कई सप्ताह के लम्बे समय तक चले और 6कई सप्ताह के लम्बे समय तक चले और 6 चरणों में आयोजित किये गए चुनाव का नतीजा घोषित किया गया जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व में जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू)-भाजपा गठबंधन को 243 में से 206 सीटें प्राप्त हुईं।
इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है। पिछले पांच वर्षों में नीतीश कुमार की सरकार ने पूरे राज्य में पूंजीवादी निकायों द्वारा निवेश करने और प्रसार करने के लिए नए आयाम और मौके खोल दिए। सरमायदारी मीडिया ने नीतीश कुमार को एक आदर्श मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया, जैसे उन्होंने इससे पहले आंध्र प्रदेश के चन्द्रबाबू नायडू और उड़ीसा के नवीन पटनायक को पेश किया था। विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, और बर्तानवी डी.एफ.आई.डी. और वित्त पूँजी के अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने बिहार के ”विकास” के लिए हजारों करोड़ डॉलर लगाये। सरमायदारी मीडिया ऐलान कर रहा है कि बिहार के लोगों ने ”जाति की राजनीति” को छोड़कर ”सुशासन” के लिए अपना वोट डाला है। लेकिन इसके बावजूद जाति के आधार पर बिहार में दलितों और अन्य लोगों का शोषण ख़त्म नहीं हुआ है।
जैसा कि सभी जानते हैं, सभी सामाजिक और आर्थिक सूचकांकों से, बिहार के लोग देश के अन्य भागों की तुलना में, सबसे घिनावने प्रकार के शोषण और दमन के शिकार रहे हैं। किसी ज़माने में बिहार अपने कपास के लिए दुनिया में प्रसिध्द था। उसी बिहार को बर्तानवी बस्तीवादी हुकूमत के चलते देश के सबसे पिछड़े इलाके में बदल दिया गया। 1857 के ग़दर के बाद बिहार के लोगों को जबरदस्त दमन और तबाही का शिकार बनाया गया। बस्तीवादी राज्य के तहत बिहार के किसानों और आदिवासियों पर सबसे पिछड़ा सामंतवादी दमन प्रस्थापित किया गया जिसे 1947 के बाद हिन्दोस्तानी पूंजीवादी वर्ग ने प्राकृतिक संसाधनों की लूट के साथ बरकरार रखा। हर वर्ष बिहार से लाखों नौजवान पढ़ाई के लिए देश के अन्य प्रान्तों में जाते हैं, और हजारों-लाखों मजदूर खेतों, फैक्ट्रियों और अन्य सेवाओं में काम करने के लिए बिहार से बाहर जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीवादी इजारेदारों ने बिहार के लोगों के श्रम और उपजाऊ जमीन को पहले से ज्यादा बड़े पैमाने पर लूटने और उसका शोषण करने के लिए कई प्रयास किये हैं। 2005 में चुन कर आई नीतीश कुमार की सरकार को इस इरादे के साथ कुर्सी पर बिठाया गया कि वह बिहार में पूंजीवाद के विकास को आसान बनाएगी। यही वजह है कि बिहार में सड़कों और महामार्गों का तेजी के साथ निर्माण् किया गया, निजी निवेशकों से वास्ता रखने वाले सरकारी महकमों में काम बेहतर ढंग से होने लगा और छोटे चोरों और अपराधियों के गिरोहों पर अंकुश लगाया गया।
नीतीश कुमार सरकार का ”सुशासन और विकास” का मंच बिहार में पूंजीवाद के विकास को तेजी से बढ़ाने के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के अलावा और कुछ नहीं है। इसका मकसद है सामंतवादी अवशेषों को ख़त्म किये बिना ही पूंजीवादी शोषण और लूट को और तेज करना।
इस चुनाव में नीतीश कुमार को जिताकर इजारेदारों की अगुवाई में पूंजीवादी वर्ग ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में अपना विश्वास व्यक्त किया है। कई दशकों की विकासहीनता और सामंतवादी पिछड़ेपन की पार्श्वभूमि में पूंजीवादी विकास को बिहार के लिए सबसे बढ़िया भविष्य के रूप में पेश किया जा रहा है। उड़ीसा में बढ़ते अंतर्विरोधों से बिहार के लोगों को समझ जाना चाहिए कि पूंजीवादी इजारेदारों के प्रसार का लोगों के अधिकारों और रोजी-रोटी पर क्या असर होता है।