संपादक महोदय,
मज़दूर एकता लहर
संपादक महोदय,
मज़दूर एकता लहर
1 से 15 दिसम्बर, 2010 के मज़दूर एकता लहर के अंक में ”मानव अधिकारों के संघर्ष का मूल सार श्रमजीवी लोकतंत्र का संघर्ष है” इस शीर्षक का लेख बहुमूल्य और शिक्षाप्रद था। यह वैज्ञानिक विश्लेषण की परम्परा के लिहाज से बहुत ऊंचे स्तर का था, जिसमें हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी माहिर है। यह लेख अनिवार्यत: पक्षनिरपेक्ष नहीं है क्योंकि हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी मज़दूर वर्ग की अगुवा पार्टी है।
लेख में साफ तरीके से कहा गया है कि हम एक ऐसी मंजिल पर हैं जहां मेहनतकश लोगों और जनता के अनुभव ने मानव अधिकारों की एक आधुनिक परिभाषा दी है कि मानव होने मात्र के नाते सभी मानवों के अधिकार हैं। आज दुनियाभर में इनकी पुष्टी नहीं हो रही है जो इस सच्चाई को दर्शाता है कि विद्यमान विश्व व्यवस्था पूंजीवादी इजारेदारी का आधिपत्य है और थोड़े से अधिकारों की भी पुष्टि करने में असमर्थ है।
आतंकवाद के जरिये और इस या उस देश को दुष्ट राज्य घोषित करके, आतंक फैलाने से दुनिया भर के शासकों के घेरे ने मानव अधिकारों पर अभूतपूर्व पैमाने पर जंग छेड़ दी है। अंदरूनी तौर पर, पूंजीवादी शासकों ने श्रमिकों और जनता पर एक जबरदस्त जंग छेड़ा है, जो मुश्किल से जीते गये, मानव लायक काम करने की हालतों, रोजगार की सुरक्षा, आठ घंटे की कार्य अवधि, आदि, अधिकारों को छीन रहा है। फाशीवादी कानूनों से लैस होकर, वे चाहते हैं कि श्रम की सभी मांगों को पैरों तले रौंद दिया जाये। इसी वास्तविकता के चलते, हर साल हम 10 दिसम्बर को, मानव आधिकारों के दिन बतौर मनाते हैं।
दुनिया भर के शासकों को किसी भी चीज के सार तत्व का सत्यानाश करके सिर्फ उसके खोखले बाहरी रूप को बरकरार रखने का बहुत अनुभव है। दुनिया भर के मेहनतकश लोगों के लिये एक चुनौती है कि कैसे श्रमजीवी वर्ग का लोकतंत्र लाया जाये ताकि मानव अधिकारों का मुद्दा निकम्में पूंजीपतियों के हाथों से छीन कर, लागू करने के लिये सामने लाया जाये। अपने स्वभाव से ही, श्रमजीवी जब अपनी मुक्ति पायेंगे तब वे समाज के सभी नये तत्वों को पुनर्जीवित करेंगे, जिन्हें परजीवी वर्गों ने कुचल कर रखा है।
मानव अधिकार दिवस के अवसर पर, मैं हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी द्वारा दिये बुलावे के साथ सहमत हूं कि मानव अधिकार के लिये संघर्ष श्रमजीवी लोकतंत्र का संघर्ष है।
भवदीय,
एस. नायर, कोची