गुरुवार, 30 जून 2011, ब्रिटेन की गठबंधन सरकार की पेंशन सुविधाओं में कटौतियों की नीति के खिलाफ़, देश भर में संचालित हड़ताल कार्यवाईयों का पहला दिन था।
गुरुवार, 30 जून 2011, ब्रिटेन की गठबंधन सरकार की पेंशन सुविधाओं में कटौतियों की नीति के खिलाफ़, देश भर में संचालित हड़ताल कार्यवाईयों का पहला दिन था।
सरकार सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने की, पेंशन के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूरों का योगदान बढ़ाने की, और साथ ही, सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली मज़दूरों की पेंशन को घटाने की कोशिश में है। निजी क्षेत्र के मज़दूरों व खास तौर पर निजी स्कूलों के शिक्षकों को भी सरकार ने निशाना बनाया है। उसका प्रस्ताव है कि निजी क्षेत्र के शिक्षकों को मिलने वाली पेंशन को सरकारी क्षेत्र के शिक्षकों को मिलने वाली पेंशन योजना से अलग कर देना चाहिये। इससे स्कूल के शिक्षकों की हालत पर बहुत बुरा असर होगा। इन शिक्षकों को खुद निजी पेंशन का बंदोबस्त करना पड़ेगा और पेंशन के लिये अधिक धन का योगदान देना होगा। इससे अमली तौर पर, पहले के मुकाबले, उनकी हालत और खराब होगी। संभवतः सेवानिवृत्ति पर वे गरीबों में गिने जायेंगे।
हड़ताल के आह्वान का जबरदस्त असर पड़ा – ब्रिटेन भर में बहुत से स्कूल पूरी तरह बंद थे। खुले स्कूलों में से बहुत से स्कूलों में शिक्षकों ने पढ़ाने से इनकार किया। लंदन, ब्रिस्टल, न्यू कासल के साथ-साथ बहुत से शहरों और नगरों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गये। लंदन का विरोध प्रदर्शन लिंकन्स इन फील्ड से शुरू हुआ और अनुमान लगाया गया है कि इसमें 40,000 से भी अधिक लोगों ने भाग लिया।
सभा के अंत में इस बात की पुष्टि की गयी कि अगर सरकार उनकी आवाज नहीं सुनती है तो रैली में उपस्थित सभी लोग अपने संघर्ष को जारी रखने में दृढ़ रहेंगे। यह घोषणा की गयी कि सभी शिक्षक बच्चों की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिये परिश्रम करते आये हैं, और एक आधुनिक राष्ट्र के लिये, जो दुनिया का पांचवां सबसे सम्पन्न देश है, शिक्षकों को वृद्धावस्था की जिन्दगी में गरीबी में धकेलना, न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि बहुत ही शर्मनाक बात है।
सरकार और इजारेदारी नियंत्रण के प्रसार माध्यमों द्वारा यूनियनों में फूट को बढ़ाचढ़ा कर बताने के बावजूद, 30 जून, 2011 को दूसरे मज़दूरों द्वारा की गयी हड़तालें, मेहनतकश लोगों की एकता और दृढ़ता का सबूत हैं। मज़दूर अर्थव्यवस्था को एक अलग दिशा देने के लिये लड़ रहे हैं ताकि अर्थव्यवस्था मज़दूर वर्ग और पूरे समाज के हितों के अनुकूल हो।