जनता का मत सर्वोच्च है, संसद का मत नहीं!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 28 अगस्त, 2011

जन आंदोलन से जनता में यह जागरुकता बढ़ गयी है कि वर्तमान लोकतंत्र की व्यवस्था में मूल समस्या यह है कि इसमें बड़े-बड़े व्यावसायिक हित और उनकी भ्रष्ट पार्टियां लोक सभा पर नियंत्रण करती हैं। इस बात का भी और ज्यादा पर्दाफाश हुआ है कि बहुपार्टीवादी प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बड़े-बड़े शोषकों, भ्रष्ट मंत्रियों और अफसरों को हमारी भूमि और श्रम को लूटने की खुली छूट मिलती है।

हाल की गतिविधियों से मुख्य सवाल यह उठकर आया है कि सर्वोच्च ताकत कहां है और उसे कहां होना चाहिये। कौन संप्रभु है? क्या जनता का मत सर्वोच्च है या संसद का मत और मंत्रीमंडल का मत?

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 28 अगस्त, 2011

भ्रष्ट पार्टीवादी व्यवस्था को सजा-संवार कर पेश करने के शासक वर्ग के प्रयासों के चलते, संप्रग सरकार ने एक लोकपाल बिल बनाने की प्रक्रिया शुरु की। सरकार का इरादा था सत्ताधारी पार्टी के नियत्रंण में एक भ्रष्टाचार विरोधी संस्थान बनाना और तथाकथित सलाहकारी प्रक्रिया के जरिये ऐसा करना। इस प्रकार के ”शासन सुधार“ के द्वारा सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय पूंजीवादी निवेशकों को संतुष्ट करने और घरेलू आलोचकों को शान्त करने की उम्मीद की थी।

मौजूदे भ्रष्ट राज्य और अतिशोषण की व्यवस्था से जनता में इतना गुस्सा और नफरत थी कि जब सरकार ने लोकपाल बिल पर सलाह की प्रक्रिया शुरू की तो एक इतना विशाल, सच्चे मायने में जनआंदोलन उभर आया, जिसकी सरकार को उम्मीद न थी। पार्टीवादी राजनीतिक व्यवस्था पर विश्वास को बनाने के बजाय, इसका उल्टा ही हुआ। अन्ना हजारे की अगुवाई में भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन की वजह से संसद में सभी पार्टियों को अपना बचाव करना भारी पड़ा। इसकी वजह से इन पार्टियों के अन्दर और इनकी प्रधानता में चलायी जाने वाली व्यवस्था का संकट बहुत गहरा हो गया है।

सरकार एक ऐसा प्राधिकरण बनाना चाहती थी, जो सिर्फ उच्च अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच करेगा। अन्ना के दल और दूसरे जनसंगठनों ने कहा ”नहीं, हम सभी लोगों की समस्याओं का हल चाहते हैं, अतः लोकपाल को सरकार के सभी स्तरों पर जांच करने का अधिकार चाहिये“। सरकार अपने सीमित बिल को पेश करने की कोशिश कर रही थी परन्तु अब उसे पिछे हटना पड़ा है। संसद को अन्ना हजारे और उनके दल की तत्कालीन मांगों पर चर्चा करने को मजबूर होना पड़ा है।

जन आंदोलन की कामयाबी इस बात में है कि उसने संसद में बैठी पार्टियों पर आंदोलन की मांगों के अनुसार कदम उठाने का दबाव डाला। अन्ना और उनके साथ स्वेच्छा से जुड़ने वाले बहुत से लोगों के सत्याग्रह ने मेहनतकश जनसमुदाय को प्रेरित किया और बहुत आत्मविश्वास दिलाया। अब तक जो आंशिक उपलब्धि प्राप्त हुई है, वह दिखाता है कि सामूहिक राजनीतिक जनआंदोलन क्या-कुछ हासिल कर सकता है।

जन आंदोलन से जनता में यह जागरुकता बढ़ गयी है कि वर्तमान लोकतंत्र की व्यवस्था में मूल समस्या यह है कि इसमें बड़े-बड़े व्यावसायिक हित और उनकी भ्रष्ट पार्टियां लोक सभा पर नियंत्रण करती हैं। इस बात का भी और ज्यादा पर्दाफाश हुआ है कि बहुपार्टीवादी प्रतिनिधित्ववादी लोकतंत्र एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बड़े-बड़े शोषकों, भ्रष्ट मंत्रियों और अफसरों को हमारी भूमि और श्रम को लूटने की खुली छूट मिलती है।

