केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन अध्यादेशों: अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन) अध्यादेश-2020, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश-2020, मूल्य का आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश-2020 पर मज़दूर एकता लहर ने अनेक किसान नेताओं की प्रतिक्रिया ली।
हम ‘किसान, मज़दूर, व्यापारी संघर्ष समिति’ के वरिष्ठ नेता हनुमान प्रसाद शर्मा और राजस्थान सरपंच यूनियन के पूर्व महासचिव ओम सहु के साथ साक्षात्कार के कुछ अंश यहां प्रकाशित कर रहे हैं।
‘किसान, मज़दूर, व्यापारी संघर्ष समिति’ के वरिष्ठ नेता हनुमान प्रसाद शर्मा के साथ साक्षात्कार
म.ए.ल. : सरकार के इन अध्यादेशों का क्या मक़सद है?
हनुमान प्रसाद शर्मा : पहली बात यह है कि यह सरकार का काम नहीं है। यह राज्य की नीति है। राज्य की नीति देश के हुक्मरान इजारेदार पूंजीपति तय करते हैं। प्रत्येक सरकार इसका अनुसरण करती है। 1990 में उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण को कांग्रेस सरकार ने लागू किया। उसके बाद, क्रमशः आने वाली सभी सरकारें, संयुक्त मोर्चा की सरकार हो, राजग सरकार हो, उसके बाद वाली कांग्रेस नीत संप्रग सरकार हो या उसके बाद वाली वर्तमान राजग सरकार हो, सभी ने राज्य की उसी नीति का अनुसरण किया है। आज भाजपा की वर्तमान सरकार जो कुछ कर रही है, वह इजारेदार पूंजीपति वर्ग के तय कार्यक्रम के अनुरूप ही कर रही है।
इन अध्यादेशों के ज़रिए कृषि व्यापार क्षेत्र को देश के इजारेदार पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़े के लिए खोला जा रहा है। वे ज़रूरी चीजें जिनका उपयोग मज़दूर, किसान और अन्य मेहनतकश लोग रोज़मर्रा के जीवन में करते हैं, जैसे कि गेहूं, चावल, दालें, आलू, प्याज, खाने का तेल, चीनी, आदि, अब इजारेदार पूंजीवादी कंपनियां इनकी जमाखोरी कर सकती हैं। मांग बढ़ने पर इन वस्तुओं को महंगा बेचकर ये कंपनियां मोटा मुनाफ़ा कमा सकती हैं। अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन) अध्यादेश-2020 का यही उद्देश्य है।
म.ए.ल. : लेकिन सरकार का कहना है कि इन अध्यादेशों के ज़रिए किसानों की आय दुगुनी हो जाएगी! इस पर आपके क्या विचार हैं?
हनुमान प्रसाद शर्मा : किसानों की कमाई दुगुनी होगी – यह प्रचार बिल्कुल निराधार, निरर्थक और झूठ है। इन अध्यादेशों से सिर्फ कृषि क्षेत्र से जुड़ी इजारेदार कंपनियां और मजबूत होंगी और उनके मुनाफे़ ज्यादा से ज्यादा हो जायेंगे।
अगर देश की सरकार की मंशा किसानों की आय को दुगुनी करने की थी तो 15 साल पहले जारी स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करना था। किसानों द्वारा उत्पादित फ़सलों के भंडारण का इंतजाम, परिवहन के उचित साधन और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की संपूर्ण फ़सल की ख़रीद आज तक लागू नहीं की गई। देश के किसानों ने इन मांगों को लेकर हजारों-हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर लागत से दुगना दाम दिए जाने की मांग की है। देश में आज तक 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। किसानों का कर्ज़ा माफ नहीं किया जाता है। इजारेदार पूंजीपति वर्ग के कर्ज़ों को माफ़ किया जाता है।
म.ए.ल. : राजस्थान में किसानों के सामने कौन-कौन सी ऐसी समस्याएं हैं, जो लंबे समय से आज तक बनी हुई हैं?
हनुमान प्रसाद शर्मा : राजस्थान में सिंचाई के पानी की समस्या है। राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में इंदिरा गांधी नहर के पानी का प्रबंधन ठीक ढंग से किया जाये तो समस्या को थोड़ा कम किया जा सकता है।
राजस्थान में आदिवासी क्षेत्रों में इसबगोल और जीरा की खेती होती है। वहां प्रसंस्करण की फैक्ट्रियां नहीं हैं। श्रीगंगानगर को अनाज का भंडार क्षेत्र कहा जाता है, इसके बावजूद यहां कृषि विश्वविद्यालय या कारखाना नहीं लगाया जा सका है। हमारे यहां आवारा पशुओं की समस्या है। टिड्डियों की समस्या है। सरकारी एजेंसियां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सारी उपज नहीं खरीदती हैं। सरकार के अधिकारी यह कहकर खरीद बंद कर देते हैं कि कोटे की खरीद पूरी हो चुकी है। किसानों को नुकसान उठाकर व्यापारियों के हाथों अपनी फसल बेचनी पड़ती है। उसी तरह से यहां पशुपालन अच्छा है। पर ऊंटनी के दूध का प्रसंस्कण केन्द्र या फैक्ट्री नहीं है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो किसानों की समस्या ही समस्या है।
म.ए.ल. : क्या यहां के किसान भी इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं?
हनुमान प्रसाद शर्मा : बिल्कुल, हम इन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं और आगे संघर्ष की तैयारी भी कर रहे हैं।
और अंतिम बात, हमें पूंजीवादी व्यवस्था में फंसाए रखने की कोशिश की जा रही है। देश के मज़दूरों और किसानों को इसमें नहीं फंसना चाहिए बल्कि अपने हितों की रक्षा के लिये विकल्प आगे लाना चाहिये।
राजस्थान सरपंच यूनियन के पूर्व महासचिव ओम सहु के साथ साक्षात्कार
म.ए.ल. : कृषि क्षेत्र में मोदी सरकार के द्वारा लाए गए अध्यादेशों को आप कैसे देखते हैं?
