एयर इंडिया पर सी.ए.जी. की रिपोर्ट : एयर इंडिया प्रबंधन और सरकार के अपराध साबित हुये

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सी.ए.जी.) ने एयर इंडिया पर 2005-10 की अवधि के लिये अपनी रिपोर्ट पेशकी है। इसमें प्रबंधन और सरकार को 50 बोइंग विमान की खरीदारी के लिये स्पष्ट रूप से दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि एयर इंडिया की कार्यवाहियों के स्तर के अनुसार इन विमानों की खरीदारी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। यह जानी-मानी बात है कि बोइंग को संकट से बचाने के लिये किये गये इस सौदे

नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सी.ए.जी.) ने एयर इंडिया पर 2005-10 की अवधि के लिये अपनी रिपोर्ट पेशकी है। इसमें प्रबंधन और सरकार को 50 बोइंग विमान की खरीदारी के लिये स्पष्ट रूप से दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि एयर इंडिया की कार्यवाहियों के स्तर के अनुसार इन विमानों की खरीदारी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। यह जानी-मानी बात है कि बोइंग को संकट से बचाने के लिये किये गये इस सौदे में सरकार और कांग्रेस पार्टी के उच्चतम अधिकारियों की सीधी रुचि थी। अधिकृत मंत्री समूह (ई.जी.ओ.एम.) ने इस खरीदारी के लिये हरी झंडी दिखाई थी। नागरिक उव्यन मंत्रालय, सार्वजनिक निवेशबोर्ड और आर्थिक विषयों पर मंत्रीमंडलीय समिति, इन सभी ने कर्जा लेकर इसकी खरीदारी की 97 प्रतिशत कीमत जुटाने पर सहमति दी थी, जो कि किसी भी परियोजना के धन जुटाने के सरकारी कायदों का उल्लंघन था। रिपोर्ट यह साबित करती है कि इस अनावश्यक और अत्यधिक खर्च वाली खरीदारी की वजह से एयर इंडिया कारपोरेशन को 200 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।

मजदूर एकता लहर ने 16-31 जुलाई, 2011 के अंक में ''एयर इंडिया की समस्या क्या है और कौन इसके लिये जिम्मेदार है'', इस शीर्षक वाले लेख में यह पर्दाफाशकिया था कि एयर इंडिया को दिवालिया बनाने और उसका निजीकरण जायज़ ठहराने की क्रम-क्रम की प्रक्रिया में यह खरीदारी सरकार और एयर इंडिया प्रबंधन का एक सोचा-समझा कदम था, जिसकी वजह से एयर इंडिया को वैत्तिक संकट में धकेला गया।

एयर इंडिया को दिवालिया बनाकर उसका निजीकरण करने के सरकार के कदम के खिलाफ़ एयर इंडिया के मजदूर जुझारू संघर्ष करते आ रहे हैं। एयर इंडिया के 40,000 कर्मचारियों को आज तक जून और जुलाई का वेतन तथा अप्रैल से जुलाई तक का कार्य संबंधित प्रोत्साहन भत्ता नहीं मिला है। इस समय एयर इंडिया पर 40,000 करोड़ रुपये का संचयी कर्जा है जो विमान खरीदने और काम के मेंटेनेंस पर खर्च की वजह से है। बीते 3वर्षों में उसका संचयी नुकसान 475 करोड़ रुपये से बढ़कर 60,000 करोड़ रुपये हो गया है।

सरकार और उसके आर्थिक विषेशज्ञों ने एयर इंडिया प्रबंधन को अपनी मजदूर विरोधी नीतियों में पूरा समर्थन दिया है। उन सभी ने कंपनी की इस वित्तीय स्थिति के लिये विमान चालकों, ग्राउंड स्टाफ और सभी मजदूरों को दोषी ठहराया है और यह उचित ठहराने की कोशिश की है कि निजीकरण ही एक मात्र रास्ता है। परन्तु, जैसा कि मजदूरों ने बताया है, सरकार की नीतियों ने ही एयर इंडिया को इस वर्तमान संकट की हालत में धकेला है।

सी.ए.जी. रिपोर्ट के इस खुलासे के बाद, एयर इंडिया के सी.एम.डी. अरविन्द जाधव इस्तीफा देने को मजबूर हुये हैं। उन्हें एयर इंडिया को इस संकट की हालत में पहुंचाने के सुनियोजित कदमों की देख-रेख करने के लिये ही नियुक्त किया गया था। अत: हालांकि जरूरत से कहीं आगे बढ़कर बोइंग विमान की खरीदारी के लिये उन्हें दोषी ठहराना चाहिये, परन्तु वे कुछ खास हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार कंपनियों के हित में एयर इंडिया को लूटने की बड़ी साज़िशके एक खिलाड़ी भी हैं। सभी जानते हैं कि तत्कालीन नागरिक उव्यन मंत्री, प्रफुल पटेल ने मुनाफेदार विदेशी विमान पथ दूसरी निजी विमान कंपनियों को सौंपे थे। एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस से संबंधित इन नीतियों से सरकार, अफसरशाही और पूंजीपतियों में कई लाभभोगी थे। उन सभी के ऊपर एयर इंडिया के मजदूरों पर इस हमले के लिये और आम जनता, जिससे इस नुकसान की भरपाई की जा रही है, पर हमले के लिये मुकदमा चलना चाहिये।

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