गंभीर विश्लेषण और दूरदर्शिता की आवश्यकता है

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव, लाल सिंह, 16 जुलाई 2011

यह ध्यान देने योग्य बात है कि हिन्दोस्तान और पाकिस्तान, दोनों शंघाई सहयोग संधी की सदस्यता पाने के इच्छुक हैं जो एक महत्वपूर्ण गुट है जिसमें चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देश शामिल हैं। इस वक्त यह अमरीका के रणनैतिक हित में है कि एशियाई देशों के बीच एक राजनीतिक गठबंधन को न उभरने दिया जाये। मुंबई में एक और श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के जरिये हिन्द-पाक दुश्मनी की आग में हवा फूंकना, इस रणनीति से बहुत मेल खाता है। अतः राजनीतिक दृष्टिकोण से यह अवधारणा सबसे ज्यादा संभव लगती है।

 13 जुलाई को श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों से किसे फायदा है? अगर यह एक भावुकता का गुनाह नहीं है बल्कि ठंडे दिमाग़ से रचा गया षडयंत्र है, तो इसके पीछे के राजनीतिक कारण जांचना जरूरी है।

कम से कम चार जांचने योग्य अवधारणायें हैं। एक अवधारणा है कि यह लश्कर-ए-तोईब्बा (एल.इ.टी.) से जुड़े किसी हिन्दोस्तानी इस्लामी गुट की या किसी पाकिस्तानी भूमिगत गुट की करतूत है। जब भी अपने देश में आतंकी हमले होते हैं, इस तरह की सोच को बहुत बढ़ावा दिया जाता है। इसकी आड़ में विभिन्न मुस्लिम नौजवानों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया जाता है और उन्हें यातनाएं दी जाती हैं। अधिकांश बार ऐसी सोच गलत साबित हुई है या कुछ भी साबित नहीं हो पाया है।

एक दूसरी अवधारणा है कि पाकिस्तान के शासकों ने अपनी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. द्वारा, हिन्दोस्तान में अस्थिरता लाने के लिये, ऐसी हरकत करवाई है। परन्तु सच्चाई तो यह दिखलाती है कि वर्तमान समय में पाकिस्तान खुद बहुत ही अस्थिर हालत में है और इसके विनाश का गंभीर ख़तरा है। उनके देश की राष्ट्रीय संप्रभुता के उल्लंघन के मुद्दे पर पाकिस्तान के शासकों का खुद अमरीका से विवाद है। पाकिस्तान की धरती पर उत्पात मचाने के लिये हाल में वहां की सरकार ने बड़ी संख्या में खुफिया एजेंटों को देश से बाहर निकाला है। अमरीका के ड्रोन नाम के चालक-रहित युद्ध विमानों द्वारा उत्तरी पाकिस्तान में बम बरसाने के खिलाफ जन विद्रोह के दबाव में पाकिस्तान की सरकार ने अमरीका से मांग की है कि वह उसके इलाके में ऐसी कार्यवाईयां बंद करे। जवाब में अमरीका ने अफग़ानिस्तानी धरती से ऐसे हमले शुरू कर दिये हैं। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति से बढ़ते खिंचाव के वक्त यह अविश्वसनीय लगता है कि पाकिस्तान के शासक अभी हिन्दोस्तान पर हमला करने की योजना बनायेंगे। एक ऐसे वक्त, जब उनके देश को असफल राज्य या दुष्ट राज्य का दर्जा दिया जा रहा है, मुंबई में बम विस्फोट कराने से उन्हें राजनीतिक तौर पर नुकसान होगा न कि फायदा।

एक तीसरी अवधारणा है कि इस गुनाह को हिन्दोस्तानी शासकों के घेरे के अंदर से ही आयोजित किया गया है ताकि लोगों का ध्यान उनके भ्रष्टाचार, घोटालों और दूसरी समस्याओं से हटाया जा सके और सभी विरोधों को पुलिस व दमन के तरीकों से कुचलने के लिये माहौल बनाया जा सके। अपने देश के व्यक्तिगत और राजकीय आतंक के इतिहास को देखते हुये, इस अवधारणा को पूरी तरह से गलत नहीं माना जा सकता है।

एक चैथी अवधारणा है कि इसकी कल्पना अमरीकी खुफिया एजेंसियों ने की है। यह उनकी पाकिस्तान को बदनाम करने, हिन्दोस्तान को अपनी तरफ खींचने और चीन को, जिसने अमरीकी सैनिक हमलों के खिलाफ़ पाकिस्तान का साथ दिया, उसको अकेला करने की रणनीति का हिस्सा है। जिस तरह से राजनीतिक परिस्थिति बदल रही है, वर्तमान काल में हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के बीच दरार गहरी करने से और दुश्मनी बढ़ाने से अमरीका को फायदा है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि हिन्दोस्तान और पाकिस्तान, दोनों शंघाई सहयोग संधी की सदस्यता पाने के इच्छुक हैं जो एक महत्वपूर्ण गुट है जिसमें चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देश शामिल हैं। इस वक्त यह अमरीका के रणनैतिक हित में है कि एशियाई देशों के बीच एक राजनीतिक गठबंधन को न उभरने दिया जाये। मुंबई में एक और श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के जरिये हिन्द-पाक दुश्मनी की आग में हवा फूंकना, इस रणनीति से बहुत मेल खाता है। अतः राजनीतिक दृष्टिकोण से यह अवधारणा सबसे ज्यादा संभव लगती है।

जब कोई गुनाह होता है तब पेशेवर तहकीकात और खोज-बीन में सारे तथ्यों को जमा किया जाता है और उनका विश्लेषण किया जाता है। सभी सोचों को संभव मानकर उनका परीक्षण उपलब्ध तथ्यों के आधार पर करने की जरूरत है। सिर्फ पूर्वाग्रहों से किसी नतीजे पर पहुंचना और किसी पर उंगली उठाना न तो पेशेवर कहलाया जा सकता है और न ही जिम्मेदाराना व्यवहार।

गृहमंत्री चिदंबरम ने सभी तथ्यों को जमा करने के पहले ही कह दिया है कि, “पाकिस्तान-अफग़ानिस्तान आतंकवाद का केन्द्र” हैं। यह अव्यवसायिक और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की सीमा है। लगता है कि ऐसे नेता अमरीकी साम्राज्यवाद की धुन पर गीत गाने के लिये उतावले हैं।

इस संदर्भ में ईरान की मजलिस द्वारा अमरीकी राजनीतिक व सैनिक प्रस्थापना के 26वर्तमान व भूतपूर्व अफसरों की सूची बहादुरी से पेश करना और उन जघन्य जंगी अपराधों व मानवाधिकारों के उल्लंघनों के आरोप लगाना तारीफ के काबिल है। इस सूची में शामिल हैं, पॉल ब्रेमर जो कि सद्दाम हुसैन के पतन के बाद इराक में अमरीकी गैर-सैनिक प्रशासक था, जनरल टोमी फ्रेंक्स जो अफग़ानिस्तान और इराक पर हमलों के समय अमरीकी कमान का मुखिया था और डॉनल्ड रम्सफील्ड जो 2001 से 2006 तक अमरीकी रक्षा सचिव था।

हिन्दोस्तानी सांसद, तथ्यों से सच्चाई तक पहुंचने के लिये, न तो सच बोल रहे हैं और न ही ईमानदारी से व्यवहार कर रहे हैं।

अगर 20 वीं और 21वीं सदी के सभी उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों को जमा किया जाये और उनका विश्लेषण किया जाये तब यही नतीजा निकलता है कि वॉशिंगटन डी.सी. में स्थित अमरीकी सेन्ट्रल एजेन्सी (सी.आई.ए.) का मुख्यालय ही आतंकवाद का असली केन्द्र है।

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