पाकिस्तान की सरकार और लोगों को अपनी संप्रभुता की हिफाज़त करने का पूरा अधिकार है!
अमरीकी साम्राज्यवादी “आतंकवाद पर जंग” के नाम पर, पाकिस्तान पर अपना दबाव बढ़ा रहे हैं। 22 जून, 2011 को अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने भाषण में पाकिस्तान को साफ-साफ धमकी दी कि उसे अमरीका के “आतंकवाद पर जंग” का पूरा-पूरा समर्थन करना चाहिये और अमरीका पाकिस्तान म
पाकिस्तान की सरकार और लोगों को अपनी संप्रभुता की हिफाज़त करने का पूरा अधिकार है!
अमरीकी साम्राज्यवादी “आतंकवाद पर जंग” के नाम पर, पाकिस्तान पर अपना दबाव बढ़ा रहे हैं। 22 जून, 2011 को अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने भाषण में पाकिस्तान को साफ-साफ धमकी दी कि उसे अमरीका के “आतंकवाद पर जंग” का पूरा-पूरा समर्थन करना चाहिये और अमरीका पाकिस्तान में खास निशानों पर हमले करता रहेगा।
अमरीका की अगुवाई में साम्राज्यवादी इस समय पाकिस्तान को आतंकवाद का स्रोत बता रहे हैं, जबकि असलियत में अमरीकी साम्राज्यवाद ही अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का स्रोत है। सभी पाकिस्तानियों को आतंकवादी बताया जा रहा है। पाकिस्तान के लोग बड़ी से बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर कर अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके ड्रोन हमलों का विरोध कर रहे हैं। इन ड्रोन हमलों से उस देश के पूर्वी सीमावर्ती प्रदेशों में सैकड़ों-हजारों नागरिक मारे गये हैं। इसका विरोध करने वाले लोगों को आतंकवादी और उग्रवादी बताया जा रहा है। अमरीकी साम्राज्यवादी पाकिस्तान पर जंग छेड़ने तथा उस देश को टुकड़े-टुकड़े कर देने के इरादे से दुनिया भर में बड़े सुनियोजित तरीके से अपना झूठा प्रचार फैला रहे हैं। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, सिर्फ पाकिस्तान के लोगों के लिये ही नहीं बल्कि हिन्दोस्तानी लोगों के लिये भी।
“आतंकवाद के खिलाफ़ संयुक्त कार्यवाही” के नाम पर अब बीते कई वर्षों से अमरीकी सैनिक ताकतें और खुफिया दल पाकिस्तान में पूरी छूट के साथ काम कर रहे हैं। पाकिस्तान के लोग इससे बहुत खफा हैं। पिछले साल, जब पाकिस्तान के बहुत बड़े हिस्से में बाढ़ से तबाही मची हुई थी, तब अमरीकी नियंत्रण में वायु सेना के अड्डों ने बाढ़ पीडि़त लोगों को बचाने के बजाय, हवाई अड्डे से बाढ़ के पानी को हटाकर उसे बसे हुये रिहायशी इलाकों की तरफ बहा दिया था, जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति हुई थी। कुछ महीने पहले, एक अमरीकी खुफिया एजेंट ने इस्लामाबाद में दिन-दहाड़े दो युवकों को गोली से मार गिराया, जिसके खिलाफ़ लोगों ने भारी संख्या में प्रतिरोध किया। अमरीका ने पाकिस्तान पर खूब दबाव डाला जिसके कारण पाकिस्तानी सरकार को उस एजेंट को रिहा करना पड़ा।
1 मई, 2011को अबोटाबाद में आधी रात को किये गये हमले, जिसमें अमरीकी हवाई कमांडो में ओसामा बिन लादेन को मार गिराने का दावा किया, उसके खिलाफ़ पूरे पाकिस्तान के लोग उठ खड़े हुये हैं और अपने देश की संप्रभुता के इस घोर हनन का विरोध कर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद से भयानक खतरे के बारे में अब वहां लोग जागरुक हो चुके हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने पाकिस्तान की संप्रभुता के हनन को खुलेआम उचित ठहराया है और बड़े घमंड के साथ ऐलान किया है कि जब भी कभी ऐसी जरूरत होगी, तो अमरीका फिर से पाकिस्तान पर ऐसा हमला करेगा।
ओबामा ने यह धमकी तब दी जब पाकिस्तान की सरकार अबोटाबाद के हमले के बाद, लोगों के गुस्से की वजह से सैकड़ों अमरीकी सैनिक प्रशिक्षकों को देश से निकालने को मजबूर हुई। इससे पहले, अमरीकी खुफिया एजेंट द्वारा पाकिस्तानी युवकों के मारे जाने के खिलाफ़ लोगों के गुस्से की वजह से, कई खुफिया एजेंटों को देश से निकाला गया था।
पाकिस्तान ने देश के अन्दर हवाई अड्डों से अमरीकी ड्रोन विमानों की उड़ानों पर भी रोक लगायी है। परन्तु पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों को निशाना बनाकर, अफगानिस्तान में कंधार से मिसाइल छोड़ने वाले प्रेडेटर और रीपर विमान अभी भी अपनी उड़ाने किये जा रहे हैं।
पाकिस्तान सरकार के इन कदमों के जवाब में अमरीका ने यह घोषणा की है कि पाकिस्तान को दी जाने वाली 80 करोड़ डॉलर की सैनिक सहायता पर रोक लगायी जायेगी। यह पाकिस्तान को प्रतिवर्ष दी जाने वाली 2 अरब डॉलर की सहायता का एक तिहाई से ज्यादा है। यह पाकिस्तानी सेना पर दबाव डालने के लिये किया जा रहा है, ताकि वह अमरीकी आदेशों का पालन करे। वाइट हाउस के मुख्य अधिकारी विलियम डेली ने 10 जुलाई, 2011 को कहा कि हालांकि पाकिस्तान “आतंकवाद पर जंग में एक महत्वपूर्ण सहयोगी रहा है, परन्तु… अब उन्होंने कुछ कदम उठाये हैं जिनकी वजह से हमें उनकी सेना को दी जाने वाली सहायता को रोकना पड़ा है और हम ऐसा कर रहे हैं”।
अमरीका के इरादे
अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि वह अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान को एक ही क्षेत्र मानता है और उसने वादा किया है कि “उचित जंग” पर पूरा ध्यान दिया जायेगा।
1,50,000 अमरीकी और दूसरे विदेशी सैनिक इस समय अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किये बैठे हैं। पाकिस्तान में तैनात अमरीकी सैनिकों की गिनती नहीं है। इस सबके पीछे अमरीका का क्या इरादा है?
