लिबिया की संप्रभुता की हिफ़ाज़त करें! साम्राज्यवादी हमला मुर्दाबाद!

लिबिया पर अमानवीय और नाजायज़ साम्राज्यवादी हमला जारी है। नाटो ताकतों की विनाशकारी युद्ध ताकत के साथ-साथ, नये आर्थिक और राजनीतिक दबाव डाले जा रहे हैं। इस जंग का मकसद है “सत्ता परिवर्तन”, यानि गद्दाफी को राजनीतिक और हो सके तो शारीरिक रूप से नष्ट करना और अमरीका, फ्रांस व ब्रिटेन के नियंत्रण में एक कठपुतली सत्ता को वहां स्थापित करना।

लिबिया पर अमानवीय और नाजायज़ साम्राज्यवादी हमला जारी है। नाटो ताकतों की विनाशकारी युद्ध ताकत के साथ-साथ, नये आर्थिक और राजनीतिक दबाव डाले जा रहे हैं। इस जंग का मकसद है “सत्ता परिवर्तन”, यानि गद्दाफी को राजनीतिक और हो सके तो शारीरिक रूप से नष्ट करना और अमरीका, फ्रांस व ब्रिटेन के नियंत्रण में एक कठपुतली सत्ता को वहां स्थापित करना।

अब तक 15,300 से अधिक बम बरसाने वाले हमले किये गये हैं। नाटो ताकतों ने अपने अगुवा हथियारों और विमानों का परीक्षण करने के लिये लिबिया को चुना है। मीडिया में यह चर्चा चल रही है कि दुनिया के बड़े-बड़े हथियार उत्पादकों व विक्रेताओं द्वारा सप्लाई किये गये यूरोफाइटर फ्रांसीसी रफाले जेट विमानों से ज्यादा सक्षम हैं या नहीं।

नाटो के बम बरसाने से पूरे लिबिया में संचार तितर-बितर हो गया है। इस तेल उत्पादक देश में पेट्रोल की कमी हो गई है। सड़कों को नष्ट किया गया है। स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर बम गिराये गये हैं। हवाई अड्डे को नष्ट किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक नागरिक निशानों पर हमला करना गैर कानूनी है। लिबिया की सरकार ने अपने देश की आजादी और संप्रभुता की रक्षा करने के लिये अपनी 35 लाख बालिग आबादी में से 20लाख से ज्यादा लोगों को सशस्त्र किया है। पश्चिमी लिबिया में किये गये एक जनमतसंग्रह के अनुसार, 85 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ने अपनी सरकार का समर्थन किया है और “सत्ता परिवर्तन” को ठुकराया है।

साम्राज्यवादी इरादे

लिबिया पर जंग अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा सुनियोजित किया गया है। तथाकथित बागियों को इन बड़ी ताकतों की योजना के अनुसार संगठित किया गया था।

अक्तूबर 2010 में फ्रांस ने एक प्रमुख लिबियाई अफसर, नोडरी मेसमारी को बागियों के पक्ष में लाने की साजिश की। उसकी मदद से फ्रांस ने बागी दलों को संगठित करने, और सरकारी अफसरों को बागियों के पक्ष में लाने और लिबिया की सरकार को गिराने की अपनी योजना को लागू किया। फ्रांसीसी साम्राज्यवाद अफ्रीका पर अपना नियंत्रण फिर से जमाना चाहता है। फ्रांस ने ब्रिटेन को भी अपने साथ ले लिया है। ब्रिटेन के भी कुछ ऐसे ही इरादे हैं।

ट्यूनिसिया और मिश्र में जनता के विद्रोह के बाद संयुक्त राज्य अमरीका ने इस अभियान का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। उसका इरादा है जन आन्दोलन को गुमराह करना तथा इस इलाके में अपना प्रभुत्व स्थापित करना।

संयुक्त राष्ट्र संघ में दांवपेच और नियमों का हनन

2011 के आरंभ में संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद ने दो प्रस्ताव पास किये, एस.सी.आर. 19.70 और एस.सी.आर. 1973,। पहला प्रस्ताव 26 फरवरी को पास किया गया, जिसमें लिबिया के खिलाफ़ पाबंदियां लागू करने की इजाज़त दी गई। इसमें लिबिया के अफसरों को अंतर्राष्ट्रीय अपराध अदालत ले जाने का प्रस्ताव भी रखा गया। दूसरा प्रस्ताव 17मार्च को पास किया, जिसके अनुसार विदेशी विमानों को लिबिया के उड़ान स्थान पर लिबियाई विमानों को उड़ान करने से रोकने की इजाज़त दी गई। लिबिया की संप्रभुता के अवैध हनन को “मानवीय कार्यवाही” बताया गया।

