हिन्दोस्तानी राज्य अफगानिस्तान में बड़ी सत्ता का खेल खेल रहा है

करीब दस साल पहले, 7 अक्तूबर, 2001 के दिन अमरीकी साम्राज्यवादियों ने, अफगानिस्तान पर हमला किया। वे आज तक वहां पर जमे हुए हैं। “आतंकवाद के खिलाफ़ जंग” के बहाने उन्होंने उस देश में घुसपैठ की है, खुद के पसंद के लोगों को राज पर बिठाया है, पहाडि़यों पर तथा देहातों पर भारी बमबारी की है तथा दसियों-हजारों लोगों को घायल किया है व हत्या की है। प्राचीन इतिहास तथा व्यापार के कई मार्गों के संग

करीब दस साल पहले, 7 अक्तूबर, 2001 के दिन अमरीकी साम्राज्यवादियों ने, अफगानिस्तान पर हमला किया। वे आज तक वहां पर जमे हुए हैं। “आतंकवाद के खिलाफ़ जंग” के बहाने उन्होंने उस देश में घुसपैठ की है, खुद के पसंद के लोगों को राज पर बिठाया है, पहाडि़यों पर तथा देहातों पर भारी बमबारी की है तथा दसियों-हजारों लोगों को घायल किया है व हत्या की है। प्राचीन इतिहास तथा व्यापार के कई मार्गों के संगम पर स्थित होने के लिए मशहूर उस देश की बहुत बर्बादी हुई है, आबादी वाले कई इलाके व आधारभूत ढांचे ध्वस्त हुए हैं, तथा लाखों लोगों को घर-बार छोड़कर भागना पड़ा है।

इस तरह के माहौल में हिन्दोस्तानी राज्य तथा हिन्दोस्तानी कंपनियां अफगानिस्तान में अपना असर फैला रही हैं। अब तक हिन्दोस्तानी राज्य ने 2 अरब डालर “विकास के लिए मदद” देने का वादा किया है। हिन्दोस्तानी राज्य अफगानिस्तान में पूंजीनिवेश करने में 5वें नंबर पर है। अफगानिस्तान में अपने पैर जमाने के समर्थन में हिन्दोस्तानी राज्य कहता है कि अफगानिस्तान के साथ उसके “प्राचीन सांस्कृतिक रिश्ते” हैं। वह दावा करता है कि वह अफगानिस्तान के “निर्माण” में मदद कर रहा है। मगर यह भूला नहीं जा सकता कि अफगानिस्तान में हिन्दोस्तानी राज्य का बढ़ता प्रभाव अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने वाली खूंखार ताकत के सहारे ही हो रहा है। वरना, कब्ज़ा करने वाली अमरीकी तथा उसकी सहयोगी फौजी शक्ति की सक्रिय मदद के बगैर यह मुमकिन नहीं होता।

इस मामले में अफगानिस्तान में हिन्दोस्तानी राज्य का पूर्व रिकार्ड काफी बदनाम है। 1979 में उसने, ब्रेजनेव के नेतृत्व में सोवियत रूस द्वारा अफगानिस्तान पर किये गए हमले का समर्थन किया था। सोवियत रूस का कब्ज़ा करीब 10साल तक रहा, जिस दौरान हिन्दोस्तानी राज्य ने वहां पर अपना प्रभाव भी बढ़ाया। फिर अफगानी लोगों के संघर्ष के कारण सोवियत रूस के समर्थन से गद्दी पर बैठे नजीबुल्लाह का तख्ता पलट गया। अफगानिस्तान में हिन्दोस्तानी राज्य की रणनीति को इससे काफी ठेस पहुँची। तब से अफगानिस्तान में अपना स्थान फिर से मजबूत करने की वह कोशिश कर रहा है। पहले तालिबान सरकार के खिलाफ़ गृहयुद्ध करने वाले नॉरदरन एलायन्स के साथ उसने संबंध बनाये रखे और बाद में अमरीकी आक्रमण का मौका इस्तेमाल किया। हिन्दोस्तान की जनता का विरोध होने के कारण हिन्दोस्तानी राज्य ने अमरीकी हमले के समर्थन में अपनी फौज नहीं भेजी मगर ख़ुफि़या एजेन्सियों को पूरी मदद दी।

