हमारे पाठकों से : मेरी तो जेब ही काट ली …

प्रिय संपादक महोदय,

जैसे-तैसे महीने के आखिरी दिन बीते और तनख्वाह का आगमन हुआ, लगा कि अतिथि की तरह आयी और चली भी गयी। पता लगाया तो मालूम हुआ कि मेरी क्रयशक्ति कम हो गयी है। मैंने कहा मेरा तो कोई दोष नहीं है, तनख्वाह तो पूरी आयी है। अरे भाई, बेशर्म कीमतें तुम्हारी तनख्वाहों के मुँह पर थूक रही हैं। हिसाब लगाया तो सब जरुरी वस्तुओं के दाम बढ़ चुके थे। यकायक यह कैसे हुआ, संचार माध्यम और चैनल तो महामारी में मरीजों की गिनती और चीनी वस्तुओं के बहिष्कार पर ही चर्चाएं कर रहे थे। न ही कोई खबर थी और न ही कोई विरोधी पक्षों का पोस्टर जलाने का दृश्य।

दैनिक वस्तुओं की कीमतें बढ़ने का सीधा इशारा आसमान छूती डीजल और पेट्रोल की कीमतों की ओर था। इनकी कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर लोगों के दैनिक जीवन पर था। एक तरफ खाद्य पदार्थों और जरुरी वस्तुओं के दाम तो दूसरी तरफ परिवहन पर भी व्यापक असर दिखा। चूँकि सरकार ने लॉक डाउन के दरम्यान रेल सेवांएं बंद कर रखी थी इसलिए निजी वाहनों के जरिये ही दफ्तर जाना संभव था।

अविनियमन (डीरेग्यूलेशन) से पहले, डीजल दरों को केंद्र द्वारा विनियमित किया जाता था। डीरेग्यूलेशन डीजल की कीमतों को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के निर्धारित करता है। डीजल की कीमतों को सीधे अंतर्राष्ट्रीय बाजार दरों से जोड़ा गया। इसका मतलब है कि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में किसी भी उतार-चढ़ाव का सीधा असर खुदरा (रिटेल) डीजल की कीमतों पर पड़ेगा। जून 2017 में, सरकार ने गतिशील ईंधन मूल्य निर्धारण मॉडल पेश किया, जिसके अनुसार पिछले दिन के अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमत और मुद्रा रूपांतरण दरों के आधार पर ईंधन की कीमतों को दैनिक संशोधित किया जायेगा। इस तरह भारत अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो गया, जहां अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों में छोटे से छोटे बदलाव सीधे डीलरों के साथ-साथ ग्राहकों को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में दैनिक दिखाई देता है। फिर भी, भारत में ईंधन उपयोगकर्ताओं को इस कदम से कोई फायदा नहीं हुआ है, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बावजूद लगातार गिरी हैं लेकिन देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें उस अनुसार नहीं कम हुई हैं ।

जब कच्चे तेल की कीमत 109.1 डॉलर प्रति बैरल थी तब से कच्चे तेल के भाव गिरते गए हैं, परन्तु सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतें केवल दो बार कम करीं जबकि 13 अवसरों पर दो उत्पादों पर उत्पाद शुल्क (एक्साइज) बढ़ा कर पेट्रोल और डीजल के भाव उसी स्तर पर रखे। 2014 में, पेट्रोल और डीजल पर प्रति लीटर उत्पाद शुल्क क्रमशः 9.48 रुपये और 3.56 रुपये प्रति लीटर था। यह बढ़ कर पेट्रोल के लिए 32 रुपए प्रति लीटर और डीजल के लिए 31.83 रुपए पर पहुंच गया है। दोनों बढ़ोतरी ने सरकार को अतिरिक्त कर राजस्व में 2 लाख करोड़ रुपये दिए। केयर रेटिंग कम्पनी की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार अब पेट्रोल के बेस प्राइस पर करीब 270 फीसदी टैक्स वसूलती है और डीजल के मामले में 256 फीसदी।

ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी से वस्तुओं के परिवहन में खर्च बढ़ता है, फिर खाद्य पदार्थों और वस्तुओं का महंगा होना स्वाभाविक हो जाता है। एक आम जिंदगी जीने वाले व्यक्ति की जेब पर इसका ज्यादा असर दिखता है क्यूंकि उसकी कमाई का एक बड़ा भाग महीने के अनाज और सब्जियों पर जाता है।

मुंबई उपनगरीय रेल विश्व की सबसे व्यस्ततम सेवाओं में एक है जो रोजाना तकरीबन 80 लाख लोगों को ले जाती है। इन दिनों लॉक डाउन होने के कारण बहुत बड़ी मात्रा में लोग निजी वाहनों या किराये पर वाहनों को लेकर उपनगरों से मुंबई शहर की ओर जा रहे हैं। तनख्वाह न मिलने के डर से किसी भी हाल में उन्हें नौकरी पर पहुंचना ही होता है। 60 से 80 किलोमीटर मोटर साइकिल एक तरफ चलाने के लिए लोग विवश हैं। चार लीटर पेट्रोल की प्रतिदिन साधारण खर्च है और यदि इसे महीने के खर्च में देखें तो लगभग 8500 रुपये होते हैं। इसके अतिरिक्त मेंटेनेंस खर्च भी बढ़ता है और प्रतिदिन ज्यादा समय मोटर साइकिल चलाने से शरीर पर भी काफी बुरा असर होता है खासकर रीढ़ की हड्डियों पर।

कुछ इसी तरह से हम और गाड़ियों का भी विश्लेषण कर सकते हैं जो चाहे डीजल या पेट्रोल से चलती हों। सारांश यही है कि इस लॉक डाउन में तनख्वाहें या तो उतनी ही हैं या कम भी हुई हैं परन्तु लोगों की क्रयशक्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। भले ही अन्तर्राष्टीय बाजारों में कच्चे तेल के दाम गिरे हों परन्तु केंद्र और राज्य सरकारों ने कई फीसदी वैट और उत्पाद शुल्क (एक्साइज) भारी मात्रा में बढाकर और सब्सिडी घटाकर, लगातार तीन हफ्तों से ईंधनों के दाम बढाकर लोगों की जेब कतरी है, उन पर डाका डाला है।

रतनलाल, बदलापुर

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