जैसे-जैसे लिबिया की सरकार को गिराने के लिये उनका भयंकर सैनिक अभियान एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है, वैसे-वैसे मुख्य पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतें – अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी – सिरिया में उसी अभियान को दोहराने के लिये हालतें तैयार कर रही हैं। ठीक जैसा लिबिया में किया गया था, वैसे ही ये ताकतें दुनिया की मीडिया के जरिये एक धुन में, हर घंटे यह प्रचार कर रही हैं कि सिरिया की सरकार कैसे &#
जैसे-जैसे लिबिया की सरकार को गिराने के लिये उनका भयंकर सैनिक अभियान एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है, वैसे-वैसे मुख्य पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतें – अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी – सिरिया में उसी अभियान को दोहराने के लिये हालतें तैयार कर रही हैं। ठीक जैसा लिबिया में किया गया था, वैसे ही ये ताकतें दुनिया की मीडिया के जरिये एक धुन में, हर घंटे यह प्रचार कर रही हैं कि सिरिया की सरकार कैसे ''शान्तिपूर्ण प्रतिरोधों'' को कुचल रही है, और लंदन, वाशिंगटन व दूसरे स्थानों पर अस्साद सरकार के विभिन्न देश-निकाला विरोधियों को बढ़ावा दे रहे हैं। ये नेता यह मांग कर रहे हैं कि राष्ट्रपति अस्साद सत्ता से हटे, और अगर वह नहीं हटता है, तो ये ताकतें तरह-तरह के प्रतिबंध लगाने तथा दूसरे हमलावर कदम उठाने की धमकी दे रही हैं। ये ताकतें अपने लिबिया अभियान के परिणाम का इंतजार कर रही हैं, जिसके बाद वे पूरी ताकत के साथ सिरिया पर सैनिक हमला करेंगी।
सिरिया पर पश्चिमी ताकतों के हमले का क्या कारण है? ये ताकतें दावा करती हैं कि उनके ''मानवीय उद्देश्य'' हैं, कि उनका मकसद ''जान बचाना'' और ''लोकतंत्र की हिफ़ाज़त करना'' है। हमने देखा है कि कैसे उन्होंने लिबिया पर अपने हमले को जायज़ ठहराने के इरादे से, यही बहाना देकर सं.रा. प्रस्ताव तैयार किया था। लिबिया पर हमला करके उन्होंने उस देश में पहले से कहीं ज्यादा जानें ली हैं तथा विनाशकिया है। हमने देखा है कि कैसे ''लोकतंत्र'' की चिंता किये बिना उन्होंने यमन और बहरीन में विरोधों को कुचल डाला – क्योंकि ये दोनों देश उस इलाके में अमरीकी सैनिक उपस्थिति के लिये बहुत अहमीयत रखते हैं।
सच तो यह है कि सोची-समझी चाल के अनुसार, अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके मित्र इस वर्ष पूरे उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ अंशों में बहुत से देशों तथा राज्यों में फैली अंदरूनी असंतोष की हालतों का इस्तेमाल करके, उन राज्यों और सरकारों पर घातक हमले कर रहे हैं, जिन्होंने उस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादी हितों और उनके पिट्ठू, इस्राइली जाउनवादियों के हितों को चुनौती दी है। लिबिया, सिरिया और ईरान ने, अलग-अलग समय पर तथा अलग-अलग हद तक, उस इलाके में साम्राज्यवादी इरादों का विरोध किया है। उन्होंने साम्राज्यवाद और जाउनवाद के खिलाफ़ संघर्ष कर रहे फिलिस्तीनी और अन्य लोगों का सक्रिय समर्थन किया है।
जैसा कि अनेक पश्चिमीटिप्पणीकारों व जांचकर्ता संवाददाताओं ने बताया है, लिबिया, सिरिया और ईरान पर सैनिक और राजनीतिक हमले की योजनायें बहुत पहले ही बनायी गयी थीं। ये देश साम्राज्यवादी हितों को चुनौती तो दे ही रहे थे, इसके अलावा इनमें अति कीमती तेल और गैस संसाधन हैं, जिन पर साम्राज्यवादी देशों के इजारेदार पूंजीपतियों की नजर है। ये देश दक्षिणी भूमध्य सागर और फारस की खाड़ी के निर्णायक, रणनैतिक स्थानों पर, इस्राइल व इराक के पड़ौस में स्थित हैं। अमरीकी तथा दूसरे साम्राज्यवादियों का घोषित उद्देश्य इन देशों में ''सत्ता परिर्वतन'' करना है, जिसका उन देशों के लोगों की इच्छाओं से कोई संबंध नहीं है।
रूस, चीन, हिन्दोस्तान तथा कई और देशोंने लिबिया पर पश्चिमी साम्राज्यवादी हमले का विरोध किया था और उनमें से कुछ देश सिरिया के खिलाफ़ किसी ऐसे अभियान का विरोध कर रहे हैं। सिरिया के मामलों में हस्तक्षेप करने और बमों व मिसाइलों के जरिये ''सत्ता परिवर्तन'' करने की विदेशी साम्राज्यवादी ताकतों की कोशिशों की कड़ी निंदा करनी होगी तथा इन्हें हराना होगा! लोगों को 'मित्र' का मुखौटा पहने विदेशी साम्राज्यवादियों से चौकन्ने रहना चाहिये – उनकी मित्रता मौत का चुम्बन है! ऐसी मित्रता का अंजाम, ज्यादा उत्पीड़न और विनाश, संप्रभुता और आज़ादी को क्षति, ही होता है। वहां किस प्रकार की सरकार होगी, कैसी नीतियां होंगी, यह तय करने का अधिकार सिर्फ वहां की जनता को है, किसी और को नहीं।