खुदरा कीमत कम करने के लिए तेल तथा उसके सब उत्पादों से सीमा शुल्क तथा एक्साइज़ कर हटाओ!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय कमेटी का बयान, 23 सितम्बर, 2011
जब भी पेट्रोल या डीज़ल की कीमतें बढ़ायी जाती हैं, तब सरकार दावा करती है कि यह “असहनीय सबसीडिज़” की वजह से करना पड़ा है। यह साफ़-साफ़ झूठ है, क्योंकि अपने देश में पेट्रोल के उत्पादों पर भारी कर है, न कि उनके लिए सबसीडिज़ दिया जाता है। पेट्रोल के उत्पादों से टैक्स के द्वारा जितना कुल टैक्स इकट्ठा किया जाता है, उसके मुकाबले केंद्र के बजट में “सबसीडी” केवल 10 प्रतिशत है। रुपयों में देखेंगे तो हिन्दोस्तान में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत 70 रुपये है, जबकि चीन में 37, अमरीका में 40, पाकिस्तान में 39, श्री लंका में 47 और कनाडा में 53 रुपये हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय कमेटी का बयान, 23 सितम्बर, 2011
तेल विक्रय कम्पनियों ने हाल में जो पेट्रोल की कीमतें बढ़ायी हैं, उनकी हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी कड़ी निंदा करती है।
जून, 2010 में जब तेल कीमतों के नियम हटाये गये, तब से यह 8वीं बढ़ोतरी है। इस दौरान दिल्ली में खुदरा पेट्रोल की कीमत, प्रति लिटर 47.93 रुपये से बढ़कर 67 रुपये तक पहुंची है। इसका मतलब 15 महीनों में कीमत में लगभग 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है! देश के अधिकतर अन्य इलाकों में पेट्रोल की कीमत प्रति लिटर 70 रुपये से ज्यादा है।
सब्जि़यां, फल, दूध तथा दूध के उत्पाद, खाद्य तेल, गैस, अनाज, दालें, मांस, आदि जीवनावश्यक चीज़ों की कीमतों में बढ़ोतरी हो ही रही है। उसके ऊपर 8वीं बार पेट्रोल की कीमत बढ़ायी गयी है। सिर्फ़ पिछले दो सालों में ही अपने कामकाज़ी लोगों से बेहद महंगाई के ज़रिये लाखों करोड़ों रुपयों की चोरी की गयी है। पेट्रोल की कीमत की बढ़ोतरी से करोड़ों श्रमिक स्त्री-पुरुषों के रोज़ाना के जीवनयापन पर बुरा असर पड़ेगा, जो दुपहिया वाहन या छोटी गाड़ी से अपनी काम की जगह पर पहुंचते हैं। इससे परिवहन की कीमतें भी बढ़ जाएंगी, जिससे महंगाई और बढ़ेगी।
जब भी पेट्रोल या डीज़ल की कीमतें बढ़ायी जाती हैं, तब सरकार दावा करती है कि यह “असहनीय सबसीडिज़” की वजह से करना पड़ा है। यह साफ़-साफ़ झूठ है, क्योंकि अपने देश में पेट्रोल के उत्पादों पर भारी कर है, न कि उनके लिए सबसीडिज़ दिया जाता है। पेट्रोल के उत्पादों से टैक्स के द्वारा जितना कुल टैक्स इकट्ठा किया जाता है, उसके मुकाबले केंद्र के बजट में “सबसीडी” केवल 10 प्रतिशत है। रुपयों में देखेंगे तो हिन्दोस्तान में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत 70 रुपये है, जबकि चीन में 37, अमरीका में 40, पाकिस्तान में 39, श्री लंका में 47 और कनाडा में 53 रुपये हैं।
एक तरफ़ जब श्रमिक वर्ग तथा अपने लोगों के बहुत बड़े तबकों को बार-बार बढ़ायी जाने वाली पेट्रोल की कीमतों के बारे में बड़ा गुस्सा आ रहा है, तब योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने बड़ी खुशी के साथ इसका स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि “तो क्या हुआ है …यह एक अच्छी ख़बर है। मैं मानता हूं कि यह सुधारों के दांव-पेंचों के मूलभूत अंग का समर्थन तथा उसकी विश्वसनीयता में वृद्धि है।“
