14 जुलाई 2011 को जम्मू और कश्मीर सरकार के हजारों कर्मचारियों ने संयुक्त कृति समिति (जे.सी.सी.) के बुलावे पर, छठे वेतन आयोग के बकाया वेतन चुकाने, दैनिक मज़दूरों को नियमित करने, सेवानिवृत्ति की उम्र को 58 से बढ़ा कर 60 करने और आंगनवाड़ी मज़दूरों के वेतन में वृद्धि की मांगों को लेकर श्रीनगर में प्रदर्शन किया।
14 जुलाई 2011 को जम्मू और कश्मीर सरकार के हजारों कर्मचारियों ने संयुक्त कृति समिति (जे.सी.सी.) के बुलावे पर, छठे वेतन आयोग के बकाया वेतन चुकाने, दैनिक मज़दूरों को नियमित करने, सेवानिवृत्ति की उम्र को 58 से बढ़ा कर 60 करने और आंगनवाड़ी मज़दूरों के वेतन में वृद्धि की मांगों को लेकर श्रीनगर में प्रदर्शन किया।
जे.सी.सी. ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को तुरंत नहीं माना जाता तो वे “सचिवालय का घेराव” करेंगे और अपने आंदोलन को तीव्र करेंगे।
जैसा कि कश्मीर में रोजमर्रा होता है, पुलिस ने प्रदर्शन पर निर्दयता से हमला किया। नेताओं के साथ सैकड़ों कर्मचारियों को हिरासत में लिया गया और पुलिस की कार्यवाई में दर्जनों घायल हुये। कुछ कर्मचारियों को गंभीर चोटें आयीं हैं और उन्हें सौरा के एस. के. इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंसेस में भर्ती किया गया।
जे.सी.सी. के नेता और कर्मचारियों की संयुक्त कृति समिति के अध्यक्ष, खुर्शिद आलम ने चेतावनी देते हुये कहा, “सरकार को पांच लाख कर्मचारियों की मांगों को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिये। ऐसे में सरकार के लिये बड़ी आपदा आ सकती है।”
जम्मू और कश्मीर के एक मंत्री, ताज मोईउद्दीन ने कहा कि राज्य सरकार, कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने की स्थिति में नहीं है। “हमने प्रस्ताव को केन्द्र सरकार को भेज दिया है और उनके जवाब के लिये इंतजार कर रहे हैं। हम कर्मचारियों को झूठी आशा नहीं दे सकते। जब तक केन्द्र सरकार राज्य की सहायता नहीं करती, बकाया वेतन देना संभव नहीं होगा।”
जब उनसे पूछा गया कि कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस का बल क्यों इस्तेमाल किया गया, तो उसने कहा, “सबसे अधिक पर्यटकों के मौसम में हम कश्मीर में शांति भंग नहीं होने दे सकते हैं।”