प्रिय संपादक,
मैं 4 जुलाई 2020 को प्रकाशित “मजदूर वर्ग की एकता, वक्त की एक अविलंब जरूरत” शीर्षक वाले सी.सी. स्टेटमेंट के जवाब में यह पत्र लिख रही हूँ। लेख में अपने हकों की लड़ाई लड़ने के लिए मज़दूर वर्ग की एकता के आह्र्वान से में पूरी तरह सहमत हूँ। राज्य वर्तमान संकट से निपटने में बुरी तरह असफल रहा है और इसका बोझ लोगों पर धकेल दिया गया है। परिवार वालों और दोस्तों से वेतन में कटौती या नौकरी से निकाल दिए जाने कि खबर अब रोज़ की बात हो चुकी है। हमारे देश की स्वास्थ्य प्रणाली की बेकार स्थिति का पर्दाफाश हो चुका है। जहाँ एक तरफ लोग अपनी नौकरी बचाने के लिए खतरनाक हालातों में काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य ने मज़दूर वर्ग पर हमले और भी तीव्र कर दिए हैं।
विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव का प्रस्ताव पूरी तरह मज़दूर विरोधी है और पूरे मज़दूर वर्ग द्वारा लड़कर जीते गए हकों पर सीधा हमला है। घोषित किया गया “रिलीफ पैकेज” राज्य का पूंजीपति वर्ग को सहयोग करने के इरादों का खुलासा करता है और उन्हें खुली छूट देता है मज़दूर वर्ग को अपना गुलाम बनाने के लिए। बयान में यह जरूरी बात सामने लाई गई है कि पूंजीपति वर्ग इस संकट का उपयोग मज़दूरों पर हमले तीव्र करने के लिए और उनका शोषण बढ़ाने के लिए कर रहा है। यह याद रखना जरूरी है कि अलग-अलग समय पर हुक्मरान वर्ग ने श्रम कानूनों को बदलने की कई कोशिशें की हैं ताकि वे मज़दूरों को अपनी इच्छा अनुसार काम पर रखें या निकल सकें। लेकिन मज़दूरों की एकता और उनके विरोध ने हमेशा ही उन्हें ऐसा करने से रोका है। फिलहाल, संकट का फायदा उठाते हुए पूंजीपति वर्ग राज्य की सहायता से मज़दूरों पर हमले बढ़ा रहा है।
लेकिन इस लॉकडाउन के बावजूद मज़दूर लगातार सड़कों पर निकलकर अपने सम्मानजनक जीवन के हक के लिए लड़ रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों से साथ आने वाले मज़दूरों का हुकूमरान वर्ग के निजीकरण के एजेंडे के ख़िलाफ़ लड़ाई बहुत ही प्रेरणादायक है। मज़दूर वर्ग की एकता पूंजीपति वर्ग के लिए एक खतरा है और उनके बेपनाह मुनाफा कमाने के लक्ष्य को पाने के रास्ते के बीच आती है। इसीलिए मज़दूर वर्ग का ध्यान उनकी मूलभूत जरुरत के प्रश्नों, जैसे की खाना, स्वास्थ्य और रोज़गार, से हटाकर उनकी एकता को तोड़ने के कई प्रयास किये जा रहे हैं। इस एकता को तोड़ने के लिए लोगों को राजनीतिक पार्टियों की दुश्मनी में भी फंसाया जा रहा है। जैसा की लेख में समझाया गया है कि आज के हालातों की मांग है कि मज़दूर वर्ग इन सभी ध्यान भटकाने वाले प्रचार से ऊपर उठकर अपने शत्रु पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एकत्रित हों।
मज़दूरों की समस्याओं का समाधान न तो सत्ताधारी और ना ही विपक्ष पार्टी का लक्ष्य है। अलग-अलग समय पर आज की सत्ताधारी और विपक्ष पार्टियां, दोनों ने ही मज़दूर विरोधी नीतियों को प्रस्तावित और लागू करने के लिए ज़ोर दिया है। इसलिए केवल मज़दूर वर्ग की एकता ही हुकुमरान वर्ग के मज़दूर विरोधी एजेंडे को परास्त कर सकती है। पूंजीपति वर्ग और वह राज्य जो मज़दूरों की आजीविका की सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकता उसके ख़िलाफ़ लड़ने के एजेंडा के इर्द-गिर्द मज़दूरों को अपनी एकता बनानी होगी। मज़दूर वर्ग को एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के लिए लड़ना होगा जिसमें उन्हें सब तरीके की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। मज़दूर और किसान इस देश की पूंजी के निर्माता हैं और उन्हें निर्णय लेने वाला वर्ग भी बनना पड़ेगा ताकि वे एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करें जिसमे मज़दूर वर्ग की सभी मांगों और हकों को पूरा करना सुनिश्चित किया जाएगा।
शिरीन
पुणे