7 सितम्बर, 2011 को दिल्ली उच्च न्यायालय के गेट पर हुये बम विस्फोट से अभी तक 13 जानें गयी हैं। तकरीबन 100लोग बुरी तरह घायल हुये हैं। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी अपने लोगों पर इस जानलेवा हमले की कड़ी निंदा करती है और उन सभी परिवारों के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है जिनके परिजन मारे गये या घायल हुये।
7 सितम्बर, 2011 को दिल्ली उच्च न्यायालय के गेट पर हुये बम विस्फोट से अभी तक 13 जानें गयी हैं। तकरीबन 100लोग बुरी तरह घायल हुये हैं। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी अपने लोगों पर इस जानलेवा हमले की कड़ी निंदा करती है और उन सभी परिवारों के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है जिनके परिजन मारे गये या घायल हुये।
जुलाई के मुंबई आतंकवादी हमले के तुरंत बाद यह आतंकवादी हमला, स्पष्ट करता है – कि केन्द्र सरकार या तो आम लोगों के जीवन को सुरक्षा देने में दिलचस्पी नहीं रखती या सुरक्षा देने के काबिल नहीं है।
उच्च न्यायालय में बम विस्फोट के बाद, हमेशा की तरह, प्रसार माध्यमों को गृह मंत्रालय के अंदर के “अज्ञात श्रोतों” से “सूचना” दी गयी कि इस हमले के पीछे यह या वह आतंकी गुट है। ऐसी भी खबरें आयी हैं कि कुछ खालिस्तानी गुटों का भी इसमें हाथ है। इन कथनों के दो उद्देश्य हैं – (1) इस बात से लोगों का ध्यान हटाना कि जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है, और (2) साम्प्रदायिक माहौल बनाना ताकि साम्प्रदायिक तनाव को जल्दी फैलाया किया जा सके।
सच्चाई तो यह है कि बम विस्फोट के 6दिनों के बाद भी, सरकार और राष्ट्रीय तहकीकात एजेंसी को स्वीकार करना पड़ रहा है कि अब तक उन्हें कोई सुराग नहीं मिला है। जानकारी के अनुसार, आतंकवादियों को पकड़ने के लिये उन्होंने अमरीका से मदद मांगी है!
अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों के लिये अमरीका दुनिया भर के देशों में आतंकवादी हमले आयोजित करने में कुख्यात है। यह भी ज्ञात है कि वह अपने पदचिन्हों को छिपाने के लिये “झूठे झंडे” की कार्यवाइयां आयोजित करता है। यानि कि, किसी और के नाम पर या किसी और के झंडे तले अपनी गंदी हरकतें करना ताकि उसका हाथ छुपा रहे। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि हिन्दोस्तान के अनेक आतंकवादी हमलों के पीछे अमरीकी हाथ नहीं रहा है। दुनिया भर में आंतकवाद के सबसे प्रमुख कर्ता, अमरीका से हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा दिल्ली बम विस्फोट को सुलझाने के लिये मदद चाहना, यह दिखलाता है कि सरकार पूरी तरह से निकम्मी और बेशर्म है।
अपने देश में पिछले दशक में हुये आतंकी हमलों में से एक घटना को भी नहीं सुलझाया गया है। कभी भी इनके आयोजकों को पहचानने, पकड़ने, मुकदमा चलाने और सजा देने का काम पूरा नहीं हुआ है। क्या हम विश्वास कर सकते हैं कि सरकार को सचमुच इनके आयोजकों के बारे में मालूम नहीं है या यह संभव है कि सरकार उनको बचाने का काम करती है?
ऐसी सरकार जो लोगों को सुरक्षा नहीं दे सकती है, उसे राज करने का कोई अधिकार नहीं है। पूंजीपतियों की राज्यसत्ता को हटा कर, मज़दूरों को, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों के साथ मिलकर, अपनी राज्यसत्ता स्थापित करनी होगी ताकि लोगों का जीवन सुरक्षित और खुशहाल हो सके।