मणिपुर में बिगड़ती परिस्थिति
जबकि हिन्दोस्तान के शासक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करते हैं, मणिपुर में लगातार सैनिक राज की परिस्थिति में भ्रष्टाचार और परजीवीपन असहनीय स्तर पर पहुंच गये हैं।
मणिपुर में बिगड़ती परिस्थिति
जबकि हिन्दोस्तान के शासक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करते हैं, मणिपुर में लगातार सैनिक राज की परिस्थिति में भ्रष्टाचार और परजीवीपन असहनीय स्तर पर पहुंच गये हैं।
बिना मणिपुरी लोगों के सहमति के और उनकी पीठ पीछे, जिस गुप्त तरीके से उनकी मातृभूमि को हिन्दोस्तानी संघ में सम्मिलित किया गया था, मणिपुर के लोगों ने उसे कभी नहीं स्वीकार किया है। इस जन विरोध के चलते, हिन्दोस्तानी सरकार ने मणिपुर को स्थायी तौर पर “अशांत क्षेत्र” घोषित कर रखा है। यहां सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (ए.एफ.एस.पी.ए.) लागू है जो सैनिकों को असीमित अधिकार देता है, और जिसके तहत सैनिकों को, सिर्फ संदेह के आधार पर, किसी की भी जान लेने का अधिकार होता है। भारी जनविरोध के दबाव में ए.एफ.एस.पी.ए. को कागज़ी तौर पर आंशिक रूप में हटाया गया है; इस वक्त यह राजधानी इम्फाल सहित दो जिलों में तथाकथित रूप से लागू नहीं है। परन्तु व्यवहारिक तौर पर शहर में कुछ खास नहीं बदला है। रहस्यमय बम विस्फोट हो रहे हैं और ए.एफ.एस.पी.ए. लागू नहीं होने के बावजूद भी, इन हालतों में सशस्त्र बलों को हर दिन सड़कों पर घूमने का बहाना मिलता है।
केन्द्र सरकार द्वारा लगाये गये सशस्त्र बल मणिपुर के जन जीवन पर इस हद तक हावी हैं कि वहां विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों को भी, गाडि़यों से निकाल कर, सड़कों पर उनकी तलाशी ली जाती है। इम्फाल के लोग हाल में हुयी ऐसी एक घटना का वर्णन करते हैं, जिसमें एक मंत्री की तलाशी ली गयी थी। ऐसा बताया जाता है कि सेना का कमांडर वर्दी में भी नहीं था और हाफ़-पैंट पहना था। उसके साथ इतने सारे मशीनगन लैस सैनिक थे कि मंत्री के पास कोई चारा नहीं था और उसे जनता के बीच अपमानित होना पड़ा।
आतंक की राजनीति
1 अगस्त को एक भीड़-भड़ाके की जगह पर बम विस्फोट हुआ, जिसमें कुछ बेगुनाह लोग मारे गये और बहुत से लोग जख्मी हुये। अगली सुबह, हिन्दोस्तान के गृहमंत्री और मणिपुर के मुख्यमंत्री, दोनों ने बयान दिया कि इम्फाल के बम विस्फोट के पीछे नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नगालैंड (आइसाक-मुईवा), एन.एस.सी.एन.(आई.एम.), का हाथ था। एन.एस.सी.एन.(आई.एम.) ने खुले तौर पर इसको नकारा है।
जबकि दोनों, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री, ने तुरंत एक ही संगठन पर इल्जाम लगाया जैसे कि सब कुछ किसी योजना के अनुसार हो रहा था, दोनों ने अलग-अलग श्रोताओं को संतुष्ट करने के लिये अलग-अलग कारण बताये।