एस.सी.आर. 1970 को एजेंडा पर रखने की मांग करने वाले एक भूतपूर्व लिबियाई राजदूत इब्राहीम दब्बाशी था, जिसने 21फरवरी को लिबिया की सरकार छोड़ने का अपना फैसला घोषित किया था। 26 फरवरी, 2011 को उसका लिबिया की सरकार में या सं.रा. में कोई पद नहीं था, फिर भी सुरक्षा परिषद ने कानूनों का हनन करके, उसकी मांग का पालन किया।

सं.रा.सु.प. के कानूनों के अनुसार, जिस देश के बारे में चर्चा की जा रही है, उसे उपस्थित रहने की इजाज़त दी जाती है। परन्तु जिन सभाओं में लिबिया पर चर्चा हुईं, उनमें लिबिया की सरकार के किसी भी वैध प्रतिनिधि को उपस्थित रहने की इजाज़त नहीं दी गई। लिबिया पर लगाये गये आरोपों का खंडन करने वाले लिबिया की सरकार की चिट्ठियों को चर्चाओं के लिये भी नहीं रखा गया।

अमरीकी अधिकारियों ने लिबिया की सरकार के प्रतिनिधियों को वीसा नहीं दिया, ताकि वे सु.प. की बैठकों में भाग न ले सकें। जब लिबिया की सरकार ने औपचारिक तौर पर यह सूचना दी कि दब्बाशी और सं.रा. मिशन के दूसरे सदस्य लिबिया की सरकार के प्रतिनिधि नहीं है, उसके बाद भी सं.रा.सु.प. के महासचिव ने उन बागियों को विशेष पास जारी किया।

अन्तर्राष्ट्रीय अपराध अदालत का फैसला गैर-सदस्यों पर लागू नहीं होता है, और लिबिया उसका सदस्य नहीं है। इसके बावजूद, अन्तर्राष्ट्रीय अपराध अदालत में सु.प. ने लिबिया के नेताओं के खिलाफ़ कार्यवाही शुरु कर दी, जो कि सं.रा. कानूनों का स्पष्ट हनन है।

रूसी मीडिया में इस बात का पर्दाफाश किया गया कि सभी उपग्रह तस्वीरों से यह प्रचार झूठा साबित होता है कि लिबिया की वायुसेना को उसकी अपनी ही जनता के खिलाफ़ इस्तेमाल किया जा रहा है। पर इसको नजरंदाज़ किया गया। दूसरी ओर, बर्तानवी-अमरीकी मीडिया में नागरिकों पर बम बरसाये जाने, अफ्रीकी किराये के सैनिकों का इस्तेमाल करके लिबिया की सरकार द्वारा “जनसंहार” आदि की अप्रमाणित कहानियां फैलायी गयीं। ऐसी कहानियां सैनिक दखलंदाज़ी को जायज़ ठहराने के लिये सं.रा.सु.प. में भी इस्तेमाल की गयी हैं। और आज भी दुनिया भर में ऐसी कहानियां फैलायी जा रही हैं।

रूस, चीन, हिन्दोस्तान, जर्मनी और ब्राज़ील ने “उड़ान निषेध क्षेत्र सुनिश्चित करने” के नाम पर नागरिक निशानों पर बम बरसाये जाने का विरोध किया है। अफ्रीकी संघ ने लिबिया में सैनिक दखलंदाजी का विरोध किया है। पर सं.रा.सु.प. ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है।

हाल की गतिविधियां

गद्दाफी सरकार को गिराने में असफल होकर और इस जंग के खिलाफ़ अपने देश में जन विरोध का सामना करते हुये, ओबामा सरकार ने बीच जुलाई में, लिबियाई सरकार के साथ सत्ता परिवर्तन की वैकल्पिक योजना पर सौदा करने के इरादे से, अपने एक दूत को ट्यूनीशिया भेजा। इस योजना के तहत, अमरीका ने वादा किया कि वह गद्दाफी को अंतर्राष्ट्रीय अपराध अदालत द्वारा गिरफ्तारी से बचायेगा और किसी भी देश में उसे सुरक्षित पहुंचा देगा।

जाना जाता है कि लिबिया की सरकार ने इस सौदे को ठुकरा दिया। इसके बजाय, उसने जंग को समाप्त करने के लिये, बिना किसी शर्त के, पूर्ण वार्ता की मांग की।

तथाकथित राष्ट्रीय परिवर्तन परिषद को कूटनीतिक मान्यता लिबिया पर डाले जा रहे दबाव का हिस्सा है। 2003-04 के अमरीका लिबिया समझौते के तहत अमरीकी साम्राज्यवाद ने जो 30 अरब डालर लिबिया का धन हथिया लिया था, उसका कुछ पैसा तथाकथित बागियों को दिलाने के लिये अमरीकी साम्राज्यवाद कोशिश कर रहा है।

गद्दाफी सरकार ने 2003-04 के अमरीका-लिबिया समझौते पर हस्ताक्षर करने में अपनी गलती कबूल कर ली है और जनता के सामने माफी मांगी है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *