10 जनवरी को, असम पुलिस ने 80 वर्ष केएक सम्मानित कवि व लेखक हिरेन गोहैन, आर.टी.आई. किसान कार्यकर्ता अखिल गोगोई और एक वरिष्ठ पत्रकार मंजीत महंता पर राजद्रोह का इलज़ाम लगाया है। ये तीनों ‘नागरिक समाज’ नामक संस्था के सदस्य हैं और इस संस्था के एक कार्यक्रम में उन्होंने नागरिकता (संशोधन) विधेयक के ख़िलाफ़ अपने विचार रखे थे, जिसके लिए उन पर यह मामला दर्ज किया गया।
14 जनवरी, 2019 को, दिल्ली पुलिस ने जे.एन.यू. के विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल किये, जिसमें उन्होंने 10 विद्यार्थियों के नाम भी दिए। संसद पर हमले में दोषी ठहराये गए अफ़ज़ल गुरु की फांसी के ख़िलाफ़ 9 फरवरी, 2016 में जे.एन.यू. में आयोजित कार्यक्रम के ख़िलाफ़ पुलिस ने इस 1,200 पन्नों के आरोप पत्र को पटियाला हाउस अदालत में पेश किया। कार्यक्रम के तुरंत बाद, पुलिस ने तीन विद्यार्थियों को गिरफ़्तार किया था। हफ्तों जेल में रहने के बाद अदालत ने उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया। अब तक़रीबन 3 साल बाद, पुलिस ने यह आरोप पत्र पेश किया है।
इन सभी कार्यकर्ताओं को ”राज्य के खि़लाफ़ जंग“ के आरोप पर उम्रकैद की सज़ा हो सकती है। राज्य के अनुसार उनके द्वारा लगाये गये नारों की वजह से राज्य के खि़लाफ़ हिंसा भड़क सकती थी। लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि उनका ’गुनाह’ सिर्फ यह था की उन्होंने सरकार की किसी नीति या कार्रवाई के ख़िलाफ़ अपनी असहमति व्यक्त की थी। जे.एन.यू. के मामले में 9 फरवरी, 2013 को अफ़ज़ल गुरु की फांसी के ख़िलाफ़ विद्यार्थी अपनी असहमति प्रदर्शित करना चाहते थे। असम में हाल के मामले में, नागरिक समाज नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे।
इन व्यक्तियों को राजद्रोही ठहराना सरासर नाइंसाफी है क्योंकि ये उनके ज़मीर के अधिकार के ख़िलाफ़ है। लाखों हिन्दोस्तानी अफ़ज़ल गुरु की फांसी के ख़िलाफ़ थे और असम व पूरे उत्तर पूर्व के लाखों नागरिक 8 जनवरी को लोक सभा में पारित किये गए नागरिकता कानून संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं। क्या नागरिकता कानून पर या किसी को फांसी की सज़ा के बारे में असहमति व्यक्त करना गुनाह है?
जिन लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है, उनके खि़लाफ़ कीचड़ उछालने और झूठ फैलाने का राज्य का मकसद है जन समुदाय को अपने ग़लत काम के समर्थन में लामबंध करना। जे.एन.यू. के मामले में इन विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ लोगों का गुस्सा भड़काने के लिए एक वीडियो का इस्तेमाल किया गया था। इस वीडियो में हिन्दोस्तान के विघटन के लिए बुलावा देने वाली आवाज़ों को इन विद्यार्थियों के कार्यक्रम के वीडियो के साथ जोड़ा गया था।
इसलिए नागरिक समाज के सदस्यों और जे.एन.यू. के विद्यार्थियों के ख़िलाफ़ राजद्रोह के इन आरोपों के विरोध में लोगों के प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। हिन्दोस्तान के अधिकतर लोगों को यह साफ़ दिख रहा है कि हिन्दोस्तानी राज्य एक बस्तीवादी कानून का इस्तेमाल कर रहा है ताकि लोग अपने हालातों के ख़िलाफ़ आवाज़ न उठाएं।
जो भी हिन्दोस्तानी बस्तीवादी शासन को चुनौती देता था उसे दबाने के लिए बस्तीवादी शासकों ने इस कानून का इस्तेमाल किया था। परन्तु हिन्दोस्तानी राज्य हिन्दोस्तानी लोगों के खि़लाफ़ ऐसे कानून क्यों इस्तेमाल करता है? जिन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है वे तो सिर्फ हिन्दोस्तानी समाज के सामने समस्याओं के समाधान पर अपना मत प्रकट कर रहे थे जो सरकार के विचारों से अलग थे। राज्य द्वारा इस कानून को अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना दिखाता है कि राज्य हिन्दोस्तानी लोगों को ही अपना दुश्मन मानता है।
राज्य द्वारा राजद्रोह कानून का इस्तेमाल बिल्कुल नाजायज़ है। यह दिखाता है कि हिन्दोस्तानी राज्य की सत्ता जन–सत्ता नहीं है और जनता के हितों के लिए नहीं है। बल्कि, हिन्दोस्तानी राज्य लोगों की बेरहम और अमानवीय स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है। इन बेरहम परिस्थितियों की वजह से, हिन्दोस्तान के ज़्यादातर लोग इस राज्य और पूरी व्यवस्था से गुस्से में हैं। ये सरासर अन्याय है कि उन लोगों को जेल में भेजा जाता जो समाज के लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि जिन्होंने लोगों का कत्लेआम या सांप्रादियक हिंसा आयोजित की, उन्हें खुलकर घूमने की इजाज़त है।
इन कार्यकर्ताओं को राजद्रोही बताकर हिन्दोस्तानी राज्य अपनी नीतियों और कार्यवाइयों का विरोध करने वालों को देश के हित के खि़लाफ़ दिखाने की कोशिश कर रहा है। राज्य उन पर राष्ट्र–विरोधी होने का आरोप लगा रहा है। वास्तव में सरकार ही लोगों की एकता और भाईचारे की दुश्मन है जो जानबूझकर लोगों में द्वेष फैलाती है और उनको भड़काती है।
ज़मीर का अधिकार – उन विचारों को रखने या व्यक्त करने का अधिकार है जो जातिवादी, फासीवादी, सांप्रदायिक या किसी तरीके से मानव मर्यादा को कम नहीं करते हैं – यह अनुल्लंघनीय अधिकार है। अपने ज़मीर के अधिकार को इस्तेमाल करने के लिए किसी का उत्पीड़न करना बिल्कुल नाजायज़ है और इसका पूरी तरह से विरोध और निंदा करनी चाहिए।
लोग बड़े पैमाने पर भारतीय दंड संहिता से राजद्रोह कानून को हटाने की मांग कर रहे हैं। बढ़ती संख्या में लोग राजद्रोह के आरोप के पीछे असली मकसद को समझ रहे हैं। यह संघर्ष एक ऐसे नये हिन्दोस्तानी गणराज्य की स्थापना करने के संघर्ष का हिस्सा है, जिसमें ज़मीर के अधिकार समेत सभी मानव अधिकार सुनिश्चित होंगे।