दक्षिण एशिया में शांति के लिए संघर्ष करें! अमरीकी साम्राज्यवाद को इस इलाके से खदेड़ें!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 11 जनवरी, 2009

अधिक से अधिक लोग अब समझने लगे हैं कि दक्षिण एशिया इलाके में शांति गंभीर खतरे में है और यह खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह क्या है?

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 11 जनवरी, 2009

अधिक से अधिक लोग अब समझने लगे हैं कि दक्षिण एशिया इलाके में शांति गंभीर खतरे में है और यह खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह क्या है?

जंग की उत्तेजना पैदा करने के लिये हिन्दोस्तान पाकिस्तान पर इल्ज़ाम लगाता है और पाकिस्तान हिन्दोस्तान पर। इस बीच, अमरीका खुद को आपस में लड़ रहे, इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच 'नि:स्वार्थी दलाल' के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।

मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद नये चुने गये राष्ट्रपति ओबामा सहित अनेक अमरीकी नेताओं ने बयान दिये कि वे समझते हैं कि हिन्दोस्तान को सैनिक हमले का रास्ता अपनाने को मजबूर होना पड़ सकता है। यह पाकिस्तान के खिलाफ़ जंगफरोशी प्रेरित करने वाला बयान था। पर साथ ही साथ, अमरीकी सरकार के प्रवक्ता औपचारिक तौर पर यह कह रहे हैं कि वे इन दोनों परमाणु शक्ति युक्त पड़ोसी देशों को आपसी जंग से रोकने के प्रयास कर रहे हैं।

इन सब गतिविधियों को सही माइने में समझने के लिये यह जरूरी है कि हमारे मजदूर और सभी शांति पसंद लोग यह समझें कि इस समय खास तौर पर अमरीका तथा विभिन्न दूसरी साम्राज्यवादी ताकतें किस तरह अपने प्रसारवादी मंसूबों को बढ़ावा दे रही हैं। हालांकि ये सारी ताकतें यही दिखावा करती हैं कि दुनिया को अराजकता और आतंकवाद से बचाना उनका उद्देश्य है, परंतु उनका असली उद्देश्य है अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों को स्थापित करना व विस्तृत करना। उनका उद्देष्य है बाजार पर हावी होना, कच्चे माल के स्रोतों व आपूर्ति के मार्गों पर हावी होना तथा अपनी हुक्मशाही के खिलाफ़ जन प्रतिरोध को कुचलना।

अमरीका ने सारी दुनिया के लिये कानून बनाने का ''अधिकार'' खुद को सौंप दिया है। वह इस या उस देश को ''दुष्ट राज्य'' या ''असफल राज्य'' घोषित कर देता है और उस आधार पर हमलावर व कब्जाकारी जंग छेड़ता है। वह सारी दुनिया पर अपना रौब जमाने के लिये ऐसा कर रहा है।

पश्चिम और मध्य एशिया के तेल संपन्न इलाकों पर अपना प्रभाव क्षेत्र स्थापित व विस्तृत करने तथा विदेशी दबदबे के खिलाफ़ इस इलाके के लोगों व राष्ट्रों के प्रतिरोध को तोड़ने के इरादे से, अमरीका ने कई बार जंग छेड़े हैं। जब अमरीका के टट्टू ईरान के शाह को जन क्रांति के द्वारा गिराया गया था, तब अमरीका ने इराक को ईरान पर हमला करने को उकसाया था। दोनों इराक और ईरान को कमजोर करने के लिये अमरीका ने जानबूझकर उस जंग को लंबा खींचा था। 90 के दशक में अमरीका ने इराक को कुवैत पर हमला करने को उकसाया था और फिर उसे बहाना बनाकर, अमरीका ने खुद इराक पर भयानक युध्द छेड़ा था।