चिदंबरम ने कहा कि एन.एस.सी.एन.(आई.एम.) के एक गुट ने ऐसा इसीलिये किया क्योंकि वे एन.एस.सी.एन.(आई.एम.) के दूसरे गुट के साथ हिन्दोस्तानी सरकार की वार्ता को भंग करना चाहते थे। मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने कहा कि बम का निशाना निकट का छात्रावास था जहां स्वायत्त जिला परिषदों के चुने हुये सदस्य ठहरे हुये थे। इस कहानी से उसका नगाओं के खिलाफ़ मणिपुर के लोगों को उकसाने का उल्लू सीधा होता है।
मज़दूर एकता लहर के पत्रकारों ने जिन भी लोगों से बातचीत की, सब की सोच है कि बम विस्फोट के पीछे केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा आश्रित अनेक सशस्त्र गुटों में से एक है। सत्ता के अंदरूनी संघर्षों के ही एक हिस्से बतौर, सेना के अफसर और राज्य मंत्री, आडंबरी नामों वाले भूमिगत जंगी गुटों के जरिये अपनी निजी सेनाओं का आयोजन कर रहे हैं।
लूट-खसोट की व्यवस्था
पूर्वोत्तर राज्यों में सरकारी एजेंसियों और विभागों में भ्रष्टाचार का स्तर हमेशा से पूरे हिन्दोस्तान के औसत से ज्यादा रहा है। मणिपुर में यह पूर्वोत्तर राज्यों के औसत से भी ज्यादा है।
मंत्रियों और अफसरों द्वारा अपना हिस्सा लेने के बाद, विभिन्न भूमिगत गुट अपने-अपने हिस्से पर दावा करते हैं। राजकीय आतंकवाद और निजी आतंकवाद में बढ़ोतरी एक दूसरे के समर्थन से होती है। इससे लूट-खसोट का स्तर बहुत ही ऊंचा हो गया है।
राज्य सरकार द्वारा करों से जमा किये गये राजस्व से भी ज्यादा पैसे, गैरकानूनी आतंक यंत्रों से जमा किये जाते हैं, जो गुप्त रूप से उच्च सरकारी अफसरों से जुड़े होते हैं। यह बात मणिपुर में काम करने वालों और रहने वालों को काफी अच्छे से पता है। दुकानदार आपको गोपनीयता से बतायेंगे कि कौन सा गुट असम रायफल्स से जुड़ा है और कौन सा राज्य के कामांडो से। विविध प्रकार के गुट हर एक दुकानदार और कंपनी से अपना “योगदान” जबर्दस्ती वसूलते हैं। सिर्फ वे कंपनियां इस वसूली से बच सकती हैं जिन्हें उच्च स्तरीय सुरक्षा प्राप्त है।
मणिपुर की अर्थव्यवस्था और वहां के लोगों की उत्पादक क्षमता इन परजीवियों द्वारा खाई जा रही है। जैसे ही अर्थव्यवस्था के किसी क्षेत्र में बेशी मूल्य बनता है, उस पर लूटने वाली ताकतें फौरन टूट पड़ती हैं, जैसे गिद्ध अपने शिकार पर टूट पड़ते हैं।
लूट-खसोट सिर्फ आर्थिक गतिविधियों तक ही सीमित नहीं हैं, यह सामाजिक कार्यक्रमों की सार्वजनिक निधि से भी ऐंठा जाता है। मज़दूर एकता लहर के संवाददाताओं को एक गांव के प्रधान ने बताया कि उसकी ग्राम पंचायत को पिछले साल मिले एक करोड़ रु. में से 37लाख रु. एक दर्जन से भी ज्यादा भूमिगत गुटों में बांटने पड़े।
केन्द्रीय सशस्त्र बलों, राज्य सरकार के यंत्रों और भूमिगत संगठनों के अन्दर विभिन्न गुटों के, सरकार और उसकी एजेंसियों में पद भरने के अपने-अपने कोटा हैं। जबकि सरकारी नौकरियां विशेषाधिकारों के जैसे बांटी जाती हैं, जन विकास के कार्यकलाप बहुत ही निम्न श्रेणी से होते हैं तथा दिन ब दिन और भी बुरे होते जा रहे हैं।
