फिनलैंड के सैकड़ों मज़दूरों ने रुके हुये वेतन समझौते की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने के मकसद से चुनिंदा पेपर कारखानों पर दो सप्ताह की हड़ताल करने का फैसला लिया है। ट्रेड यूनियन का कहना है कि हड़ताल अप्रैल के पहले सप्ताह में शुरू हुई और इसमें करीब एक हजार मज़दूर शामिल थे। संभावना है कि इससे यू.पी.एम.-कायमेने कंपनी के कारखाने बंद हो जायेंगे। दुनियाभर के सबसे ज्यादा मैंगज़ीन कागज बनाने वाली इस
आगे पढ़ेंखर्चों में कटौती और श्रम-विरोधी कानून के खिलाफ़ अमरीका में जबरदस्त विरोध
5अप्रैल, 2011को हाल के कानूनों के जरिये यूनियनों व मज़दूरों के संगठित होने के अधिकारों पर हमलों (विसकांसिन, ओहायो व अन्य स्थानों पर) और सामाजिक खर्चे पर कटौती के खिलाफ़ पूरे अमरीका में विरोध प्रदर्शन किये गये।
आगे पढ़ेंसाम्राज्यवादियों ने आयवरी कोस्ट में गृहयुद्ध भड़काया
पश्चिमी अफ्रीका के आयवरी कोस्ट देश में एक जबरदस्त गृहयुद्ध शुरू हो गया जब साम्राज्यवादी ताकतों ने उस देश में सत्ता परिवर्तन लाने के कदम उठाये। रिपोर्टों के अनुसार फ्रांस, अमरीका और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की शह में अलस्साने उआतारा की ताकतों ने एक हजार तक लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। साम्राज्यवादियों ने वर्तमान राष्ट्रपति लारेंट बाग्बो की जगह उआतारा को लाने की मंशा जता दी है।
आगे पढ़ेंलिबिया पर साम्राज्यवादी हमला – एक अपराधी साजि़श
17मार्च, 2011से लिबिया पर, उसके आधुनिक इतिहास में सबसे बर्बर साम्राज्यवादी हवाई, समुद्री और ज़मीनी हमले किये जा रहे हैं। अमरीकी और यूरोपीय पनडुब्बियों, युद्ध पोतों व लड़ाकू विमानों से छोड़े गये हजारों बमों और मिसाइलों से लिबिया के सैनिक अड्डों, हवाई अड्डों, सड़कों, बंदरगाहों, तेल भंडारों, हथियार के भंडारों, टैंकों, अस्त्र वाहनों, विमानों तथा सेनाओं को नष्ट किया जा रहा है। इसमें सैकड़ों नागरि
आगे पढ़ेंपश्चिम बंगाल में चुनाव
पश्चिम बंगाल में व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है
माकपा नीत पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार मजदूरों और किसानों की सरकार नहीं है। वह एक पूंजीवादी सरकार है जो पश्चिम बंगाल की हालतों में पूंजीपतियों की संपूर्ण रणनीति को लागू करती आई है। माकपा के काम का इतिहास यह दिखाता है कि वह कम्युनिस्ट-विरोधी है। 60के दशक में उसने केन्द्र में बैठी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर, कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की अगुवाई में चल रहे नक्सलबाड़ी किसान आन्दोलन को कुचला था।
आगे पढ़ेंतमिलनाडु चुनाव में लोगों के उम्मीदवार का जोरदार अभियान
तमिलनाडु में विधान सभा चुनाव के माहौल में लोगों के उम्मीदवार कामरेड टी.
आगे पढ़ेंवी.आई. लेनिन की 141वीं सालगिरह के अवसर पर : श्रमजीवी क्रान्ति और श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व की जीत के लिये संघर्ष करें!
हमारे देश में कई पार्टियों ने कम्युनिज़्म को अपना लक्ष्य बताया है परन्तु वे मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को उन लक्ष्यों के लिये संगठित करते हैं जो श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करने के लक्ष्य से विपरीत हैं। हमारी पार्टी का यह मानना है कि इस निर्णायक असूल पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कम्युनिस्ट पार्टी की परिभाषा यह है कि वह श्रमजीवी वर्ग का अधिनायकत्व स्थापित करने का राजनीत
आगे पढ़ेंचुनाव प्रक्रिया में मूलभूत परिवर्तन की ज़रूरत है
पांच राज्यों – असम, बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी और केरल – की विधानसभाओं के चुनाव इस वर्ष अप्रैल और मई में होंगे। ये चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब खाद्य और दूसरी ज़रूरी चीजों की आसमान छूने वाली कीमतों की वजह से मेहनतकशों का जीवन और ज्यादा कठिन हो गया है तथा अधिक से अधिक बुनियादी ज़रूरत की चीजें लोगों की पहुंच से बाहर जा रही हैं। बड़े-बड़े नेताओं, अफसरों और विभिन्न इजारेदार पूंजीपतियों के तरह-त
आगे पढ़ेंशिक्षा का अधिकार कानून की हक़ीक़त
एक अप्रैल 2010, को शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ था। उसके एक साल बाद इस कानून के पीछे हिन्दोस्तान की सरकार के असली इरादे स्पष्ट हो रहे हैं – समानता या इंसाफ की चिन्ता किये बिना, मुख्यतः पूंजीवादी बाजार की मांगें पूरी करना।
आगे पढ़ेंपार्टी बदलने से नहीं चलेगा, पूरी व्यवस्था बदलनी होगी!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 20 मार्च, 2011
पूंजीवादी लोकतंत्र के इस गहरे संकट का इस्तेमाल इंकलाब और समाजवाद की ओर बढ़ने के लिए कम्युनिस्टों को करना चाहिए। इसके बजाय, माकपा और भाकपा इस व्यवस्था को बचाना चाहती हैं। हर एक चुनाव में ये पार्टियाँ कभी एक तो कभी दूसरी पूंजीवादी पार्टी की दुम बन जाती हैं। अपनी इस लाइन को वे यह तर्क देकर सही बताती हैं कि प्रान्तिक पूंजीपति मजदूर वर्ग और समाजवाद के आन्दोलन में सहयोगी हैं। पहले कई बार माकपा और भाकपा ने द्रमुक को धर्मनिरपेक्ष बताकर उसके साथ गठबंधन बनाया। आज ये पार्टियाँ अन्ना द्रमुक के साथ गठबंधन बना रही हैं, जिसे उन्होंने कभी पहले सांप्रदायिक, भ्रष्ट और गुनहगार पार्टी करार दिया था। मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था के साथ घुल-मिल जाने की लाइन के चलते, माकपा के अन्दर मौजूद भ्रष्टाचार का भी पर्दाफाश हुआ है, खास तौर से उन राज्यों में जहाँ यह सत्ता में रही है।
आगे पढ़ें