दक्षिण तमिलनाडु के किसान अपनी ज़मीन और जल संसाधनों की रक्षा के लिये, मुनाफ़ों के लालची उद्योगपतियों से, लगातार संघर्ष करते आये हैं। ये किसान बार–बार आ रही बाढ़, सूखा और तूफ़ान का शिकार बनते रहे है। जैसे कि ये मुसीबतें काफी नहीं थी, कि सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा संयंत्रों के पूंजीपति मालिक और सार्वजनिक क्षेत्र की तेल और गैस कंपनियां उन पर और अधिक मुसीबतें तथा परेशानियां लाद रहे हैं।
पूरे देश में तमिलनाडु सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के मामले में दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। तमिलनाडु में पूंजीवाद के तेज़ विकास और पूंजीवादी इजारेदार कंपनियों के बीच ज़मीन और जल संसाधनों के लिए बढ़ती होड़ के चलते प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इस इलाके के किसानों को भयंकर मुसीबतों का सामना करना पड़ा है।
पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा की मांग कई गुना बढ़ गयी है। ऊर्जा के पुराने संयंत्रों को चलाना बेहद अप्रभावी और महंगा हो गया है। ऊर्जा के क्षेत्र में बदलती प्राथमिकताओं के चलते विभिन्न पूंजीवादी कंपनियों के बीच ज़मीन और जल संसाधनों पर कब्ज़ा करने की बेलगाम होड़ शुरू हो गयी है।
किसी भी कीमत पर अपना विकास करना निजी और सार्वजनिक क्षेत्र, दोनों ही तरह की कंपनियों के बीच होड़ लगी हुई है। बड़े ऊर्जा संयंत्र, बड़ी औद्योगिक परियोजना और बेलगाम विकास इसका कोई विकल्प नहीं, इस बात को किसी असूल की तरह पेश किया जा रहा है।
इन सभी हालतों का मेहनतकश लोगों की रोज़ी–रोटी पर विनाशकारी परिणाम हो रहा है। औद्योगिक इजारेदारों और राज्य की मालिकी की औद्योगिक विकास कारपोरेशन दोनों ने ही बड़े पैमाने पर जबरदस्ती से ज़मीन को अपने कब्ज़े में कर लिया है और वहां पर बसने वाले परिवारों को विस्थापित और बेघर कर दिया है। जो गांव बिजली संयंत्रों के रास्ते में आ रहे थे उनको हटा दिया गया है। इन संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण से सैकड़ों हजारों लोग मारे गए या विकलांग हो गए हैं। सूखे की कोई परवाह किये बगैर इन कंपनियों ने कई नदियों की दिशा को बदल दिया है और भूजल का शोषण किया है।
इजारेदार कंपनियों द्वारा नदी, नाले और तालाब के पानी के गैर–ज़िम्मेदाराना शोषण और प्रदूषण के चलते तमिलनाडु को एक जल–विहीन भविष्य की ओर धकेल दिया गया है। केंद्रीय भूजल संसाधन बोर्ड के अनुसार तमिलनाडु में 60 प्रतिशत भू–जल संसाधनों का अति–शोषण किया गया है और अब वे बेहद गंभीर या अर्ध–गंभीर स्थिति में आ गए हैं।
इन हालातों के चलते दक्षिण तमिलनाडु के रामानाथापुरम और तुतूकुड़ी जिलों के गांवों में बसने वाले लोग यह मांग उठाते आये हंै कि विकास और लोगों की सुख और सुरक्षा के बीच सामंजस्य ज़रूरी है और विकास के लिए लोगों की सुख और सुरक्षा को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।
जून 2017 को रामानाथापुरम जिले के लोगों ने एक सौर ऊर्जा संयंत्र के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने कंपनी पर आरोप लगाया है कि 2,50,000 सौर ऊर्जा अनुखंडों को साफ़ करने के लिए कंपनी रोज़ 2,00,000 लीटर पानी गैर–कानूनी तरीके से बोर–वेल के माध्यम से निकाल रही है।
लोगों ने आरोप लगाया है कि एक निजी वायु ऊर्जा कंपनी ने तुतूकुड़ी जिले के ओट्टापिदारम में एक स्थान पर रास्ता बनाकर पानी के प्रवाह को रोक दिया है, जिससे आस–पास के गांवों के लोगों के लिए बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
तुतूकुड़ी जिले में ओट्टापिदारम और उसके आप–पास के गांवों के लोग उस जगह पर वायु ऊर्जा संयंत्र बनाये जाने का विरोध कर रहे हंै क्योंकि इससे पेरियाकुलम नहर के पानी को रोक दिया गया है, जो कि आस–पास के गांवों के लिए खेतों की सिंचाई का प्रमुख स्रोत है। थामिगा विवासियगल संगम इस संघर्ष को अगुवाई दे रहा है।
मुनाफ़ों को सबसे आगे रखते हुए विकसित किये जा रहे ऊर्जा क्षेत्र की वजह से पर्यावरण के संतुलन को बहुत भारी नुकसान हुआ है। नवंबर 2015 में तुतूकुड़ी शहर में बाढ़ आ गयी जबकि उस साल केवल साधारण बारिश हुई थी। इसकी वजह थी कयाथर और ओट्टापिदारम तालुका में भारी बारिश। वैसे तो भारी बारिश का पानी ओट्टापिदारम तालुका के जलाशयों में जाकर जमा होना चाहिए था, लेकिन वायु संयंत्र कंपनियों द्वारा पानी के बहाव के रास्ते में रुकावट पैदा करने की वजह से पानी तुतूकुड़ी शहर में घुस गया और वहां बाढ़ आ गयी।
इन परियोजनाओं का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि राजस्व अधिकारियों ने पुलिस को आदेश दिए हैं कि वे विरोध प्रदर्शन को कामयाब न होने दें और इसके लिए यह तर्क दिया जा रहा है कि वायु उर्जा कंपनियों ने ओट्टापिदारम ब्लॅाक डेवलपमेंट ऑफिसर के खाते में 2 करोड़ रुपये कॉर्पस फंड के तौर पर जमा किये हैं ।
तमिलनाडु राज्य के इन इलाकों के किसानों और लोगों का यह संघर्ष एक बार फिर यह दिखाता है कि हमारे देश का आर्थिक ‘विकास’ केवल पूंजीपतियों के लिए अधिकतम मुनाफ़े सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है और इन सभी परियोजनाओं से लोगों की ज़िंदगी और पर्यावरण पर क्या असर होगा सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है।