ओम सहु : देखिए, आज कृषि क्षेत्र की आय पर 80 प्रतिशत लोग निर्भर हैं। इनमें किसान, मज़दूर, मेहनतकश, छोटे-छोटे व्यापारी, आदि हैं। इन अध्यादेशों का बुरा असर इन सभी पर पड़ेगा। न सिर्फ किसान लुटेगा, बल्कि मज़दूरों से उनकी रोज़मर्रा की उपभोग की चीज़ों के लिये ज्यादा दाम वसूले जाएंगे। साथ ही छोटे-मोटे व्यापारी भी ख़त्म होंगे। कृषि क्षेत्र में सिर्फ इजारेदार कंपनियों का राज होगा।
वर्तमान सरकार इजारेदार पूंजीपति वर्ग के कार्यक्रम को लागू कर रही है। संप्रग सरकार के शासन काल के दौरान ही हुक्मरान इजारेदार पूंजीपति वर्ग ने वर्तमान भाजपा सरकार को सत्ता में बिठाने की तैयारी शुरू कर दी थी। रामलीला मैदान में “भ्रष्टाचार-विरोध” के झंडे तले 10-10 हजार लोगों की भीड़ जुटाई गई। मेरे कहने का मतलब है कि वक़्त के अनुसार किस तरह की पार्टी को सत्ता में आना, किस वक्त पर सरकार को जाना, यह देश का इजारेदार पूंजीपति वर्ग तय करता है। अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन) अध्यादेश, किसान उपज व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश और क़ीमत, आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान सशक्तिकरण और संरक्षण – ये तीनों अध्यादेश पूंजीपति वर्ग के कार्यक्रम के हित में किए जा रहे हैं।
देश के पास दूरसंचार था। उसमें देश का धन लगा था। आज उसका नियंत्रण एयरटेल, वोडा और अन्य इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों के पास है। अन्य सार्वजनिक संस्थान, जो कल तक देश के थे, अब टाटा, बिरला, अडानी और देशी-विदेशी इजारेदार घरानों के पास हैं या होने वाले हैं। देश ने बिजली बनायी। सप्लाई के लिए मूलभूत चीजों को खड़ा किया। आज उसे पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। सरकार सब कुछ पूंजीपति वर्ग को सौंप रही है।
म.ए.ल. : लेकिन सरकार दावा कर रही है कि इन अध्यादेशों के ज़रिये देश के किसानों को आज़ादी मिल रही है?
ओम सहु : असल में, किसानों को आज़ादी नहीं मिल रही है। कृषि से जुड़ी पूंजीवादी कंपनियों को आज़ादी मिल रही है – क्योंकि अब वे मनमर्ज़ी से किसान से उनकी उपज खरीद सकते हैं। उन्हें जमाखोरी करने की आज़ादी दी गई है। उन्हें आज़ादी दी गई कि वक्त आने पर वे उपज को महंगे दाम पर बेचें और मोटा मुनाफ़ा कमाएं। असल में मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य ख़त्म हो जायेंगे। किसान बर्बाद हो जाएगा। देश में अधिकांश किसान छोटी जोत वाले हैं। उन्हें झूठा सपना दिखाकर मूर्ख बनाया जा रहा है, कि उन्हें आज़ादी मिल गयी है। अभी कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य तो है, जो व्यापारियों की लूट-खसोट से बचाने का एक न्यूनतम मापदंड तय है।
म.ए.ल. : आपके यहां किसानों के सामने कौन-कौन सी समस्याएं हैं?
ओम सहु : पहला कि यहां खेती की जगह बहुत कम है। ज्यादातर जमीनें टिब्बे (रेत के टीले) और वन विभाग की हैं। कम से कम टीले को सपाट करके और थोड़ा पानी उपलब्ध कराके खेती लायक बनाकर उत्पादन लिया जा सकता है।
दूसरा कि फ़सल बीमा के नाम पर शुरुआत में किसानों के साथ धोखाधड़ी हुई। शुरू में किसान के खेत को यूनिट न मानकर तहसील यूनिट माना गया था। मतलब, तहसील में हुए नुकसान को आधार मानकर किसानों की फ़सल का मुआवज़ा तय होता था। संघर्ष करने के बाद, किसान के खेत को यूनिट मानकर, उसकी फ़सल के हुए नुकसान का मुआवज़ा दिया गया। लेकिन, अब बीमा कंपनियां, पुनः इस कोशिश में हैं कि वे किसानों से प्रीमियम तो वसूलें लेकिन नुकसान का मुआवज़ा कम से कम देना पड़े। सरकार बीमा से जुड़े इजारेदार कंपनियों को लाभ पहुंचाना चाहती है।
तीसरा, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू नहीं की गई। कितने ही और अन्य आयोग बने। किसानों के आंदोलन के चलते न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू हुआ। लेकिन किसानों की लागत का दुगुना दाम तो किसानों को आज तक नहीं मिला है।
चौथा, हाल की बात है। लाकडाउन के दौरान, हमारे संघर्ष की वजह से, 15-15 गांव के लिए मंडियां स्थापित करवायी गईं। परन्तु अधिकारियों ने कल ही घोषित किया है कि कोटे की खरीद बंद कर दी जायेगी। अब किसान क्या करेगा? किसान के भविष्य को तो इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों के हाथों में सौंप दिया जा रहा है।