बिजली एक सामाजिक आवश्यकता है और एक सर्वव्यापी मानव अधिकार है

हिन्दोस्तान में बिजली पर वर्ग संघर्ष पर लेखों की श्रृंखला में यह छठवां लेख है

बिजली को लेकर जो वर्ग संघर्ष चल रहा है, वह इस बारे में है कि इस महत्वपूर्ण उत्पादक शक्ति का मालिक कौन होना चाहिए और इसके उत्पादन और वितरण का उद्देश्य क्या होना चाहिए। संघर्ष के केंद्र में है समाज में बिजली की भूमिका की परिभाषा।

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बिजली के वितरण का निजीकरण – झूठे दावे और असली उद्देश्य

भारत में बिजली पर वर्ग संघर्ष पर लेखों की श्रृंखला में यह पांचवां लेख है

यदि सरकार बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में पेश करती है तो लगभग 27 लाख बिजली मज़दूर देशभर में हड़ताल पर जाने की धमकी दे रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार बिजली वितरण के निजीकरण की अपनी योजना को लागू न करे।

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बिजली के उत्पादन का निजीकरण – झूठे दावे और असली उद्देश्य

यह हिन्दोस्तान में बिजलीक्षेत्र में वर्ग संघर्ष पर लेखों की एक श्रृंखला में चौथा लेख है

1992 में स्वतंत्र बिजली उत्पादक नीति (आई.पी.पी.) की शुरुआत के साथ, बिजली का उत्पादन हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों के लिए खोल दिया गया था। 1992 से पहले, बिजली का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र में ही किया जाता था।

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हिन्दोस्तान में बिजली की आपूर्ति का ऐतिहासिक विकास – 1947 से 1992

यह हिन्दोस्तान में बिजली पर वर्ग संघर्ष के लेखों की श्रृंखला में तीसरा लेख है

आज हमारे देश में बिजली के उत्पादन और वितरण के संबंध में आधिकारिक स्थिति, सरकार द्वारा 1947 में घोषित की गई स्थिति के विपरीत है। उस समय यह घोषणा की गई थी कि सभी को और पूरे देश में सस्ती दर पर बिजली प्रदान करने की पूरी ज़िम्मेदारी राज्य को लेनी चाहिए। बिजली क्षेत्र के लिए इस नीति को पूरी तरह से क्यों पलट दिया गया है? इस प्रश्न का हल ढूंढने के लिए, हमारे देश में पूंजीपति वर्ग और पूंजीवादी व्यवस्था के विकास के संदर्भ में बिजली क्षेत्र के विकास के इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक है।

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बिजली-आपूर्ति का संकट और उसका असली कारण

हिन्दोस्तान में बिजली को लेकर वर्ग संघर्ष पर लेखों की श्रृंखला में यह दूसरा लेख है

देश के बहुत से स्थानों पर बिजली की कमी की गंभीर समस्या है क्योंकि थर्मल पॉवर प्लांटों (ताप बिजलीघरों) के पास आवश्यक बिजली का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त कोयला नहीं है। इजारेदारों के नियंत्रण वाली मीडिया इस बात को लेकर भ्रम पैदा कर रही है कि बिजली की कमी के लिए कौन और क्या ज़िम्मेदार है।

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बिजली क्षेत्र के मज़दूरों का संघर्ष बिल्कुल जायज़ है! बिजली का निजीकरण जन-विरोधी है!

बिजली मानव जीवन की मूलभूत ज़रूरतों में से एक है। इसलिए इस मूलभूत आवश्यकता के उत्पादन और वितरण का उद्देश्य निजी मुनाफ़ा कमाना नहीं हो सकता

हिन्दोस्तान में बिजली को लेकर वर्ग संघर्ष पर लेखों की श्रृंखला में यह पहला लेख है

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