1 फरवरी को 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिजली और बीमा सहित कई क्षेत्रों में निजीकरण के कार्यक्रम के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कई नीतिगत घोषणाएं कीं।
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केंद्रीय बजट 2025:

बिजली मज़दूर और उपभोक्ता, “स्मार्ट” मीटरों के झांसे में न आयें!
बिजली आधुनिक जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। इसे किफ़ायती दाम पर उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है। इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के बजाय, केंद्र सरकार निजी कंपनियों को अधिकतम मुनाफे़ की गारंटी देने के लिए ऐसे क़दम उठा रही है, जिसके कारण बिजली बहुत से लोगों की पहुंच से बाहर हो जाएगी।
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बिजली के वितरण का निजीकरण – झूठे दावे और असली उद्देश्य
भारत में बिजली पर वर्ग संघर्ष पर लेखों की श्रृंखला में यह पांचवां लेख है
यदि सरकार बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में पेश करती है तो लगभग 27 लाख बिजली मज़दूर देशभर में हड़ताल पर जाने की धमकी दे रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार बिजली वितरण के निजीकरण की अपनी योजना को लागू न करे।
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बिजली वितरण के निजीकरण के ख़िलाफ़ : नागरिकों के साथ एम.एस.ई.डी.सी.एल. के मज़दूरों की मज़बूत एकता को सलाम!
हमारे पाठक जानते हैं कि महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड (एम.एस.ई.डी.सी.एल.) के मज़दूर कलवा, मुंब्रा और दिवा (ठाणे के उपनगरों) में बिजली वितरण के निजीकरण के ख़िलाफ़ एक बहादुर संघर्ष कर रहे हैं। जैसा कि अन्य क्षेत्रों के मज़दूरों के मामले में होता है, सरकार और इजारेदारों द्वारा नियंत्रित मीडिया ने उपयोगकर्ताओं को मज़दूरों के ख़िलाफ़ भड़काने की कोशिश
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