आज अफगानिस्तान में सड़क तथा पुल बनाने की कई मुनाफेदार निर्माण योजनाओं में हिन्दोस्तान का सहभाग है। सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) यह सरकारी कंपनी तथा सी. एंड सी., जिसने कंदहार से काबुल तक 700 कि.मी. सड़क बनाये हैं और विश्व बैंक तथा एशियन डेवेलपमेंट बैंक आदि से कांट्रेक्ट लिए हैं, इस तरह की कई निजी कंपनियां भी वहां कार्यरत हैं। अफगानिस्तान की नई पार्लियामेन्ट बिल्डिंग को सी. एंड सी. बना रही है, जिसकी कीमत 12.5 करोड़ डालर होगी। काबुल को बिजली सप्लाई करने वाली 400 कि.मी. लंबी पारेषण तार भी हिन्दोस्तान की कम्पनियों ने बनाई है। इन परियोजनाओं पर बार-बार जो हमले होते हैं, उनमें कई हिन्दोस्तानी मजदूर तथा इंजीनियर मारे गए हैं और उनकी रक्षा के लिए हिन्दोस्तान से आई.टी.बी.पी. दल भेजे गए हैं।

अफगानिस्तान में जो बढि़या खनिज़ संसाधन हैं, उन पर कब्ज़ा करने की रुचि हिन्दोस्तानी कम्पनियों को है। अभी हजिगाक खदानों की नीलामी जारी है। उसमें दुनिया की सबसे बड़ी उच्च कोटी का लौह अयस्क भंडार है। सरकारी एस.ए.आई.एल., एन.एम.डी.सी., तथा टाटा स्टील, जे.एस.डब्लू., जैसी निजी हिन्दोस्तानी कंपनियां, नीलामी में भाग लेने वाली कुल 22 कंपनियों में 15 ऐसी हिन्दोस्तानी कंपनियां है।  सोना, तांबा, यूरेनियम तथा लीथियम जैसे खनिज भंडारों पर भी उनकी नजर है।

इन खनिजों के साथ-साथ अफगानिस्तान में खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। 2002 की अमरीकी जिओलोजिकल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, वहां 3.6 से 36.5 खरब घन फुट अनाविष्कृत गैस है और अनुमानित 4 से 36 लाख बैरल तेल के संसाधन हैं। देश के पश्चिम में अमूदर्या घाटी में तथा पूर्व में अफगान-ताजिक घाटी में यह संपत्ति है। हिन्दोस्तानी सरमायदार अपनी खुद की आर्थिक उन्नति के लिए दुनिया भर में ऊर्जा स्रोत ढूंढ़ रहे हैं। उनकी नजर अफगानिस्तान के इन संसाधनों पर है। मध्य एशिया से हिन्दोस्तान तक तेल तथा गैस लाने के लिए सुरक्षित मार्ग मुकर्रर करने में भी हिन्दोस्तानी सरमायदारों को बेहद रुचि है। ईरान-पाकिस्तान-हिन्दोस्तान गैस पाइपलाइन का अमरीका ने जब से विरोध किया, तब से तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्तों से गैस लाने के विकल्प पर हिन्दोस्तान ने बहुत ध्यान दिया है।

रणनीति के तौर पर हिन्दोस्तानी राज्य अफगानिस्तान के साथ “दोस्ती” का उपयोग पाकिस्तान को घेरे में रखने के लिए तथा इस इलाके में चीनी आकांक्षाओं को काबू में रखने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। पाकिस्तान के साथ दुश्मनी अफगानिस्तान के प्रति हिन्दोस्तानी नीति की प्रेरक शक्ति रही है, जिसके चलते उसने पहले सोवियत कब्ज़े का और बाद में अमरीका नीत कब्जे़ का पक्ष लिया तथा बेहद मौकापरस्त कदम उठाये। हिन्दोस्तान तथा पाकिस्तान के बीच जो तनाव है, उसका अफगानिस्तान के हाल के इतिहास पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है एवं इस इलाके के सभी देशों के बीच मददगार अच्छे संबंध स्थापित होने में वह रोड़ा बना हुआ है।

अफगानिस्तान से अमरीकी तथा दूसरे देशों की फ़ौज के लौट जाने की सम्भावना से हिन्दोस्तानी राज्य इस इलाके के सभी राज्यों में सबसे ज्यादा चिंतित है। यह बहुत ही शर्म की बात है। हिन्दोस्तानी विदेश मंत्री ने अमरीकी सरकार से अनुरोध किया है कि वे अफगानिस्तान से फ़ौज वापस बुलाने की जल्दबाजी न करे। इससे स्पष्ट होता है कि हिन्दोस्तानी राज्य की अफगानिस्तान संबंधी नीति केवल खुद के स्वार्थ से प्रेरित है, न कि अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से। इस मौकापरस्त नीति का हिन्दोस्तानी मजदूर वर्ग तथा लोगों को विरोध करना चाहिए। सभी विदेशी फ़ौज के वहां से निकल जाने में, अफगानिस्तान के एक आज़ाद तथा सार्वभौम देश बनने में तथा वहां की साधन-संपत्ति का उपयोग सबसे पहले वहां की जनता की खुशहाली के लिए होने में हमारा भी हित है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *