1 पूंजीवादी अर्थशास्त्री और पत्रकार प्रतिदिन मजदूर वर्ग के बारे में – उसकी संख्या, गठन और क्रांतिकारी गुणों के बारे में – झूठा प्रचार करते रहते हैं। इसमें सबसे मुख्य प्रचार यह है कि मजदूर वर्ग अल्पसंख्या में है जबकि समाज में “मध्यम वर्ग” बहुसंख्या में है।
1 पूंजीवादी अर्थशास्त्री और पत्रकार प्रतिदिन मजदूर वर्ग के बारे में – उसकी संख्या, गठन और क्रांतिकारी गुणों के बारे में – झूठा प्रचार करते रहते हैं। इसमें सबसे मुख्य प्रचार यह है कि मजदूर वर्ग अल्पसंख्या में है जबकि समाज में “मध्यम वर्ग” बहुसंख्या में है।
इस अहम सवाल पर चर्चा करते हुये, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के चौथे महाअधिवेशन में इस बात पर जोर दिया गया है कि मजदूर वर्ग ही हमारे समाज में सबसे बहुसंख्यक वर्ग है। मजदूर वर्ग पूरी आबादी का आधे से अधिक हिस्सा है और इस वर्ग में आधुनिक संचार की योग्यताओं से शिक्षित तथा प्रशिक्षित मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है।
परिभाषा के अनुसार मजदूर वर्ग में वे सभी गिने जाते हैं जो उत्पादन के किसी साधन के मालिक नहीं हैं और जो दैनिक या मासिक वेतन के बदले अपनी श्रम शक्ति को बेचकर अपना गुजारा करते हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार, वेतन भोगी मजदूरों की संख्या 19 करोड़ थी। अगर 5 सदस्यों के परिवार में 2 मजदूर गिने जायें तो मजदूर वर्ग परिवारों की कुल संख्या लगभग 50 करोड़ होगी, यानि 2001 की पूरी आबादी का आधा हिस्सा। अब तक मजदूर वर्ग परिवारों का हिस्सा आधे आबादी से ज्यादा होगा और यह संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।
मजदूर वर्ग का सबसे अगुवा और सबसे शक्तिशाली तबका बड़े उद्योग और सेवाओं में काम करने वाले मजदूरों का तबका है। इसमें पूंजीवादी उत्पादन और वितरण के विभिन्न क्षेत्रों – खनन तथा कपड़ा, रसायन, दवाई, सीमेंट, लोहा और इस्पात, गैर लौह धातु, मशीनरी और यंत्र, मोटर गाड़ी और उसके पुर्जे, पेट्रोलियम, उर्वरक और ताप बिजली, पन बिजली व परमाणु बिजली प्लांटों में बिजली उत्पादन जैसे तरह-तरह के विनिर्माण क्षेत्रों – के मजदूर शामिल हैं। इसमें बैंकिंग, बीमा, रेलवे, सड़क, समुद्री तथा वायु परिवहन, दूर संचार, डाक व कोरियर सेवा, आई.टी. व आई.टी. सहायक सेवा, मीडिया और मनोरंजन, बिजली वितरण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, थोक और खुदरा व्यापार, होटल व रेस्तरां जैसी विभिन्न सेवाओं में काम करने वाले भी शामिल हैं।
पूंजीवादी अर्थशास्त्री बार-बार यह दावा करते हैं कि बीते दो दशकों में हमारे देश में “संगठित क्षेत्र” के मजदूरों की संख्या नहीं बढ़ी है। यह सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रकाशित अपूर्ण और गलत धारणा पैदा करने वाले आंकड़ों पर आधारित है। (देखिये बॉक्स) बड़े उद्योग सेवाओं में मजदूरों की असली संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा है।
लोगों में यह खतरनाक सोच फैलाया जाता है कि सिर्फ गरीब से गरीब लोग ही क्रांतिकारी हो सकते हैं, जबकि नियमित नौकरीशुदा लोग “विशेष अधिकार वाले” लोग हैं। जाति प्रथा की धारणाओं को फैलाकर यह खतरनाक सोच पैदा किया जाता है कि जो न्यूनतम वेतन पर अकुशल और निम्न स्तर का काम करता है, सिर्फ वही मजदूर है, जबकि सरकारी गरीबी रेखा से ऊपर जो शिक्षित और प्रशिक्षित मजदूर हैं, वे मध्यम वर्ग का हिस्सा हैं। ऐसे विचार मार्क्सवादी नहीं हैं। मार्क्सवाद आधुनिक मजदूर वर्ग को सबसे क्रांतिकारी वर्ग इसलिये नहीं मानता है कि वह सबसे गरीब है, बल्कि इसलिये कि सामाजिक उत्पादन में और समाज के अन्य वर्गों के साथ सम्बंध में मजदूर वर्ग की स्थिति सबसे क्रांतिकारी है।
