बांग्लादेश में करीब 50,000 वस्त्र मज़दूर लगातार दो सप्ताह हड़ताल पर थे। अपना विरोध व्यक्त करने के लिये, अपना काम बंद करके वे फैक्टरी से बाहर निकल गये थे। उन्हें पुलिस का सामना करना पड़ा परन्तु उन्होंने अपनी हड़ताल वापस नहीं ली। पुलिस ने बड़ी संख्या में इकट्ठे हुये लोगों को, जिन्होंने राजधानी ढाका के करीब एक वस्त्र उत्पादन केन्द्र के पास महामार्ग का चक्का जाम कर दिया था, उन्हें तितर–बितर करने के लिये पुलिस ने वाॅटर केनन और अश्रु गैस का सहारा लिया। हड़ताल के कारण हजारों फैक्टरियों को बंद करना पड़ा।
बांग्लादेश के लगभग 40 लाख वस्त्र मज़दूर दुनिया के सबसे बड़े ब्रांडों के लिये, सबसे कम कीमत में वस्त्र बनाते हैं। उनको जो न्यूनतम वेतन मिलता है वह जीवन–यापन करने योग्य वेतन का मात्र 9 प्रतिशत है। मौजूदा मासिक न्यूनतम वेतन 5,300 टका यानी कि करीब 65 अमरीकी डाॅलर है जो 1 जनवरी, 2014 से लागू है। 16 जनवरी को वस्त्र उत्पादन फैक्टरी के मालिकों ने मज़दूरों के मासिक न्यूनतम वेतन को बढ़ाकर 6,360 टका करने का प्रस्ताव दिया जो कि मज़दूरों द्वारा मांगे गये 16,000 टका वेतन का 40 प्रतिशत भी नहीं है। मज़दूरों ने मालिकों द्वारा प्रस्तावित मासिक न्यूतम वेतन को नकार दिया।
इस उद्योग में सुरक्षा का रिकार्ड बहुत ही ख़राब है। 2013 में राना प्लाज़ा गारमेंट फैक्टरी की इमारत एकाएक गिर गई, जो दुनिया की सबसे बुरी दुर्घटनाओं में से एक थी, उसमें 1,130 लोग मारे गये थे। वस्त्र उत्पादन की फैक्टरियों में मज़दूरों को बहुत ही बुरी परिस्थितियों और बहुत कम वेतन पर काम करना पड़ता है। उनसे बुरे वातावरण में जबरदस्ती ओवरटाइम कराया जाता है। 85 प्रतिशत से भी अधिक मज़दूर महिलाएं हैं जिन्हें न तो ज़रूरी सुविधाएं प्राप्त होेती हैं और न ही प्रसूति अवकाश व सुविधाओं के कानूनों का पालन होता हैं। बांग्लादेश गारमेंट मेनुफैक्चरर्स एण्ड एक्सपोर्ट एसोसियेशन (बी.जी.एम.ई.ए.) फैक्टरी मालिकों का संगठन है जिसके सदस्य शासक वर्ग के हिस्से हैं और उन्हें सभी सुरक्षा मानकों का उल्लंघन करने की सरकार से पूरी छूट है।
पिछली बार वेतन में बढ़ोतरी की मांग को लेकर प्रमुख आंदोलन 2016 में हुआ था जिसमें राज्य ने बहुत ही दमनकारी कार्यवाइयां की थीं। प्रदर्शनों में भाग लेने के लिये 1,500 मज़दूरों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी। मालिकों द्वारा मज़दूरों के बीच फूट डालने की कोशिशों के बावजूद वर्तमान में मज़दूरों में बहुत एकता है। ट्रेड यूनियनों ने सरकारी अधिकारियों से न्यूनतम वेतन की मांग पर बातचीत करने की योजना तो बनाई है, परन्तु अगर बातचीत सफल नहीं होती, तो वे और गंभीर कार्यवाइयां करने के लिये भी तैयार हैं।