5 अगस्त, 2011 को देश भर में बुलाई गयी बैंक की हड़ताल के दिन मणिपुर की राजधानी इम्फाल में तीन सौ से ज्यादा बैंक कर्मचारियों ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सामने रैली में हिस्सा लिया। मुख्य वक्ताओं में शामिल थे यूनिटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (यू.एफ.बी.यू., मणिपुर राज्य कमेटी) के भूतपूर्व निमंत्रक श्री रोहिणी कुमार सिंह, बैंक एम्पलाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के श्री बिजोय सिंह, यू.एफ.बी.यू., मणिपुर रा
5 अगस्त, 2011 को देश भर में बुलाई गयी बैंक की हड़ताल के दिन मणिपुर की राजधानी इम्फाल में तीन सौ से ज्यादा बैंक कर्मचारियों ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सामने रैली में हिस्सा लिया। मुख्य वक्ताओं में शामिल थे यूनिटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (यू.एफ.बी.यू., मणिपुर राज्य कमेटी) के भूतपूर्व निमंत्रक श्री रोहिणी कुमार सिंह, बैंक एम्पलाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के श्री बिजोय सिंह, यू.एफ.बी.यू., मणिपुर राज्य कमेटी के एस. इंद्रकुमार सिंह, ऑल मणिपुर बैंक एम्पलाइज असोसियेशन के जनरल सेक्रेटरी श्री एल. सुरंजोय सिंह (आई.यू.सी.बी.), और यू.एफ.बी.यू. मणिपुर राज्य कमेटी के भूतपूर्व सह-नियंत्रक श्री एस. गोपेश्वर शर्मा।
रोहिणी कुमार ने अपने भाषण में कहा कि यह एक-दिवसीय हड़ताल इस ऐतिहासिक संघर्ष की बस एक शुरुआत है, और इसका अन्तर्राष्ट्रीय महत्व है। उन्होंने बताया कि आज हिन्दोस्तान और श्रीलंका, ही दो ऐसे देश हैं जहाँ मजबूत बैंक यूनियन मौजूद है।
इंद्रकुमार ने वैश्विक प्रतियोगिता की सोच को चुनौती दी। उन्होंने सवाल उठाया कि हिन्दोस्तान के बैंक क्यों वैश्विक बैंकों की नकल करें, जिन्होंने खुद अंधाधुंध सट्टे-बाजारी की वजह से पश्चिमी पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाया है।
सभी वक्ताओं ने बैंक के निजीकरण का एक आवाज में विरोध किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निजीकरण, उदारीकरण, और भूमंडलीकरण का कार्यक्रम लोगों के हितों के खिलाफ़ है और पूंजीपतियों के अत्याधिक मुनाफे सुनिश्चित करने के लिए है। इस कार्यक्रम की वजह से गरीब और अमीर के बीच खाई बढ़ती जा रही है। वक्ताओं ने बताया कि सरकार ने बैंकों को पैसा देने के लिए विश्व बैंक से कर्जा लिया है, जिससे विश्व बैंक के तथाकथित कार्यक्रम को लोगों पर थोपा जा सके। उन्होंने बताया कि इससे भी ज्यादा धन बड़े पूँजीपतियों के पास लोन के रूप में पड़ा हुआ है, जिसे पूंजीपतियों ने वापस नहीं किया है।
सभी वक्ताओं ने बैंकों में विदेशी पूँजी के बेरोकटोक प्रवेश का विरोध किया। उन्होंने बताया कि निजी बैंकों में सबसे ज्यादा शोषण होता है और इस नमूने को सरकार सभी पर थोपने की कोशिश कर रही है। वक्ताओं ने मांग की कि बैंक में काम के घंटों को परिभाषित और नियंत्रित किया जाये। बैंक ऑफिसर असोसियेशन और बैंक एम्पलाइज यूनियनों ने मिलकर खंडेलवाल कमेटी की सिफारिशों को ठुकराने की मांग की है, क्योंकि ये सिफारिशें मजदूरों के हितों के खिलाफ़ हैं।
रैली के अंत में मजदूरों ने “इंकलाब जिंदाबाद!”, “मजदूर एकता जिंदाबाद!” के नारे लगाकर रैली को समाप्त किया।