हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी मुंबई में 13 जुलाई, 2011 को तीन जगहों पर हुये आतंकवादी हमलों की निन्दा करती है।
इस अखबार के प्रकाशन के समय, सरकारी आंकड़ों के अनुसार 27लोगों की मौत हुई है और समाचार सूत्रों के अनुसार, लगभग सैकड़ों लोग बुरी तरह घायल हुये हैं। बहुत से लोगों की भारी आर्थिक क्षति भी हुई है। मृत लोगों के परिवारों, जीवन-मौत के बीच जूझ रहे लोगों, बुरी तरह घायल लोगों और आर्थिक क्षति के शिकार बने लोगों को हमारी पार्टी दिल से हमदर्दी प्रकट करती है। जैसा कि पहले भी हुआ है, इस बार भी मुंबई के लोगों ने धर्म और इलाके के भेदभाव की परवाह किये बिना, आगे आकर पीडि़तों की मदद की।
तीनों जगहों पर बम विस्फोट लगभग एक साथ ही हुये। यह साफ है कि उनका इरादा अधिक से अधिकतर नुकसान पहुंचाना था। विस्फोट शाम को 6:45 बजे से 7:10 बजे के बीच हुये, जब सबसे ज्यादा लोगों की भीड़ होती है। विस्फोट के स्थान बहुत भीड़-भाड़ वाले इलाके थे, ओपेरा हाउस में डायमंड बाज़ार, जावेरी बाज़ार और दादर में कबूतरखाना।
मीडिया में फौरन अटकलें लगानी शुरु हो गई कि कौन इनके लिये जिम्मेदार है। पाकिस्तान-विरोधी और मुसलमान-विरोधी भावनायें उकसायी जा रही हैं, जैसा कि पहले हुआ है। बीती घटनाओं में कई बार मुसलमानों और पाकिस्तान के खिलाफ़ इसी प्रकार के इलज़ाम लगाये गये हैं, जो बाद में झूठे साबित हुये हैं। बेकसूर लोगों को किसी दोष के सबूत के बिना ही, पीडि़त किया गया, मार डाला गया या जेलों में बंद कर दिया गया। उग्रराष्ट्रवादी उत्तेजना फैलाने से सच्चाई का पता लगाने और गुनहगारों को सज़ा दिलाने में कभी मदद नहीं मिली है, बल्कि जांच को दिशाभ्रमित किया गया है और सच्चाई को छिपाये रखने में मदद मिली है।
13 जुलाई के विस्फोट ऐसे समय पर हुये जब हिन्दोस्तान और पाकिस्तान अपनी अनसुलझी समस्याओं को हल करने के लिये आपसी कोशिश करने में गंभीरता दिखा रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार और लोग इस समय हिन्दोस्तान से दोस्ती चाहते हैं, जब अमरीकी साम्राज्यवाद की हरकतों के कारण पाकिस्तान की संप्रभुता खतरे में है। कुछ ही दिन पहले, हिन्दोस्तान की भूतपूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने आतंकवाद पर पाकिस्तान के रवैये में तब्दीलियों का जिक्र किया और बताया कि इन पर हिन्दोस्तान को ध्यान देना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि बीते समय का अनुभव यह दिखाता है कि पाकिस्तान से बातचीत न करने का तरीका कामयाब नहीं होता है, कि हिन्दोस्तान को पाकिस्तान से बातचीत करना रोकना नहीं चाहिये।
बीते दशक में, हिन्दोस्तानी सरकार ने दो बार पाकिस्तान के साथ वार्ता बंद कर दिया था – 13 दिसंबर, 2001 में हिन्दोस्तानी संसद पर हमले के बाद और नवंबर 2008 में मुंबई में हुये आतंकवादी हमले के बाद। इन दोनों मामलों में जांच या तो आगे नहीं बढ़ी है या फिर किसी और का हाथ इनमें नज़र आया है। दोनों बार, अमरीकी साम्राज्यवाद ने इस इलाके में अपने इरादों को बढ़ावा दिया है, दक्षिण एशिया में अपनी सैनिक ताकत को मजबूत किया है और साथ ही साथ, हिन्दोस्तान व पाकिस्तान के बीच दुश्मनी को और गहराया है। आज अमरीका की सरकार हिन्दोस्तान को अपने और निकट लाना चाहती है और पाकिस्तान के बारे में हव्वा खड़ा करना चाहती है। यह चीन को कमजोर करने तथा खुद को चुनौती देने वाले एशियाई ताकतों के गठबंधन को बनने से रोकने की उसकी पूरी रणनीति का हिस्सा है।
इस समय अमरीका की अगुवाई में साम्राज्यवादी ताकतें, जिन्होंने इराक और अफगानिस्तान पर कब्जा कर रखा है, पश्चिमी पाकिस्तान पर ड्रोन हमलों द्वारा मौत और तबाही फैला रही हैं। चीन ने पाकिस्तान को भाईचारा व मदद का हाथ बढ़ाया है और अमरीका की कार्यवाहियों को संप्रभुता का हनन बताया है। चीन ने सरकारी तौर पर घोषित किया है कि पाकिस्तान की संप्रभुता पर अमरीकी हमलों को चीन पर हमला माना जायेगा। हिन्दोस्तान और पाकिस्तान को निकट आने से रोकने में अमरीकी साम्राज्यवादियों को फायदा है। अमरीकी साम्राज्यवादी एशिया के किसी भी भाग के लोगों को साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ एकजुट होने से रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
बम विस्फोटों का विश्लेषण करते समय हमें इन सभी बातों का ध्यान रखना होगा। भूराजनीतिक वास्तविकता के संदर्भ में सभी संभावनाओं पर ध्यान देना होगा। गुनहगारों को पकड़ कर उन पर मुकदमा चलाना होगा और उन्हें सज़ा देनी होगी। पर्दे के पीछे छिपे हाथ का पर्दाफाश करना होगा।
हिन्दोस्तानी सरकार को पूर्वाभास के आधार पर, ठोस सबूत के बिना, किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहिये या ऐसे आरोपों को फैलाने की इजाज़त नहीं देनी चाहिये। हिन्दोस्तान की सरकार को पाकिस्तान से बातचीत नहीं रोकनी चाहिये। अगर वह ऐसा करती है तो वह ठीक उन ताकतों की चाल में फंस रही होगी, जो दक्षिण एशिया में शान्ति और सभी राष्ट्रों व लोगों की संप्रभुता पर हमला कर रही हैं।