विश्व में पेट्रोलियम के भाव में भारी गिरावट आयी है। 30 मार्च, 2020 को ब्रेन्ट कच्चे तेल का भाव 20 डॉलर प्रति बैरल से भी कम था। 1991 के बाद पिछले 19 वर्षों में यह सबसे कम भाव है। फरवरी 2020 में भाव 56 डॉलर प्रति बैरल था।
कच्चे तेल के निर्यातक देशों की मार्च 2020 में हुई मीटिंग में दो बड़े तेल निर्यातक देशों, सऊदी अरब और रूस के बीच में करार के टूटने के कारण यह हुआ है। परन्तु एक तीसरा देश, अमरीका, खुलकर सामने आये इस तनाव के केंद्र बिंदु में है।
सऊदी अरब तेल निर्यातक देशों की विश्व में सबसे शक्तिशाली कार्टेल का नेतृत्व करता है जिसे ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज या ओ.पी.ई.सी. के नाम से जाना जाता है। यू.ए.ई., ईरान, इराक, कुवैत, लिबिया, नाइजीरिया, वेनेजुएला, अल्जीरिया, अंगोला, कौंगो, ईक्येटोरियल गिनी और गेबन इसके अन्य सदस्य हैं। सऊदी अरब के बाद विश्व के दूसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक, रूस ने 2016 में कुछ अन्य तेल निर्यातक देशों का एक समूह बनाया। इसमें अजरबेजान, बाहरीन, बोलीविया, कजाखस्तान और मैक्सिको शामिल हैं।
दिसम्बर 2016 से सऊदी अरब और रूस ने अपने-अपने समूहों द्वारा उत्पादित कच्चा तेल की मात्राओं पर आपस में समझौता किया, ताकि तेल की कीमतें उतनी ऊंची बनी रहें जिनसे दोनों को फायदा हो। लेकिन इस दौरान अमरीका सस्ते भाव में अपने शेल तेल को विश्व बाज़ार में ज्यादा से ज्यादा मात्रा में बेचता रहा है, जिससे उसका बाज़ार अंश, जो नवम्बर 2016 में 11 प्रतिशत से भी कम था, अब उस से बढ़ कर नवम्बर 2019 में 15 प्रतिशत हो गया है। दूसरी तरफ, इस दौरान सऊदी अरब और रूस का बाज़ार अंश 12-13 प्रतिशत ही रहा है। (विश्व तेल बाजार में घटता अंश – ग्राफ देखिए)
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विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और सैनिक शक्ति होने के नाते, अमरीका सिर्फ “मुक्त बाजार” प्रक्रिया पर ही निर्भर नहीं रहा है। ईरान और वेनेजुएला जैसे बड़े तेल उत्पादकों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों का जाल बिछा कर और हिन्दोस्तान और जापान जैसे कच्चे तेल आयातकों पर दवाब डाल कर, उसने विभिन्न देशों को अमरीका से तेल खरीदने पर मजबूर किया है। हिन्दोस्तान द्वारा अमरीका से खरीदे गए तेल की कीमत जब कि 2018 में 360 करोड़ डॉलर थी, तो अब यह उस से बढ़ कर इस वर्ष 1000 लाख डॉलर तक पहुँच गई है।
ओपीईसी देशों और रूस के तेल मंत्रियों की मार्च की मीटिंग में सऊदी और रूस के बीच के भूतपूर्व करार के टूटने का यही कारण था। कोरोना वायरस संकट के चीन और विश्व अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के कारण तेल की खपत में हुई गिरावट की दलील देकर, सऊदी अरब ने तेल उत्पादन में फिर से बड़ी कटौती करने का प्रस्ताव रखा। उसने प्रस्ताव किया कि ओपीईसी 1 अप्रैल, 2020 से अपना उत्पादन 10 लाख बैरल प्रतिदिन घटाएगा, यदि रूस की अगुवाई वाला समूह अपना उत्पादन 5 लाख बैरल प्रतिदिन घटाने को तैयार हो जाये। रूस ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
इसके पश्चात, सऊदी अरब और रूस ने एक तेल युद्ध छेड़ दिया है और दोनों देश सबसे ज्यादा बाजार अंश पर कब्जा करने के लिए अपना-अपना तेल उत्पादन बढ़ा रहे है। सऊदी अरब ने मार्च में 100 लाख बैरल प्रति दिन उत्पादन को अप्रैल से 20 लाख बैरल प्रति दिन बढ़ाने की घोषणा की है। रूस ने भी घोषण की है वह तेल उत्पादन बढ़ाएगा। इससे विश्व बाजार में तेल की भरमार है, जबकि कोरोना वायरस महामारी की वजह से और ज्यादा तेजी से गहराती हुयी आर्थिक मंदी के चलते, तेल की खपत बहुत ही कम हो गयी है। आने वाले महिनों में कच्चे तेल के भाव के और भी गिरने की आशंका है।
बाजार अंश पर लड़ाई
2017 से सऊदी अरब और रूस के नेतृत्व में तेल निर्यातक देशों के दोनों समूहों ने मिल कर तय किया है कि बाजार में कितनी तेल की सप्लाई करनी है। जनवरी 2017 में उनहोंने 16 लाख बैरल प्रति दिन से तेल की सप्लाई घटा दी। अप्रैल 2018 में उनहोंने सप्लाई बढ़ा दी। जनवरी 2019 में सप्लाई 12 लाख बैरल प्रति दिन घटा दी। जनवरी 2020 में सप्लाई 20 लाख बैरल प्रति दिन और घटा दी। (ओपीईसी के तेल उत्पादन और आपूर्ति में समन्वय – ग्राफ देखिए) अब जब कुल बाजार सिकुड़ गया है तो ये दो अगुवा तेल निर्यातक देश एक दूसरे के बाजार अंश को हड़पने के लिए घमासान भाव युद्ध में लगे हुए हैं।
रूस ने साफ कह दिया है कि उत्पादन में और कटौती उसे मंजूर नहीं है, क्योंकि उसे यह चिंता है कि ऐसा करने पर अमरीका बाज़ार में पैदा हुए रिक्त स्थान को फटाफट हड़प लेगा, जैसा कि वह पिछले दस वर्ष से, वहां शेल तेल के पाए जाने के बाद से, करता आया है। दिसम्बर 2015 में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तेल निर्यात पर 40 वर्ष पुराने प्रतिबन्ध को हटा दिया था। 2018 में अमरीकी शेल तेल का उत्पादन दोनों सऊदी अरब और रूस के उत्पादन से ज्यादा था।
अमरीका का कुल तेल उत्पादन 2011 में 57 लाख बैरल प्रति दिन से बढ़ कर 2018 में 179.4 लाख बैरल प्रति दिन हो गया। 2020 के अंत तक अमरीका तेल का कुल निर्यातक बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगा।
तेल के गिरते भाव से रूस और सऊदी अरब की अर्थ व्यवस्थाओं को हानि पहुंचेंगी। रूस का बजट तेल की कम से कम 42.5 डॉलर प्रति बैरल भाव मान कर बनाया जाता है। सऊदी अरब का बजट कम से कम 85 डॉलर प्रति बैरल भाव मान कर बनाया जाता है। साथ ही साथ, तेल के गिरते भाव की वजह से, अमरीका के अनेक छोटे शेल तेल उत्पादक अपने को दिवालिया घोषित करने पर मजबूर हो जायेंगे। अमरीकी शेल तेल उत्पादकों को खर्च और मुनाफे में संतुलन बनाये रखने के लिए, 46 डॉलर प्रति बैरल भाव चाहिए। विश्व तेल बाजार में अब अमरीका के बाजार अंश के बहुत घट जाने की सम्भावना है।
आर्थिक संकट के हालातों में जब विश्व तेल बाजार सिकुड़ता जा रहा है, तो सबसे बड़े तेल निर्यातक देशों के बीच अपने बाजार अंश को बरकरार रखने और उसे बढ़ाने के लिए यह घमासान लड़ाई चल रही है।