अफगानिस्तान और पाकिस्तान बहुत ही महत्वपूर्ण इलाके में स्थित हैं, जो तेल संपन्न ईरान और तेल व गैस संपन्न मध्य एशियाई राज्यों के साथ जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान की चीन तथा हिन्दोस्तान के साथ सीमायें हैं। चीन और हिन्दोस्तान दो ऐसे देश हैं जिन्हें अमरीका इस सदी में अपना प्रतिस्पर्धी मानता है, जो पूरी दुनिया पर कब्जा करने के अमरीका के सपने को चुनौती देने के काबिल बन सकते हैं। चीन पाकिस्तान के रास्ते से हिन्द महासागर तक पहुंच सकता है। उत्तर में रूस है, जो एक और बड़ी ताकत तथा संभावित खतरा है। अमरीका हिन्दोस्तान और चीन के बीच के संबंधों में टांग अड़ाने की कोशिश करता रहता है, ताकि यह दो बड़ी ताकतें एकजुट न हो जायें। अमरीका हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के लोगों द्वारा हमारे दोनों देशों की आपस की दुश्मनी के इतिहास पर काबू पाने की कोशिशों को रोकने की पूरी कोशिश करता है। अमरीका पाकिस्तान को अपने कब्जे में पूरी तरह लाना चाहता है, ताकि वह इस तरह चीन, हिन्दोस्तान, रूस और ईरान पर दबाव डाल सके। ईरान और पाकिस्तान को घेरने की अमरीका की योजना में अफगानिस्तान का कब्जा एक अहम हिस्सा था। पाकिस्तान पर कब्ज़ा और उसे टुकडे़-टुकड़े करना, यह भी अमरीका की योजना का हिस्सा है, जिसका निशाना सबसे पहले चीन है पर उसके बाद हिन्दोस्तान भी है।
10 वर्ष पहले पाकिस्तान को अमरीकी धमकियों की वजह से, हिन्दोस्तान की धमकियों की वजह से और अपने शासकों के तंग नज़रिये और खुदगजऱ् इरादों की वजह से, अफगानिस्तान में अमरीकी योजनाओं में सहयोग देने को मजबूर किया गया था। अब पाकिस्तान के लोग इसके अंजाम भुगत रहे हैं।
हमारे देश के शासक भी तंग नज़रिये वाले और खुदगजऱ् हैं। वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि अमरीका सारी दुनिया में तथा हमारे इलाके में आतंकवाद का स्रोत हमेशा रहा है व आज भी है और अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा दूसरे देश इसके शिकार हैं। हमारे शासक पाकिस्तान की गतिविधियों से सही सबक नहीं सीखना चाहते हैं। दक्षिण एशिया में अमरीकी योजनाओं के खिलाफ़ हिन्दोस्तान के लोगों को लामबंध करने के बजाय, हमारे शासक अमरीका के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ़ अपनी रणनीति चला रहे हैं। अमरीका ने जैसे ही यह घोषणा की कि पाकिस्तान को सैनिक सहायता रोकी जायेगी, तो हिन्दोस्तान की सरकार ने फौरन इसकी सराहना की। हिन्दोस्तान का शासक वर्ग अपने इस बर्ताव से देश की संप्रभुता और इस इलाके में शान्ति को जोखिम में डाल रहा है।
आज यह वक्त की मांग है कि पाकिस्तान की संप्रभुता पर अमरीकी हमलों की कड़ी निंदा की जाये और उन्हें अपने देश की संप्रभुता पर भी हमला माना जाये। हमें इस संकट की घड़ी में पाकिस्तान की सरकार और लोगों को मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहिये। हमें अफगानिस्तान पर अमरीकी साम्राज्यवादी कब्ज़े और पाकिस्तान पर जंग की अमरीकी योजनाओं के खिलाफ़, देश की संप्रभुता और शान्ति की हिफ़ाज़त के लिये सभी लोगों को एकजुट करने का संघर्ष तेज करना होगा।