कोरोना वायरस के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराना बहुत ख़तरनाक है

इसमें दो राय नहीं है कि कोरोना वायरस से उभरे संकट पर काबू पाने के लिए हिन्दोस्तान के लोगों को अधिक से अधिक ज़िम्मेदारी और एकता के साथ काम करना होगा।

करोड़ों-करोड़ों मज़दूर अपनी जान को जोखिम में डालकर बहुत मेहनत कर रहे हैं। ये हैं डाक्टर, नर्स व सारे स्वास्थ्य कर्मी, रेलवे व बैंकिंग के कर्मी, सफाई कर्मी और आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की सप्लाई करने वाले मज़दूर।

इसमें दो राय नहीं है कि कोरोना वायरस से उभरे संकट पर काबू पाने के लिए हिन्दोस्तान के लोगों को अधिक से अधिक ज़िम्मेदारी और एकता के साथ काम करना होगा।

करोड़ों-करोड़ों मज़दूर अपनी जान को जोखिम में डालकर बहुत मेहनत कर रहे हैं। ये हैं डाक्टर, नर्स व सारे स्वास्थ्य कर्मी, रेलवे व बैंकिंग के कर्मी, सफाई कर्मी और आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की सप्लाई करने वाले मज़दूर।

लॉक डाउन के चलते देशभर में, करोड़ों-करोड़ों दिहाड़ी मज़दूरों की रोज़ी-रोटी ख़त्म हो गयी है। उन्हें दिन में दो वक्त का खाना नहीं मिल रहा है, झुलसती धूप में उनके सर पर छत नहीं है। केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और तमाम जन संगठन उनकी ज़रूरतों को पूरा करने की अपनी-अपनी कोशिशों में लगे हैं।

यह स्पष्ट है कि इन हालतों में लोगों को मिलजुलकर और आपस में भरोसा रखते हुए काम करना होगा। परन्तु यह बड़ी चिंता की बात है कि इन्हीं दिनों में, एक बहुत ही जहरीला अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें कोरोना वायरस को फैलाने में मुसलमानों को दोषी बताया जा रहा है। इसकी वजह से, देशभर में मुसलमानों को पुलिस द्वारा उत्पीड़न, सामाजिक बहिष्कार और शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ रहा है।

दिल्ली के निजामुद्दीन में एक मुसलमान धार्मिक पंथ द्वारा 13-15 मार्च के बीच आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सभा को आधार बनाकर, पूरे देश में यह प्रचार किया जा रहा है कि मुसलमान जानबूझकर वायरस को फैला रहे है। उस समय उस सभा को आयोजित करना अवश्य ही बहुत बड़ी गलती थी। सरकार को उसकी इजाज़त नहीं देनी चाहिए थी। परन्तु उस सभा में हिस्सा लेने वाले लोगों के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव करना ठीक नहीं है। सरकार को सभी धर्मों के लोगों को इस समय जनसभा न करने की ज़रूरत के बारे में समझाना होगा।

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के प्रवक्ता जब दिल्ली में कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में रिपोर्ट दे रहे थे, तो बार-बार “मर्कज़ मस्जिद” के मामलों की संख्याओं पर ज़ोर देते रहे। यह स्वाभाविक है कि जब खास तौर पर मुसलमानों को चुन-चुनकर परखा जा रहा था तो पॉजिटिव पाए जाने वालों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा होगी। इस बात को बढ़ा-चढ़ाकर एक झूठी धारणा फैलाई गयी कि देशभर में कोरोना वायरस के फैलने की मुख्य वजह दिल्ली की वह एक धार्मिक सभा थी।

इसी के साथ-साथ, टी.वी. और सोशल मीडिया पर मुसलमानों को निशाना बनाकर नफ़रत-भरे प्रचार फैलाये जाने लगे, जिसमें यह दिखाने की कोशिश की जा रही थी कि मुसलमान लोग कोरोना वायरस संक्रमण को फैलाने की सोची-समझी साजिश कर रहे हैं। ढेर सारे फर्जी विडियो फैलाये गए जिनमें दिखाया जा रहा था कि मुसलमान खाना पर थूक रहे हैं या दूसरे लोगों के मुंह पर खांस रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे भी विडियो फैलाये गए कि मुसलमान संक्रमण के लिए परखे जाने से इंकार कर रहे हैं या फिर लॉक डाउन के दौरान मस्जिद में इबादत के लिए जमा हो रहे हैं। बाद में पता चला कि ये सारे विडियो फर्ज़ी थे।

इस नफ़रत-भरे प्रचार के चलते, मुसलमानों पर हमलों की खबरें आने लगीं। कर्नाटक और कुछ अन्य राज्यों में मुसलमानों को वायरस को फैलाने के लिए दोषी बताकर, पीटा और बेइज्ज़त किया गया। कई मस्जिदें तोड़ी गईं। अरुणाचल प्रदेश में मुसलमान ट्रक चालकों को पीटा गया। दिल्ली और अन्य जगहों पर मुसलमान सब्जी बेचने वालों पर हमले किये गए हैं। मुसलमानों की दुकानों का बहिष्कार करने के फोन कॉल और व्हाट्स एप्प मेसेज फैलाये जा रहे हैं। कई राज्यों में पोस्टर लग गए हैं कि मुसलमानों को गांव के अन्दर घुसने मत दो। पंजाब के होशियारपुर में मुसलमान दूध बेचने वालों को पीटा गया और सारा दूध नदी में गिरा दिया गया। राजस्थान के गांवों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, जहां वे कई पीढ़ियों से दूसरे धर्म के लोगों के साथ मिलजुल कर रहते आये हैं।

दिल्ली अल्प संख्यक आयोग (दिल्ली मायनोरिटीज कमीशन) के अध्यक्ष को दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के सचिव को मजबूरन एक पत्र लिखना पड़ा, यह गुजारिश करते हुए कि हर रोज़ दी जा रही कोरोना सूचना बुलेटिनों में किसी “मजहब पर इशारा” न किया जाये। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि इस प्रकार के इशारों की वजह से देशभर में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं।

देशभर में बहुत से लोगों ने इस मुसलमान-विरोधी अभियान के खिलाफ़ आवाज़ उठाई है। जनता के इस विरोध को देखते हुए, कुछ राज्यों के मुख्य मंत्रियों और कुछ राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने बयान दिए हैं कि कोरोना वायरस को रोकने की लड़ाई को सांप्रदायिक रंग नहीं देना चाहिए। परन्तु अभी भी कई टी.वी. चैनलों पर यही झूठा प्रचार चल रहा है कि कोरोना वायरस का प्रसार देश और विदेश के मुसलमानों की सोची-समझी साज़िश है। इस नफ़रत-भरे प्रचार को रोकने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया जा रहा है।

मुसलमानों को दोषी बताकर उन पर हमला करने से हिन्दोस्तानी लोगों का एकजुट संघर्ष आगे नहीं बढ़ पायेगा। बल्कि, इससे लोगों की एकता कमजोर हो जायेगी और कोरोना वायरस के इस चलते संकट पर काबू पाने की हमारी क्षमता को बहुत हानि पहुंचेगी।

लोगों को अपनी-अपनी धार्मिक आस्थाओं को एक तरफ करके, एकजुट होना होगा और मुसलमानों के खि़लाफ़ सांप्रदायिक प्रचार व नफ़रत-भरे हमलों की कड़ी निंदा करनी होगी। हमें मांग करनी होगी कि इस झूठे प्रचार और इन हमलों के गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाये।

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