ऐतिहासिक सबक
ऐतिहासिक अनुभव से साबित होता है कि मणिपुर की समस्याओं का समाधान – अपनी रुचि की राजनीतिक व्यवस्था में एक सम्मानजनक जीवन – लोगों को दबा कर और उनके आत्म-निर्धारण के अधिकार को बलि देकर नहीं हो सकता है। जब तक लोगों को राष्ट्रीय, लोकतांत्रिक और मानवीय अधिकारों से वंचित रखा जायेगा तब तक परिस्थिति और बिगड़ेगी ही।
ए.एफ.एस.पी.ए. और सैनिक राज के जारी रखने की सफाई किसी भी बहाने नहीं दी जा सकती है। किसी भी समस्या का समाधान तो दूर, राजकीय आतंकवाद से निजी आतंकवाद पैदा होता है और लूट-खसोट व भ्रष्टाचार बढ़ता है।
राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्ष से एक अहम सबक हम यह सीखते हैं कि इंकलाबी संघर्ष की जीत सिर्फ बंदूक की नली के आधार पर नहीं हो सकती है। नयी दिल्ली के राष्ट्रीय उत्पीड़न व आतंकवाद से, जो भी मणिपुर को आजाद कराना चाहते हैं, उन्हें एक ठोस राजनीतिक कार्यक्रम और भविष्य का साफ नजरिया पेश करने की जरूरत है जो लाखों करोड़ों मेहनतकश लोगों के दिल और दिमाग को जीत ले।
जैसा कि हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के चैथे महाअधिवेशन की रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है, “आज की अवधि में जब क्रांति की लहर भाटे की अवस्था में है, इसमें जो लोग ’दीर्घकालीन लोक युद्ध’ बतौर गुरिल्ला युद्ध चला रहे हैं, वे या तो अपने शस्त्र छोड़ने के लिये मजबूर होते हैं या आतंकवादी गिरोह में तब्दील होने को मजबूर होते हैं। जन समर्थन के अभाव से ऐसी भूमिगत पार्टियां और गुट लोगों से ’कर’ और ’जुर्माना’ वसूलने या पैसों के लिये हत्यायें करने पर मजबूर हो जाते हैं। पूंजीपतियों की प्रतिस्पर्धी पार्टियां एक दूसरे से बदले लेने के लिये और जन आंदोलनों को बर्बाद करने के लिये, ऐसे गुटों का इस्तेमाल करती हैं।”
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने हिन्दोस्तान के नवनिर्माण का कार्यक्रम पेश किया है – जिसमें हिन्दोस्तानी संघ का स्वेच्छा पर आधारित पुनर्गठन शामिल है। ऐसा पुनर्गठन सभी राष्ट्रों और लोगों के, अपना भविष्य खुद तय करने के, अधिकार की इज़्ज़त करता है और उसकी पुष्टि करता है। इसके अनुसार, मणिपुर के लोग तय कर सकते हैं कि वे नये हिन्दोस्तानी संघ में शामिल होना चाहेंगे या नहीं।
आज की व्यवस्था से पीडि़त सभी लोगों की, राजनीतिक एकता बनाकर, मणिपुर की प्रगतिशील ताकतों द्वारा सैन्य व आतंकवादी हरकतों की अंधी गली का रास्ता खारिज करना अति अत्यावश्यक है। ए.एफ.एस.पी.ए. को पूरी तरह रद्द करने की तात्कालिक मांग के इर्द-गिर्द और हिन्दोस्तान के नवनिर्माण के कार्यक्रम के इर्द-गिर्द, राजनीतिक एकता बनाई जा सकती है और ऐसा करना ही होगा, ताकि अपना भविष्य खुद तय करने के मणिपुर के लोगों के अधिकार की पुष्टि हो सके।