिया पर बम बरसाने और कब्ज़ा ज़माने में अगुवाई दी। वह सीरिया, ईरान और उत्तरी कोरिया को भी हमले की धमकी दे रहा है। पाकिस्तान, सोमालिया और अन्य कई देशों पर उसने बमबारी की है। साम्राज्यवादियों की ये सारी कार्यवाहियां इन देशों की संप्रभुता पर सीधा हमला है। साम्राज्यवादी इस बात से इंकार करते हैं कि लोगों को खुद अपनी पसंद की राजनीतिक व्यवस्था बनाने का हक है। जो देश ऐसे रास्ते पर चलने की कोई भी कोशिश कर रहे हैं जिससे साम्राज्यवादियों के हितों को चोट पड़ेगी, ऐसे देशों में सत्ता परिवर्तन के लिए साम्राज्यवादी, हिंसा और जंग का इस्तेमाल कर रहे हैं।
अमरीका में 10 साल पहले हुए आतंकी हमले में और हाल में दिल्ली में हाई कोर्ट बम धमाकों सहित, दुनिया भर में हुए आतंकी हमलों और साम्राज्यवादियों द्वारा अफगानिस्तान, इराक, लिबिया, पाकिस्तान, सोमालिया और अन्य देशों पर चलायी गयी जंग में मारे गए सैकड़ों हजारों लोगों की याद में एक मिनट का मौन रखा गया।
इसके बाद हिन्दोस्तानी संघ में शामिल तमाम राष्ट्रों और लोगों की संप्रभुता के सवाल पर कामरेड प्रकाश राव ने विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि इन सभी राष्ट्रों और लोगों को अपने भविष्य का फैसला खुद करने का अधिकार है, और वे यह भी फैसला कर सकते हैं कि इस संघ का हिस्सा बनना चाहते हैं या नहीं। लेकिन मौजूदा हिन्दोस्तानी संघ इस तरीके से बनाया गया है कि वह इन राष्ट्रों और लोगों के अस्तित्व से ही इंकार करता है, उनके हकों की गारंटी देने की बात तो बहुत दूर है। मौजूदा हिन्दोस्तानी संघ हर दिन कश्मीर, मणिपुर, असम और अन्य लोगों को यह याद दिलाता है कि संप्रभुता उनके हाथों में नहीं है। हिन्दोस्तानी संघ ने जबरदस्ती से इन इलाकों पर कब्ज़ा जमाया है और उसके सशस्त्र बल हर दिन खुलेआम लोगों का कत्लेआम और बलात्कार करते हैं। संप्रभुता की मांग कर रहे लोगों को आतंकवादी करार देकर उन पर हमला किया जाता है।
कामरेड प्रकाश राव ने बताया कि संप्रभुता का मसला और यह किसके हाथों में है यह सवाल, हाल ही के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के दौरान खुलकर सामने आया है, जब लोगों द्वारा कानून प्रस्तावित किये जाने के हक की मांग की गयी। इसके अलावा, लोगों ने कई कानून प्रस्तावित किये हैं, जैसे कि राज्य और पूंजीपतियों द्वारा जबरदस्ती से भूमि अधिग्रहण किये जाने के खिलाफ़ कानून, आधुनिक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के ज़रिये खाद्य के अधिकार का कानून, सामाजिक सुरक्षा और काम के अधिकार का कानून, इत्यादि। मौजूदा व्यवस्था में इन सारे प्रस्तावों को दबा दिया गया है और हमारे सत्ताधारी वर्ग ऐलान कर रहे हैं कि केवल सरकार को ही कोई भी कानून प्रस्तावित करने का अधिकार है। लोग लगातार सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) कानून को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं। इन सब पर कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी है, क्योंकि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया में लोगों के हाथों में कोई भी ताक़त नहीं है।
राजनीतिक प्रक्रिया में सुधार पर बात करते हुए प्रकाश राव ने बताया कि लोगों और उनकी समितियों में सत्ता निहित करने के लिए राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया में बुनियादी नवीकरण की जरूरत है। मौजूदा व्यवस्था में “चुने गए प्रतिनिधि” अपनी पार्टियों के प्रतिनिधि होते हैं, लोगों के नहीं। पार्टियां उन्हें चुनाव के लिए खड़ा करती हैं। इसके अलावा “व्हिप” (चाबुक) और “एंटी डिफेक्शन” कानून के ज़रिये उन्हें संसद, विधान सभा, इत्यादि में अपने ज़मीर के आधार पर वोट देने, या अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों की बात को रखने से रोका जाता है।