लोगों ने मांग की कि संसद से बाहर के लोगों द्वारा तैयार किये गये जन लोकपाल बिल के मसौदे पर जनमत संग्रह किया जाये। सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया। वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था से लाभ उठाने वाली सभी पार्टियां – कांग्रेस पार्टी, भाजपा और माकपा तथा अन्य – यह चाहती थीं कि फैसला लेने का अधिकार संसद के अंदर ही रहे।

वर्तमान लोकतंत्र की व्यवस्था में मूल समस्या यही है, कि आम जनसमुदाय को फैसला लेने के अधिकार से बाहर रखा जाता है। बड़े पूंजीपतियों के पैसों पर पली हुई पार्टियां ही मुख्य तौर पर चुनाव के लिये उम्मीदवारों का चयन करती हैं, सरकार बनाने और कानून पास करने में अपना वर्चस्व जमाती हैं। लोगों की भूमिका सिर्फ मतदान वाले दिन पर होती है और उसे भी दरकिनार किया जाता है। जनता के लोकपाल बिल के लिये इस जनआंदोलन ने मौजूदे व्यवस्था की इस मूल समस्या को उजागर किया है।

हाल की गतिविधियों से मुख्य सवाल यह उठकर आया है कि सर्वोच्च ताकत कहां है और उसे कहां होना चाहिये। कौन संप्रभु है? क्या जनता का मत सर्वोच्च है या संसद का मत और मंत्रीमंडल का मत?

लोक सभा में राहुल गांधी ने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफआंदोलन को जारी नहीं रखना चाहिये क्योंकि यह ”संसद की प्रधानता“ के लिये खतरा है। मौजूदे व्यवस्था की रक्षा करने वाले और उसे सही ठहराने वाले तरह-तरह के लोग भी इसी बात को दोहराते हैं। वे इस सच्चाई को छिपाना चाहते हैं कि निहित स्वार्थों की पार्टियां ही संसद पर हावी हैं, इसीलिये लाखों-लाखों लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आये हैं।

1857के शहीदों ने ऐलान किया था कि “हम हैं इसके मालिक, हिन्दोस्तान हमारा!” 1947में उपनिवेशवादी शासन के खत्म होने से, मुट्ठीभर शोषकों द्वारा बेरहम लूट की व्यवस्था की रक्षा करने वाले भ्रष्ट राज्य की उपनिवेशवादी विरासत खत्म नहीं हुई। संप्रभुता ब्रिटिश ताज से हटाकर हिन्दोस्तानी संसद को सौपी गयी, परन्तु हमारे जनसमुदाय को संप्रभुता नहीं मिली। आज लोग उसी संप्रभुता की मांग कर रहे हैं, जो उनकी होनी चाहिये। लोग कह रहे हैं कि “हम बड़े पूंजीपतियों की भ्रष्ट पार्टियों पर भरोसा नहीं रखते!”

कम्युनिस्टों का काम है हिन्दोस्तान के लोकतंत्र के राजनीतिक संकट का फायदा उठाकर, इसका विकल्प पेश करना और उस विकल्प के लिये आंदोलन करना। जब माक्र्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट पार्टी के  घोषणापत्र में कहा था कि श्रमजीवी वर्ग को “लोकतंत्र की लड़ाई जीतनी है”, तो यही उनका मतलब था। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने आधुनिक लोकतंत्र का ऐसा नज़रिया पेश किया है जो मेहनतकश जनसमुदाय के मत को स्थापित करेगा।

संसद की सभी पार्टियों के अन्दर आज संकट है क्योंकि उनके अपने सदस्य भी इस जनआंदोलन से प्रेरित हो गये हैं। संसद के वाम दलों के अन्दर भी संकट है। वामदलों ने संसद की प्रधानता की हिफाज़त की और जनआंदोलन को ”मध्यमवर्गी“ आंदोलन बताकर उसकी आलोचना की थी। इसके लिये उन्हें मेहनतकशों के सामने बदनाम होना पड़ा है।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी यह मानती है कि पार्टीवादी शासनतंत्र को खत्म करने तथा हिन्दोस्तान की सभी राष्ट्रीयताओं के मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों के हाथों में संप्रभुता लाने के कार्यक्रम के इर्दगिर्द सभी प्रगतिशील ताकतों को एकजुट करना आज वक्त की मांग है।

