सितंबर 2011 के अंतिम सप्ताह में, यूनान के एथेंस और दूसरे शहरों में दसियों-हजारों लोग, अपने जीविका पर सरकार द्वारा हमले की एक नयी लहर के विरोध में सड़कों पर उतरे।
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सितंबर 2011 के अंतिम सप्ताह में, यूनान के एथेंस और दूसरे शहरों में दसियों-हजारों लोग, अपने जीविका पर सरकार द्वारा हमले की एक नयी लहर के विरोध में सड़कों पर उतरे।
आगे पढ़ें१५ अक्तूबर २०११ को मारूती-सुजुकी के मजदूरों के संघर्ष के समर्थन में मजदूर एकता कमेटी, आल इंडिया फेडरेशन आफ ट्रेड यूनियन्स, इंकलाबी मजदूर केंद्र, इंडियन फेडरेशन आफ ट्रेड युनियन, इंडियन काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स, मजदूर एकता केंद्र, सहित कई अन्य संगठनों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने संयुक्त रूप से दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया और मारूति-सुजुकी के प्रबंधन तथा हरियाणा सरकार का पुतला
आगे पढ़ेंअमरीका के बैंकों और दूसरे वित्तीय संस्थानों के बोर्डरूमों में बैठने वाले अरबपति अमीरों के न्यू यॉर्क स्थित घरों के सामने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने 11 अक्तूबर, 2011 को जुलूस निकाला।
प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे, “बैंकों को बचा लिया, हमें डुबा दिया” और “अरे तुम अरबपतियों, अपना उचित हिस्सा चुकाओ”। उनकी तख्तियों पर लिखा था “हम 99 प्रतिशत हैं।”
आगे पढ़ेंतमिलनाडु में कूड़ंगकुलम परमाणु परियोजना के खिलाफ़ जन प्रतिरोध उभर आया है। इसमें दसों-हजारों मजदूरों, किसानों, मछुआरों और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया है।
आगे पढ़ेंइसकी तत्कालिक वजह है कि मारूती-सुजुकी के प्रबंधन और हरियाणा सरकार मिलकर मजदूरों पर अत्याचार कर रहे हैं।
गुड़गांव के मानेसर स्थित मारूती-सुजुकी के 1600 कैजुअल कर्मचारियों को प्रबंधकों द्वारा काम पर न लिए जाने तथा गुंडों से उन मजदूरों पर हमला करवाने के खिलाफ़, मारूती-सुजुकी के मजदूर कंपनी के अंदर काम ठप्प करके धरने पर बैठ गये हैं।
आगे पढ़ेंआज मानेसर में जो संघर्ष चल रहा है, यह देश के मजदूर वर्ग और पूंजीपति वर्ग, दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। संघर्ष एक निर्णायक मोड़ पर है। एक तरफ, क्षेत्र के लाखों मजदूर अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी तरफ, केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पूरा पूंजीपति वर्ग इस संघर्ष को कुचलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
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देश और दुनिया में हाल ही में हुई घटनाओं से आधुनिक समाज में संप्रभुता किसके हाथों में होनी चाहिए यह सवाल तीव्रता से सबके सामने पेश आया है। 11 सितम्बर, 2011 को लोक राज संगठन ने इस महत्त्वपूर्ण विषय पर दिल्ली में एक जनसभा का आयोजन किया। लोगों के हाथों
जब भी पेट्रोल या डीज़ल की कीमतें बढ़ायी जाती हैं, तब सरकार दावा करती है कि यह “असहनीय सबसीडिज़” की वजह से करना पड़ा है। यह साफ़-साफ़ झूठ है, क्योंकि अपने देश में पेट्रोल के उत्पादों पर भारी कर है, न कि उनके लिए सबसीडिज़ दिया जाता है। पेट्रोल के उत्पादों से टैक्स के द्वारा जितना कुल टैक्स इकट्ठा किया जाता है, उसके मुकाबले केंद्र के बजट में “सबसीडी” केवल 10 प्रतिशत है। रुपयों में देखेंगे तो हिन्दोस्तान में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत 70 रुपये है, जबकि चीन में 37, अमरीका में 40, पाकिस्तान में 39, श्री लंका में 47 और कनाडा में 53 रुपये हैं।
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26 सितम्बर, 2011 को वोल्टास लिमिटेड के मजदूरों ने आल इंडिया वोल्टास इंप्लाईज फेडरेशन की अगुवाई में अपनी मांगों को लेकर संसद पर धरना दिया। ये श्रमिक पिछले 15 वर्षों से स्थायी मजदूरों की भर्ती न करने, द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन करने के खिलाफ़ व ठेके
सुजुकी के जापानी मालिक ओसामा ने इस अघोषित तालाबंदी के दौरान बयान दिया कि उनकी कंपनी किसी भी प्रांत में नया प्लांट खोलेगी, जिस प्रांत की सरकार उनकी शर्तों को मानेगी। खबरों के मुताबिक तमिलनाडु, गुजरात और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच होड़ लगी है कि कौन सुजुकी को मजदूरों के शोषण का सबसे अनुकूल वातावरण दे सकता है। हरियाणा के मुख्यमंत्री ने सुजुकी के जापानी मालिक से मिलकर आश्वासन दिया है कि वह जमीन तथा हर किस्म की सहुलियत प्रदान करेगा ताकि हरियाणा में वे और कारखाने खोल सकें।
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