चाहे मजदूर प्रतिमाह 7000 रुपये का वेतन कमाये या 70,000 रुपये का, उसका वेतन उसके श्रम से पैदा किये गये मूल्य का बहुत छोटा हिस्सा है। बाकी बेशी मूल्य पूंजी के मालिकों की जेब में जाता है। अतः जो मजदूर कुशल हैं और न्यूनतम वेतन से काफी ज्यादा वेतन कमाते हैं, उनका शोषण कुछ कम नहीं है बल्कि कभी-कभी बहुत ज्यादा भी होता है। चाहे मजदूर की कुशलता और वेतन का स्तर कोई भी हो, मजदूर को वेतन तभी मिलता है जब वह पूंजीपति वर्ग के लिये अधिकतम मुनाफे पैदा करता है।
बड़े उद्योग और सेवाओं में मजदूरों को मजदूर वर्ग का सबसे अगुवा तबका इसलिये माना जाता है क्योंकि उनमें सामूहिक श्रम की शक्ति है। यह मजदूर अवश्य ही अपने अधिकारों के लिये और मालिकों द्वारा बढ़ते शोषण के खिलाफ़ खुद संगठित होते हैं। उनका संघर्ष मजदूर वर्ग के दूसरे तबकों को प्रेरित करता है। इसीलिये पूंजीपति वर्ग मजदूरों के अगुवा तबके को “विशेष अधिकार वाले” या “मध्यम वर्ग” बताकर उनके बारे में झूठा प्रचार करता है और यह गलत विचार फैलाता है कि उनकी संख्या स्थगित है या घट रही है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के चैथे महाअधिवेशन में यह जोर दिया गया कि मजदूर वर्ग के अगुवा तबके को अपनी पहचान, अपनी ताकत और शोषण-दमन रहित समाज की स्थापना करने के संघर्ष को नेतृत्व देने की क्षमता से सचेत कराना, यही कम्युनिस्टों का सबसे मुख्य काम है।
फरेबी सरकारी आंकड़े हमारे देश में रोजगार के सरकारी आंकड़े संपूर्ण मजदूर वर्ग को शामिल नहीं करते हैं। सरकारी आंकड़ों में बड़े पंजीकृत उद्योगों और सेवाओं के मजदूरों की भी पूरी गिनती नहीं है। श्रम मंत्रालय के तहत, रोजगार और प्रशिक्षण का मुख्य निदेशक संगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या के वार्षिक आंकड़े प्रकाशित करता है। उन आंकड़ों के अनुसार, 2001-02 से 2006-07 के बीच संगठित क्षेत्र में रोजगार की संख्या लगभग 4करोड़ रही है। यह 2001 की जनगणना में मजदूर वर्ग की गिनती का सिर्फ 21 प्रतिशत है। इस संख्या में ठेके मजदूर, कैजुअल या अस्थाई मजदूर, जिनका नाम कहीं दर्ज नहीं है, नहीं गिने जाते। इस तरह, बड़े उद्योग और सेवाओं के मजदूरों की संख्या को बहुत कम दिखाया जाता है। उद्योग का वार्षिक सर्वेक्षण ठेके मजदूरों की संख्या प्रकाशित करता है परन्तु कैजुअल और अस्थाई मजदूरों की नहीं। 2002-03 के आंकड़ों के अनुसार कैजुअल मजदूर सभी औद्योगिक मजदूरों के 23 प्रतिशत हैं। यह संख्या हाल के सालों में तेजी से बढ़ती रही है। उद्योग का वार्षिक सर्वेक्षण सिर्फ उन औद्योगिक संस्थानों तक सीमित है जो फैक्ट्री एक्ट 1948के तहत पंजीकृत है। इसमें रेलवे, विमान, बैंकिंग, बीमा, आई.टी. और आई.टी. सहयोगी, सेवाओं तथा तमाम अन्य सेवा क्षेत्रों के मजदूर नहीं गिने जाते। 2004 में नई दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवेलपमेंट द्वारा किये गये 1300 कंपनियों के अध्ययन के अनुसार, अस्थाई मजदूर 42 प्रतिशत औसतन थे और हजार से अधिक मजदूरों वाली कंपनियों में 57 प्रतिशत थे। हाल में अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार अस्थाई मजदूर पूरे उद्योग में 66 प्रतिशत हैं। |