हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 1 मई, 2020
मजदूर साथियों,
मई दिवस, 2020 के अवसर पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सभी देशों के मजदूरों को सलाम करती है, खास तौर पर उन सबको जो खुद अपनी जान को जोखिम में डालकर, वैश्विक संकट के इन हालातों में, स्वास्थ्य सेवा व अन्य आवश्यक सेवाओं को मुहैया कराने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। हम देश के डाक्टरों, नर्सों, अस्पताल कर्मचारियों, सहायक नर्सों दाईयों, आंगनवाड़ी और आशा कर्मियों व सभी स्वास्थ्य कर्मियों, रेलवे, बैंक और नगर निगम व अन्य आवश्यक सेवाओं के कर्मियों को सलाम करते हैं, जो लॉकडाउन की हालतों में लोगों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 1 मई, 2020
मजदूर साथियों,
मई दिवस, 2020 के अवसर पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सभी देशों के मजदूरों को सलाम करती है, खास तौर पर उन सबको जो खुद अपनी जान को जोखिम में डालकर, वैश्विक संकट के इन हालातों में, स्वास्थ्य सेवा व अन्य आवश्यक सेवाओं को मुहैया कराने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। हम देश के डाक्टरों, नर्सों, अस्पताल कर्मचारियों, सहायक नर्सों दाईयों, आंगनवाड़ी और आशा कर्मियों व सभी स्वास्थ्य कर्मियों, रेलवे, बैंक और नगर निगम व अन्य आवश्यक सेवाओं के कर्मियों को सलाम करते हैं, जो लॉकडाउन की हालतों में लोगों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
विश्व स्तर पर आज यह स्पष्ट हो गया है कि पूंजीवाद एक अमानवीय व्यवस्था है जिसका मक़सद है लाखों-लाखों लोगों की जानों को कुर्बान करके, मुट्ठीभर अति-अमीरों की अमीरी को बढ़ाते रहना। कोरोना वैश्विक महामारी के चलते, ज्यादातर पूंजीवादी सरकारें समाज के सभी सदस्यों की तंदुरुस्ती और खुशहाली की रक्षा करने में नाक़ामयाब साबित हुयी हैं।
कोरोना वायरस के विरुद्ध संघर्ष के शुरू होने के लगभग डेढ़ महीने बाद, हमारे देश के अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों की रक्षा के लिए पर्याप्त सामग्रियां उपलब्ध नहीं हैं। डाक्टरों और नर्सों के वायरस के शिकार हो जाने की ख़बरें हर रोज़ मिलती हैं। स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा सामग्रियों की कमी की समस्या आज भी मौजूद है। इतना ही नहीं, जो स्वास्थ्य कर्मी इन जघन्य हालतों के बारे में अपनी आवाज़ उठाते हैं, उन्हें कड़ी सज़ा की धमकी दी जा रही है।
25 मार्च को अचानक घोषित लॉकडाउन के चलते, करोड़ों-करोड़ों मज़दूर बड़ी मुसीबत में हैं। उनके पास न घर है, न पैसे और न रोज़गार। सबको आज साफ-साफ दिख रहा है कि हमारे कोरोड़ों-करोड़ों लोग जो उत्पादनकारी काम करते हैं, उनके पास न तो कोई कानूनी अधिकार हैं, न ही रोज़गार की सुरक्षा या किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा। जो प्रवासी मज़दूर अपने-अपने गांवों के लिए पैदल ही चल पड़े थे, उन्हें राज्य के बॉर्डर पर ही रोक दिया गया है। घर पहुंचने के लिए सैकड़ों-सैकड़ों किलोमीटर चलते हुए, उनमें से कई थकान और भूख की वजह से दम तोड़ चुके हैं। बहुत सारे मज़दूरों को जानवरों की भांति, राहत शिविरों में बंद रखा गया है। और अब हालिया सरकारी अधिसूचना के अनुसार, उन्हें बंधुआ मज़दूरों की तरह वहीं के वहीं काम करने को मजबूर किया जायेगा।
अधिकतम मज़दूर झुग्गी-बस्तियों में, भीड़-भाड़ की हालतों में, पानी की सप्लाई और शौच प्रबंध के बिना, जीने को मजबूर हैं। उनके लिए शारीरिक दूरी बनाये रखना, बार-बार हाथ धोना, आदि जैसी सरकार द्वारा बताई गयी सावधानियों का पालन करना असंभव है। जिनको संक्रमण हो जाता है, उनके साथ राज्य के अधिकारी अपराधी जैसे बरताव करते हैं। हजारों-हजारों ग़रीब मेहनतकश लोगों को अपने घरों से दूर, बिलकुल अलग करके, बेहद गंदी और प्रतिकूल हालतों में बंद करके रखा गया है।
