हमारे देश के बैंकों की समस्या बद से बदतर होती जा रही है और यह गहरी चिंता का विषय है। इस चिंता का स्रोत है पूंजीपतियों द्वारा बैंकों के कर्ज़ों को वापस न करने से पैदा हुआ संकट है, जिसका बोझ लोगों के कंधों पर डाला जा रहा है। पिछले 7 वर्षों में सार्वजनिक बैंकों ने कर्ज़दार पूंजीपतियों के कुल
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बैंकिंग का संकेंद्रण और बढ़ती परजीविता
देश के सार्वजनिक बैंकों के विलयन और निजीकरण के जरिये बैंकिंग पूंजी का तेजी से संकेंद्रण होता जा रहा है। इसका मकसद है देश में कुछ चंद मुट्ठीभर बड़े इजारेदार बैंक तैयार करना, जो अधिकतम मुनाफों के लिए एक-दूसरे से होड़ करेंगे और समझौते करेंगे। बैंक के मज़दूरों और आम तौर पर समाज पर इसका बहुत बुरा परिणाम होने वाला
आगे पढ़ेंबैंकों के विलयन और निजीकरण का असली मकसद
तीन साल पहले जब केंद्र सरकार ने बैंकों के विलयन की प्रक्रिया शुरू की थी उस समय उसने दावा किया था कि विलयन का उद्देश्य बैंकों की “गैर-निष्पादित संपत्तियों (एन.पी.ए.)” या खराब कर्ज़ों की समस्या को सुलझाना है। लेकिन उस समय से बैंकों के खराब कर्ज़ों की समस्या बद से बदतर होती गयी है।
आगे पढ़ेंइजारेदार पूंजीवाद के पड़ाव पर बैंकों की भूमिका पर लेनिन की सीख
हाल ही में कुछ सार्वजनिक बैंकों के विलय के बाद से हमारे देश में बैंकिंग पूंजी का बड़े पैमाने पर संकेंद्रीकरण देखा गया है। इस संदर्भ में पूंजीवाद के साम्राज्यवादी पड़ाव में बैंकों की भूमिका पर लेनिन की सीखों को याद करना बेहद उपयोगी है। लेनिन का शोधग्रंथ “साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था” हमें बताता है कि जब बैंक इजारेदार
आगे पढ़ेंसार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में संकट और बैंक कर्मचारियों की हालतें
आल इंडिया बैंक एम्प्लाइज एसोसिएशन (ए.आई.बी.ई.ए.) के सह सचिव, कामरेड देविदास आर. तुल्जापुरकर (डी.आर.टी.) ने मज़दूर एकता लहर (म.ए.ल.) के संवाददाता के साथ, बैंक कर्मचारियों की हालतों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के संकट के बारे में बातचीत की। वार्तालाप को यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
आगे पढ़ेंबैंकिंग व्यवस्था का गहराता संकट – कारण और समाधान
हाल ही में सामने आया बैंक घोटाला, जिसमें पंजाब नेशनल बैंक, हिन्दोस्तान के कई अन्य बैंकों तथा हीरों के व्यापारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी शामिल हैं। इसने बैंकिंग व्यवस्था के संकट को फिर से सार्वजनिक चर्चा के मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है।
हिन्दोस्तान का हुक्मरान वर्ग इस घोटाले का इस्तेमाल, जिसमें सार्वजनिक बैंक शामिल हैं, इस गलत और ख़तरनाक धारणा को आगे बढ़ाने के लिए कर रहा है कि सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण करना ही, इस बैंकिंग व्यवस्था को संकट से बाहर निकालने का एकमात्र रास्ता है।
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