अगर हम अपने भविष्य पर खुद नियंत्रण करना चाहते हैं और हमारे सांझे हित के लिये हमारी इस भूमि और श्रम शक्ति का लाभ उठाना चाहते हैं, तो हम मेहनतकशों को पार्टीवादी शासन तंत्र की जगह पर ऐसे नये तंत्र और राजनीतिक प्रक्रिया स्थापित करनी होगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि लोग इसके मालिक हैं। हमें एक नये संविधान की जरूरत है, जो इस नयी राजनीतिक व्यवस्था को चलाने का मूल कानून होगा।

मौजूदे फालतू बात करने वाले संसद और विधान सभाओं की जगह पर ऐसे निकाय स्थापित करने होंगे, जिनमें प्रतिनिधियों को फैसला लेने के साथ-साथ उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ेगी।

लोग अपने चुने गये प्रतिनिधि को सारी ताकत नहीं सौंप सकते हैं। लोगों को अपने प्रतिनिधि से हिसाब मांगने और उसे किसी समय वापस बुलाने का अधिकार अपने पास रखना चाहिये।

लोगों को नये कानून शुरु करने का अधिकार होना चाहिये। सभी अहम फैसलों पर जनमत संग्रह के द्वारा अधिकतम जनता की सहमति प्राप्त की जानी चाहिये।

चुनाव के लिये उम्मीदवारों का चयन करने के अधिकार को राजनीतिक पार्टियों के हाथों से हटाना होगा। पार्टियों के आला कमान को टिकट बांटने की इज़ाज़त नहीं देनी चाहिये, जैसा कि इस समय होता है। सभी मनोनीत उम्मीदवारों को एक गंभीर चयन प्रक्रिया से गुजरना होगा, जिसके दौरान लोग अयोग्य उम्मीदवारों को खारिज करने के लिये अपना तर्क दे सकते हैं। चुनाव के उम्मीदवारों को मनोनीत करने के लिये मजदूरों और किसानों के यूनियनों, महिलाओं और नौजवानों के संगठनों तथा सभी जनसंगठनों को प्रोत्साहित करना और सक्षम बनाना होगा।

समाज की बुनियाद पर सत्ता के चुने गये तंत्र स्थापित करने होंगे, जैसे कि हर मुहल्ले, हर गांव, औद्योगिक क्षेत्र और कोलेज परिसर में जन समितियां। इन तंत्रों को उम्मीदवारों का चयन करने की प्रक्रिया को अपनी निगरानी में चलाना होगा और लोगों को उम्मीदवारों को स्वीकार करने या खारिज़ करने, वापस बुलाने तथा कानून शुरु करने के अधिकार को अमल में लाने में सक्षम बनाना होगा। चुनाव का खर्च राज्य को उठाना चाहिये और सभी उम्मीदवारों को टी.वी. और रेडियो पर समान समय नियुक्त किया जाना चाहिये।

आज के हिन्दोस्तान के अन्दर सभी राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और आदिवासी लोगों के स्वेच्छा पूर्ण, समान अधिकार वाले संघ के रूप में हिन्दोस्तानी संघ का पुनर्गठन करना होगा।

यह हिन्दोस्तान का नवनिर्माण होगा, जिसकी हालतें आज परिपक्व हो गयी हैं। आज जो जन आंदोलन उभरकर आया है, उसके आगे बढ़ने का तर्कसंगत रास्ता यही है।

मजदूर वर्ग, अपनी हिरावल पार्टी की अगुवाई में, इस आधुनिक लोकतंत्र का इस्तेमाल करके, अधिकतम जनसमुदाय को क्रमशः पूंजीवाद से समाजवाद और कम्युनिज़्म, सभी प्रकार के शोषण और भ्रष्टाचार से मुक्ति और समाज से सभी वर्ग और जाति के भेदभावों को मिटाने के क्रांतिकारी परिवर्तन के मार्ग पर आगे बढ़ने की ओर आकर्षित करेगा।

भ्रष्टाचार का एक इलाज, लोक राज, लोक राज!

नयी सदी की है यह मांग, हिन्दोस्तान का नव निर्माण!

हम हैं इसके मालिक, हम हैं हिन्दोस्तान, मजदूर, किसान, औरत और जवान!

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