इज़ारेदार पूंजीपतियों का यह प्रवक्ता बहुत खुश है कि कीमतें अब “बाज़ार पर निर्भर हैं“ और इसलिए सरकार जि़म्मेदार नहीं है, यह दावा करते हुए सरकार को श्रमिक बहुसंख्या के जीवनयापन पर हमला करने का एक नया तरीका मिला है। यह कपटपूर्ण तर्क है। पहली बात तो यह है कि कीमत की बढ़ोतरी कब करनी चाहिए, यह निर्धारित करने में अब भी सरकार की भूमिका होती है। इस बात का सबूत मिला जब पश्चिम बंगाल और केरल में विधान सभाओं के चुनाव होने वाले थे। उससे पहले कई महीनों तक कीमतें नहीं बढ़ायी गयीं। सरकार की इस मामले में कितनी बड़ी भूमिका होती है, यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि पेट्रोल की कीमतों में आम लोग जो कीमत अदा करते हैं, उसमें से आधा तो केंद्र तथा राज्य सरकारों की तिज़ौरियों में टैक्स के रूप में जाता है। अमरीका के लोग प्रति लीटर पेट्रोल पर जितना टैक्स देते हैं, उसके मुकाबले हिन्दोस्तान में लोग तीन गुना से ज्यादा टैक्स देते हैं।
पेट्रोल की कीमत की आखि़री बढ़ोतरी के समर्थन में यह तर्क दिया जा रहा है कि डीज़ल, पेट्रोल, रसोई का गैस और केरोसिन की बिक्री से तेल बेचने वाली कंपनियों का नुकसान हो रहा है। लेकिन तेल रिफाइनरी कंपनियों में से बहुत सी ऐसी हैं जो बिक्री भी करती हैं, और इनके तो बेशुमार मुनाफ़े हो रहे हैं। इसकी वजह यह है कि केंद्र सरकार ने अलग-अलग उत्पादों पर अलग सीमा शुल्क की दर निर्धारित की हैं। कच्चे तेल की दर है 5 प्रतिशत, जबकि पेट्रोल उत्पादों की दर है 7.5 प्रतिशत। कच्चे तेल पर जो सीमा शुल्क है, उससे ग्राहकों से पेट्रोल, डीज़ल और सब उत्पादों के लिए जो कीमत अदा की जाती है, उसमें बढ़ोतरी होती है। उत्पादों पर जो सीमा शुल्क है, उससे सरकार को ज्यादा कुछ नहीं मिलता है, क्योंकि ऐसे बहुत कम उत्पादों की आयात हो रही है। उससे एक बात ज़रूर होती है – रिलायंस, इंडियन आयल, आदि देशी कंपनियों को जो “आयात समानता कीमत“ दी जाती है, उसमें बढ़ोतरी होती है। सीमा शुल्क के अलग-अलग दरों की वजह से इस प्रकार इन इज़ारेदार कंपनियों के अतिरिक्त मुनाफ़े बनाकर विश्व बाज़ार में स्पर्धात्मक फायदा मिलता है।
अगर कच्चे तेल और पेट्रोल के उत्पादों से सीमा शुल्क हटा दिया जाये, तो शुद्धीकरण कंपनियों को दी जा रही “आयात समानता कीमत” कम हो जाएगी, जिससे अतिरिक्त मुनाफ़े भी कम हो जाएंगे। इस प्रकार पेट्रोल उत्पादों की कीमतों में महत्वपूर्ण कटौती हो जाएगी। केंद्र का एक्साइज़ टैक्स हटाने से तो खुदरा कीमतें और कम हो जाएंगी।
देश में उत्पादित पेट्रोल उत्पादों की बिक्री से जो केंद्र का एक्साइज़ टैक्स इकट्ठा किया गया, वह 2009-10 में लगभग 87,000 रुपये करोड़ था। उसी साल कंपनियों के आयकर से उनको जो राहत दी गयी, वह 80,000 रुपये करोड़ थी, ऐसा अनुमान है। इसका मतलब यही होता है कि केंद्र सरकार को कच्चे और पेट्रोल के उत्पादों से सीमा शुल्क और एक्साइज टैक्स दोनों हटाना मुमकिन हो जाएगा। उसका मुआवजा वह कंपनियों को जो टैक्स राहत दी जाती है, उसको हटाकर अदा कर सकती है।
श्रमजीवी वर्ग, किसान और मेहनतकश लोग मोंटेक सिंह के इस तर्क से बिल्कुल सहमत नहीं हैं कि केंद्र सरकार अब पेट्रोल की कीमतों के लिए जि़म्मेदार नहीं है। केंद्र सरकार के पास अनेक विकल्प हैं, जैसे कि कच्चे तेल तथा उसके उत्पादों पर टैक्स लगाना। आज इनका इस्तेमाल मेहनतकश लोगों के जीवनयापन की कीमत पर चंद इज़ारेदार पूंजीपतियों का मोटा मुनाफा सुनिश्चित किया जा रहा है। इस नीति और दिशा की वजह से ही बार-बार लोगों के जीवनयापन पर हमले हो रहे हैं। सीमा शुल्क तथा एक्साइज़ सहित तेल और उसके उत्पादों से सब केंद्र के टैक्सों को पूरी तरीके से तथा त्वरित ख़ारिज़ करना चाहिए, इस मांग के लिए श्रमिक वर्ग, किसान तथा सब मेहनतकश जनता लड़ सकती है और लड़ना चाहिए।