सरकार ने मज़दूरों के वेतनों को सुनिश्चित करने के लिए, कोई धनराशि नहीं निर्धारित की है। प्रधानमंत्री ने पूंजीपतियों से सिर्फ विनती की है कि लॉकडाउन के चलते मज़दूरों की छंटनी न करें और उनके वेतनों में कटौती न करें। परन्तु प्रधानमंत्री के कहने से कोई फर्क नहीं पड़ा है। पूंजीपति अपने मुनाफ़ों को नुक्सान पहुंचाकर, मज़दूरों की ज़रूरतों की चिंता नहीं करने वाले हैं, जब तक उन्हें बाध्य न किया जाये। पूंजीपतियों के कई संस्थानों ने प्रधान मंत्री की इस विनती को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
किसानों की रोज़ी-रोटी के लिए यह लॉकडाउन बहुत भारी पड़ा है। चूंकि मंडियां बंद हैं, इसलिए लाखों-लाखों किसानों को अपनी फ़सल को कौड़ियों के दाम पर बेचना पड़ा है। दूध उत्पादकों को मजबूरन दूध को सड़कों पर फेंकना पड़ रहा है, क्योंकि हलवाई की दुकानें बंद हो गयी हैं।
भारतीय खाद्य निगम के भंडारों में गेहूं और चावल भरे पड़े हैं। पर करोड़ों लोग भूख से मर रहे हैं। यह कोई नयी बात नहीं है, बल्कि बहुत पुरानी समस्या है जो अब फिर खुलकर सामने आ रही है। प्रधानमंत्री “सबका साथ, सबका विकास” का वादा करते रहते हैं, परन्तु यह स्पष्ट है कि आर्थिक व्यवस्था और सरकार की नीतियां सबकी ज़रूरतें पूरी करने का काम नहीं करतीं। वे मेहनतकशों को दबाकर, पूंजीपतियों के निजी मुनाफ़ों को ज्यादा से ज्यादा बनाने का काम करती हैं।
लगभग 100 बरस पहले, जब इस देश की धरती पर पहली बार मई दिवस मनाया गया था, उस समय से मज़दूर वर्ग का रणनैतिक लक्ष्य यही रहा है कि उपनिवेशवादी राज और पूंजीवादी व्यवस्था को ख़त्म किया जाये और हर प्रकार के शोषण-दमन से मुक्त हिन्दोस्तान का निर्माण किया जाये। आज की हालतें उस महान लक्ष्य को हासिल करने का आह्वान कर रही हैं।
मज़दूर साथियों,
हिन्दोस्तानी राज्य सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है परन्तु वास्तव में यह टाटा, बिरला, अम्बानी और दूसरे इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग के अधिनायकत्व का साधन है। राज्य उनके हितों की रक्षा करता है। हरेक सरकार उनकी मांगों को पूरा करती है। यह राज्य प्रतिदिन मेहनतकशों के मौलिक अधिकारों को पांव तले रौंद देता है।
जब देशभर में लॉकडाउन की घोषणा की गयी, तो जिन करोड़ों-करोड़ों मज़दूरों की रोज़ी-रोटी चली जाने वाली थी, उनकी देखभाल करने की कोई तैयारी नहीं थी। इससे साफ जाहिर होता है कि राज्य को मेहनतकशों के बारे में कोई चिंता नहीं है। राज्य को सिर्फ हुक्मरान वर्ग और उसके हितों की रक्षा करनी की चिंता है। ठीक 2016 की नोटबंदी की तरह, सभी लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले इतने अहम फैसले को, लोगों से सलाह किये बिना और लोगों को पहले से सूचित किये बिना ही, ले लिया गया।
अगर कोई किसी बात की शिकायत करता है या सरकार के किसी क़दम की आलोचना करता है, तो उसे “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया जाता है। मज़दूरों, ट्रेड यूनियन नेताओं, छात्र नेताओं, मानव अधिकारों और जन अधिकारों के लिए लड़ रहे कार्यकर्ताओं, आदि को काले कानूनों के तहत गिरफ़्तार कर लिया जाता है। ऐसे लोगों को गिरफ़्तार करके अनिश्चितकाल तक बंद रखना, जिनका एकमात्र जुर्म यह है कि उन्होंने सरकार का विरोध करने की जुर्रत की है, यह हिन्दोस्तानी राज्य के लोकतंत्र-विरोधी चरित्र को दर्शाता है।