लोगों के हाथों में सत्ता लाने के लिए हर बस्ती और चोल, रिहायशी इलाकों, काम की जगहों, देहातों, इत्यादि में पक्ष-निरपेक्ष आधार पर लोगों की समितियां बनानी होंगी, और इन समितियों को चुनाव के लिए उम्मीदवार का चयन करना होगा। चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का हक सुनिश्चित करने के लिए चुनाव प्रक्रिया और कानून में बदलाव लाना होगा। चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का हक लोगों में निहित होगा और समितियों द्वारा इसकी पहल की जायेगी। चुने हुए प्रतिनिधि को समय-समय पर अपने काम का लेखा-जोखा लोगों के सामने पेश करना होगा और महत्वपूर्ण कानूनों पर लोगों की राय लेनी होगी। समितियों में संगठित लोगों को नए कानून प्रस्तावित करने का अधिकार होगा।
कामरेड प्रकाश राव ने राजनीतिक पार्टियों की भूमिका पर पुनःविचार करने और उसे पुनःपरिभाषित करने की अपील की। मौजूदा व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियां लोगों के नाम पर राज करती हैं और यह दावा करती हैं कि लोग खुद शासन नहीं चला सकते। इस पार्टी-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था को खत्म करना होगा। लेकिन राजनीतिक पार्टियों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। राजनीतिक पार्टियों को लोगों को सत्ता में लाने का साधन बनना होगा और न कि लोगों को निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखने वाला द्वारपाल। राजनीतिक पार्टियों को लोगों को खुद शासन चलाने के काबिल बनाने और उन्हें इसके लिए संगठित करने की भूमिका निभानी होगी। इसे सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया में बुनियादी बदलाव के लिए राजनीतिक पार्टियों को काम करना होगा।
कामरेड प्रकाश राव ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था आज के शासक वर्ग को संसदीय जनतंत्र और वोट देने के आम अधिकार के दिखावे के पीछे अपने राज को चलाने में अच्छी तरह से मदद करती है। आज वक्त की पुकार है – लोगों के हाथ में सत्ता के लिए संघर्ष को तेज करना। इस संघर्ष में संविधान को बदलना भी शामिल होगा जो कि मौजूदा व्यवस्था की रक्षा करता है। हिन्दोस्तान का संविधान यह दावा करता है कि “हम हिन्दोस्तान के लोगों” ने अपने-आप को यह संविधान दिया है। लेकिन इस संविधान को लोगों ने कभी भी अपनी स्वीकृति नहीं दी थी। यदि “हम हिन्दोस्तान के लोगों” ने अपने-आप को यह संविधान दिया है, तो हम लोगों को इसे फिर से लिखने और लोगों की इच्छा और जरूरत के अनुसार बदलने का अधिकार भी है।
अपनी प्रस्तुति के अंत में कामरेड प्रकाश राव ने राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन सहित चुनाव सुधार के लिए व्यापक अभियान चलाने का ऐलान किया।
मुख्य प्रस्तुति का लोगों ने तालियों के साथ स्वागत किया, और इसके बाद मंच को चर्चा के लिए खोल दिया गया।
कई लोगों ने संप्रभुता के सवाल पर पूरे जोश के साथ अपनी बात रखी। चर्चा का ऊँचा स्तर यह दिखाता है कि लोग काफी परिपक्व और सचेत हैं, और वाकई में लोगों द्वारा संप्रभुता को अपने हाथों में लेने का वक्त आ गया है।
सभा के अंत में कई महत्वपूर्ण मसलों पर प्रस्ताव पारित किये गए। इनमें शामिल हैं – लोगों के हाथों में संप्रभुता निहित करने का संघर्ष, कानून प्रस्तावित करने का हक, चुनाव प्रक्रिया में सुधार, भूमि अधिग्रहण कानून, राजकीय आतंकवाद और साम्राज्यवादी जंग के खिलाफ़ संघर्ष, इत्यादि। देशों और राष्ट्रों की संप्रभुता की रक्षा करने और प्रत्येक देश के लोगों को साम्राज्यवादी हमले के डर से मुक्त होकर अपने देश की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था कायम करने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाने का प्रस्ताव पारित करते हुए, सभा का समापन किया गया। इस अभियान को अक्टूबर 2001में अफगानिस्तान पर किये गए अमरीकी हमले की 10वीं सालगिरह के अवसर पर शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया।