प्रिय संपादक,
मज़दूर एकता लहर के 1-15 फरवरी के अंक में “मज़दूरों और किसानों की हुकूमत ही सभी को सुख और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है” लेख छापने के लिये मैं आपको बधाई देता हूं। इस विस्तारपूर्वक लेख में आपने इजारेदार पूंजीपति शासक वर्ग की पार्टियों द्वारा गुमराह करने वाले नारों का पर्दाफाश किया है और पाठकों को अच्छे से समझाया है कि सच्चाई में, मेहनतकशों की भलाई तभी हो सकती है जब राज्य सत्ता मज़दूरों और किसानों के हाथों में आये।
हिन्दोस्तानी शासक वर्ग की पार्टियां उन नारों को उछालती हैं जो लोग सुनना चाहते हैं परन्तु असली में वे वह काम करती हैं, जो बड़े इजारेदार पूंजीपति चाहते हैं। लोग चाहते हैं कि सबका विकास हो। परन्तु जैसा कि लेख में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मज़दूरों व किसानों द्वारा निर्मित अतिरिक्त मूल्य का सबसे बड़ा हिस्सा बड़े इजारेदार पूंजीपति हड़प लेते हैं। 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में विभिन्न आंकड़ों के संकलन के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष भी आपके विश्लेषण की पुष्टि करते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिन्दोस्तान के अरबपतियों की संपत्ति दस वर्षों में दस गुना बढ़ गयी है। इनकी संपत्ति अब पूरे देश में निर्मित मूल्य (सकल घरेलू उत्पाद) का एक छठा हिस्सा बन गयी है जबकि सिर्फ पांच साल पहले यह सकल घरेलू उत्पाद का एक दसवां हिस्सा थी। यानी कि न केवल सकल घरेलू उत्पाद बढ़ा है बल्कि बढ़े हुए सकल घरेलू उत्पाद में उनका हिस्सा और भी तेज़ी से बढ़ा है। यह अनुमान लगाया गया है कि अगर एक आम आदमी को इन अरबपतियों के बराबर संपत्ति कमानी हो तो 18 लाख 65 हजार साल की कमाई जमा करनी पड़ेगी।
इसी तरह 2017 के क्रेडिट स्विस के आंकड़ों के मुताबिक सबसे अमीर 10 प्रतिशत इजारेदार पूंजीपति घरानों के पास 2002 में देश की कुल संपत्ति का करीब आधा हिस्सा था जो 2012 में बढ़ कर 62 प्रतिशत हो गया। सबसे अमीर 1 प्रतिशत बड़े इजारेदार पूजीवादी घरानों के लिये इस दौरान यह आंकड़ा एक छठवें हिस्से से बढ़ कर चौथाई हो गया। यह दिखाता है कि न केवल भाजपा के शासन में बल्कि कांग्रेस पार्टी के शासन में भी मेहनतकश लोगों का शोषण तेज़ी से बढ़ा है।
लेख में सही बताया गया है कि अमीरी और ग़रीबी की खाई का ज्यादा गहरे होने का कारण, सामाजिक तौर से होने वाले उत्पादन के साधनों की मालिकी इजारेदार पूंजीपतियों के हाथ में होना है। अगर हम सच में चाहते हैं कि सब का विकास हो तो यह ज़रूरी हो जाता है कि इनकी मालिकी मेहनतकशों के हाथ में हो। लेख में स्पष्टता से कहा गया है कि इसके लिये पूंजीपतियों को राज्य सत्ता से हटाकर मज़दूरों और किसानों का राज स्थापित करना होगा।
आपका पाठक
कृष्ण कुमार, अमरावती