6 अगस्त, 2011, यह उस भयानक अपराध की सालगिरह है, जो अमरीकी साम्राज्यवादियों ने जापानी लोगों के खिलाफ़ – बच्चों,महिलाओं तथा पुरुषों सहित नागरिकों के खिलाफ़ – किया था। 66 साल पहले, अमरीका ने जापान के दो शहरों पर अणु बम गिराये थे। 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा के ऊपर तथा 9अगस्त, 1945 को नागासाकी के ऊपर अणु बमों के धमाके किये थे। उसकी वजह से दो महीनों के अंदर-अंदर ही करीब 3लाख महिलाओं, पुरुषों तथा बच
6 अगस्त, 2011, यह उस भयानक अपराध की सालगिरह है, जो अमरीकी साम्राज्यवादियों ने जापानी लोगों के खिलाफ़ – बच्चों,महिलाओं तथा पुरुषों सहित नागरिकों के खिलाफ़ – किया था। 66 साल पहले, अमरीका ने जापान के दो शहरों पर अणु बम गिराये थे। 6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा के ऊपर तथा 9अगस्त, 1945 को नागासाकी के ऊपर अणु बमों के धमाके किये थे। उसकी वजह से दो महीनों के अंदर-अंदर ही करीब 3लाख महिलाओं, पुरुषों तथा बच्चों की मौत हो गयी, जिनमें आधे लोग तो बम गिरने के दिन पर ही गुज़र गये। विकिरण के दीर्घकालीन परिणामों का बुरा असर अनेक पीढि़यों पर हो रहा है। जापानी लोगों के अलावा दुनिया भर के लोग पल भर के लिए भी मानव जाति के खिलाफ़ इस अपराध को नहीं भूले हैं। न ही उन्होंने अमरीकी साम्राज्यवादियों को माफ़ किया है। इस बर्बर अपराध का कोई समर्थन हो ही नहीं सकता।
लेकिन नये परमाणु युद्ध का खतरा आज भी है। साम्राज्यवादी राज्यों के गठबंधन की अगुआई में अमरीकी साम्राज्यवाद लिबिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा इराक के नागरिकों के खिलाफ़ बर्बर हमले कर रहा है। और दुनिया में जितने परमाणु अस्त्र हैं, उनमें से 96 प्रतिशत अमरीका और रूस के पास हैं।
जब से हिरोशिमा-नागासाकी कांड हुए, तब से दुनिया भर के शांति प्रेमी लोग परमाणु अस्त्रों के विकास तथा संचयन का विरोध कर रहे हैं। एक तरफ़ अमरीका तथा अन्य साम्राज्यवादी राज्य नाटक करते आये हैं। परमाणु अस्त्रों की संख्या लगातार कम करने के नाम पर परमाणु प्रसार निरोध करार को प्रस्तावित करने का और पारित करने का नाटक कर रहे हैं। लेकिन वास्तव में इस देषा में ज्यादा कुछ ठोस हुआ ही नहीं है। सच्चाई तो यह है कि इस करार के ज़रिये, और देशों पर जबरदस्ती की जा रही है, ताकि परमाणु तकनीकी का विकास तथा सशस्त्रीकरण कई गिने-चुने साम्राज्यवादी राज्यों तक ही सीमित रहे। पुराने, अप्रचलित अस्त्रों की जगह सुधरे तकनीकी ज्ञान के आधार पर बनाये गये ज्यादा शक्तिशाली अस्त्रों का संचयन किया जा रहा है।
दुनिया भर के आम लोगों के खिलाफ़ अपने सभी जघन्य हमलों को, निरपराध लोगों के ऊपर बमबारी करने की तथा उन्हें यातनाएं देने की अपनी घिनौनी करतूतों को, झूठे बहानों की आड़ में छिपाने का प्रयास अमरीकी राज्य करता है। दुनिया के सामने सच्चाई आने नहीं देते ताकि “शांति रक्षक” तथा “मानवजाति के रक्षक” का अमरीकी राज्य का नकाब बना रहे। अमरीकी जनता को इन सब के बारे में अंधेरे में रखा जाता है। उन्हें यह डर है कि उनकी युद्धखोर नीति का अगर पर्दाफाश हो जाएगा, तो उनके देश की जनता इतना कड़ा विरोध करेगी कि उन्हें पीछे हटना पड़ेगा।
अपने युद्ध अपराधों के बारे में अमरीका की फ़रेबी नीति तो 1945 से ही जारी है। उसके सैनिक तथा एक टोकियो स्थित जापानी समाचार कंपनी, दोनों शहरों में जो महाभयानक घटनाएं घटीं, उनकी फिल्मिंग करने में कामयाब हुए थे। लेकिन हिरोशिमा तथा नागासाकी पर बमबारी के बाद की हर फिल्म को अंधेरे में रखने में अमरीकी सरकार बहुत ही चुस्त थी। 25 साल तक अमरीकी जनता इसके बारे में कोई न्यूज़रील देख ही नहीं पायी। जबकि अमरीकी सेना की महाभयानक फिल्म 40 साल तक अंधेरे में ही रखी गयी। ऐसे समय जब वह और बमों का परीक्षण आयोजित कर रहा था, अमरीकी राज्य नहीं चाहता था कि आम जनता को अपने अस्त्रों का अंजाम मालूम हो!
अमरीकी सेना ने और देशों में जाकर कितने अपराध किये हैं और उन पर पर्दा डाला है, इनमें से नये उदाहरणों का रोज़ पर्दाफाश होता है। इसका अंत करने का एक ही मार्ग है – दुनिया भर के श्रमजीवी वर्ग तथा लोगों को, और आज़ादी पसंद देशों को साम्राज्यवाद के खिलाफ़ अपने संघर्ष बढ़ाने चाहिएं, क्योंकि यही युद्ध का स्रोत है। हिरोशिमा तथा नागासाकी के ऊपर जो अणु बम बरसाये गये थे, उनकी सालगिरह पर श्रमजीवी वर्ग तथा लोगों के लिए यही आह्वान है कि साम्राज्यवाद, फासीवाद तथा युद्ध के खिलाफ़ संघर्ष के पथ पर अविरत आगे बढ़ें!