लोगों को उनकी धार्मिक आस्थाओं के लिए उत्पीड़ित किया जाता है। राज्य बाकी आबादी के बीच में, मुसलमानों के बारे में झूठा प्रचार करता है और नफ़रत व दहशत फैलाता है। पूंजीपतियों के धनबल से समर्थित पार्टियां राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक क़त्लेआम जैसे पैशाचिक अपराधों को अंजाम देकर भी बच निकल जाती हैं।
इन असहनीय हालतों को ख़त्म करने के लिए क्रांति की सख्त ज़रूरत है। हमें पूंजीपतियों की हुकूमत का तख्तापलट करना होगा, उसकी जगह पर मज़दूरों और किसानों का राज स्थापित करना होगा और पूंजीवाद को ख़त्म करके समाजवाद की स्थापना करनी होगी। ऐसी क्रांति ही हमारी भूमि और श्रम के इस शोषण और लूट को ख़त्म करने का एकमात्र रास्ता है। यही एकमात्र रास्ता है यह सुनिश्चित करने का, कि मेहनतकशों के श्रम से पैदा किये गए धन का इस्तेमाल हमारे जीने और काम करने की हालतों को और बेहतर बनाने के लिए किया जायेगा।
मज़दूरों और किसानों के राज्य को सभी लोगों के मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करनी होगी और धर्म, जाति व लिंग पर आधारित भेदभाव व दमन को ख़त्म करना होगा। उसे हिन्दोस्तान को साम्राज्यवादी व्यवस्था से बाहर निकालना होगा और एक आत्म-निर्भर समाजवादी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना होगा। उसे सारी दुनिया की साम्राज्यवाद-विरोधी ताक़तों के साथ मिलकर, हर प्रकार की साम्राज्यवादी लूट, वर्चस्व और जंग का लगातार विरोध करना होगा।
मज़दूर साथियों,
कोरोना संकट और करोड़ों-करोड़ों मज़दूरों की कठिन हालतों का फ़ायदा उठाकर, पूंजीपति वर्ग हमारे अधिकारों पर बड़े-बड़े हमले करने जा रहा है। पूंजीपतियों के संगठनों ने सरकार से यह प्रस्ताव किया है कि फैक्ट्रियों में काम की पाली को 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे करने की इजाज़त दी जाये। पंजाब, राजस्थान, गुजरात और उत्तराखंड समेत कई राज्यों की सरकारों ने इसके बारे में अधिसूचनाएं जारी कर दी हैं। केंद्र सरकार औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन लाना चाहती है, ताकि पूंजीपतियों को, मज़दूरों को कोई मुआवज़ा दिए बिना, फैक्ट्री या कम्पनी बंद करने की छूट दी जा सके। पूंजीपति यह भी मांग कर रहे हैं कि अगले दो सालों तक मज़दूरों को यूनियन बनाने से कानूनन रोका जाये।
इन परिस्थितियों में हमें अपने एकजुट संघर्ष को और तेज़ करना होगा। हमें बांटने और बहकाने की सारी कोशिशों का मुक़ाबला करते हुए, मज़दूर वर्ग की एकता की हिफ़ाज़त करनी होगी। हमारी समस्याओं के लिए मुसलमानों या चीन या पाकिस्तान को दोषी ठहराना इन कोशिशों का हिस्सा है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारी सारी समस्याओं की जड़ हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग की हुकूमत और इस समय उसके ख़तरनाक साम्राज्यवादी रास्ते में है। हमारा रणनैतिक राजनीतिक उद्देश्य है पूंजीपति वर्ग को सत्ता से हटाना और उसकी जगह पर मज़दूरों-किसानों की हुकूमत को स्थापित करना।
मई दिवस 2020 पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी मज़दूर वर्ग की सभी श्रेणियों से आह्वान करती है कि मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने की तैयारी करने के नज़रिए के साथ, अपने अधिकारों की हिफ़ाज़त के संघर्षों को तेज़ करें! हम सभी कम्युनिस्टों से आह्वान करते हैं कि पूंजीवाद का तख्तापलट करने और हर प्रकार के शोषण-दमन से मुक्त समाजवादी हिन्दोस्तान का निर्माण करने के कार्यक्रम के इर्द-गिर्द सभी मेहनतकश और उत्पीड़ित लोगों को एकजुट करें और इसके दौरान, हम अपनी एकता बनाएं!
मज़दूर एकता ज़िन्दाबाद!
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद!
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