16 जुलाई, 2011 को दिल्ली मेट्रो में काम करने वाले ठेका मजदूरों ने जन्तर-मन्तर पर विरोध प्रदर्शन किया। ये मजदूर दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन (डी.एम.के.यू.) के अगुवाई में श्रम कानूनों के उल्लंघन के खिलाफ़ एकत्रित हुये। इस यूनियन में टिकट विक्रेता, सफाई कर्मचारी और सिक्योरिटी गार्ड शामिल थे।
16 जुलाई, 2011 को दिल्ली मेट्रो में काम करने वाले ठेका मजदूरों ने जन्तर-मन्तर पर विरोध प्रदर्शन किया। ये मजदूर दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन (डी.एम.के.यू.) के अगुवाई में श्रम कानूनों के उल्लंघन के खिलाफ़ एकत्रित हुये। इस यूनियन में टिकट विक्रेता, सफाई कर्मचारी और सिक्योरिटी गार्ड शामिल थे।
मजदूर न्यूनतम वेतन, ठेका मजदूरी अधिनियम 1971, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 तथा वर्कमैन्स कम्पनसेशन अधिनियम 1923 को लागू करवाने के लिये लड़ रहे हैं। इसके अलावा ई.एस.आई., पी.एफ., दुगुना ओवर टाईम, साप्ताहिक छुट्टी इत्यादि की मांग कर रहे हैं।
एक टिकट विक्रेता ने कहा कि हमें नौकरी से कभी भी निकाल दिया जाता है। हमें तनख्वाह दो महीने बाद मिलती है। हमें छुट्टी नहीं मिलती है। अगर हमसे हिसाब-किताब में कोई गलती होती है तो जुर्माना भरना पड़ता है।
मजदूरों ने ठेकेदारों के खिलाफ़ भी बात उठायी। एक मजदूर ने बताया कि “जब वो हमें नौकरी पर रखते हैं तो यह ठेकेदार हमसे 15000 रुपये से लेकर 70,000 रुपये वसूल लेते हैं” ।
डी.एम.के.यू. के सचिव अजय स्वामी ने बताया कि कानून के मुताबिक दिल्ली मेट्रो का मैनेजमेंट मुख्य मालिक है और जिम्मेदार है कि मजदूरों के कानूनी अधिकार का उल्लंघन न हो। लेकिन दिल्ली मेट्रो के पास ठेके मजदूरों का रिकार्ड ही नहीं है, तो फिर सवाल उठता है कि वे श्रम कानूनों को कैसे लागू करेंगे।