2001 से अमरीका ने 11 सितंबर को न्यू यार्क में हुये आतंकवादी हमलों का इस्तेमाल करके, हमलावर और कब्जाकारी जंग छेड़ने के लिये, ''आतंकवाद पर जंग'' को अपना मुख्य आधार बना रखा है। उसने अफगानिस्तान और इराक पर सैनिक कब्जा करके ईरान को घेर रखा है। मध्य एशिया के जो गणराज्य भूतपूर्व सोवियत संघ के अंश थे, उनमें अमरीका ने अधिक से अधिक हद तक अपने पैर जमा लिये हैं। अब अमरीका दक्षिण अफगानिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में और ज्यादा पैर जमाना चाहता है, ताकि वहां की आजादी पसंद आबादी के विरोध संघर्ष को दबाया जाए। अमरीका मध्य एशिया से लेकर बलूचिस्तान तक तेल सप्लाई के मार्ग को खुद हथियाना चाहता है।

क्षेत्रीय या वैश्विक प्रधानता हासिल करने के लिये विभिन्न बड़ी व उभरने वाली ताकतों के अपने-अपने कार्यक्रम हैं। पश्चिम में जर्मनी से लेकर पूर्व में जापान तक, रूस तथा एशिया में चीन व हिन्दोस्तान – ये सब संस्थापित तथा उभरती हुई बड़ी ताकतें यही चाहती हैं कि अमरीका अलग-अलग राज्यों के आपसी संबंधों में सभी लोकतांत्रिक कायदे-कानूनों को तोड़ दें। वे सब ऐसा इसलिये चाहती हैं क्योंकि उनमें से हरेक ताकत सही समय आने पर अपना साम्राज्यवादी कार्यक्रम लागू करने के लिये इसी तरह के तरीकों का प्रयोग करना चाहती हैं। वे सभी इस या उस ''दुष्ट राज्य'' या ''असफल राज्य'' तथा इस या उस प्रकार के आतंकवाद को निशाना बनाकर अपने हमलावर व कब्जाकारी इरादों को अंजाम देना चाहती हैं।

हिन्दोस्तान के पूंजीपति इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर, इस इलाके में अपने प्रभाव क्षेत्र को विस्तृत करना चाहते हैं। वे पश्चिम और मध्य एशिया से तेल की सप्लाई का अपना मार्ग स्थापित करना चाहते हैं। वे अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को बढ़ावा देने के लिये अमरीका के साथ अपने रणनैतिक गठबंधन का इस्तेमाल करना चाहते हैं। हमारे पूंजीपति मुंबई के आतंकवादी हमलों को बहाना बनाकर पाकिस्तान पर हमला करने की धमकी दे रहे हैं, और पाकिस्तान पर तरह-तरह की शर्तें डाल रहे हैं जिन्हें पूरा करना पाकिस्तान की सरकार के लिये नामुमकिन है।

पाकिस्तान राज्य का काफी लंबे अरसे से अमरीका के साथ रणनैतिक गठबंधन रहा है। पाकिस्तान राज्य ने इस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादी दखलांदाजी को बढ़ाने में बहुत मदद की है। आज पाकिस्तान की जनता अमरीकी प्रधानता का डटकर विरोध कर रही है। पाकिस्तान के शासक बुरी तरह फंसे हुये हैं। एक तरफ जनता के प्रबल साम्राज्यवाद- विरोध जज़बात तो दूसरी तरफ राज्य के संस्थानों, फौज और गुप्तचर संस्थानों में गहरा अमरीकी प्रभाव – इन दोनों के बीच पाकिस्तानी शासक फंसे हुये हैं।

पाकिस्तान के लोग हिन्दोस्तान के साथ शांति में जीना चाहते हैं। वे जंग नहीं चाहते हैं। हिन्दोस्तान में भी लोग जंग का बढ़-चढ़कर विरोध कर रहे हैं, खास तौर पर उन सरहदी राज्यों के लोग, मसलन कश्मीर, पंजाब, राजस्थान व गुजरात के लोग, जिन पर जंग का सबसे भयंकर असर पड़ने वाला है। हमारे दोनों देशों के बीच जंग से हिन्दोस्तानी लोगों या पाकिस्तानी लोगों, किसी को फायदा नहीं है।

हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के मजदूर-किसान भाई-बहन हैं। हम दोनों ही बस्तीवादी विरासत और पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के शिकार हैं। बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और इस उपमहाद्वीप के अन्य देशों के मेहनतकशों का भी यही हाल है। दक्षिण एशिया के लोग यहां की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान चाहते हैं। हम शांति और जान-माल की सुरक्षा चाहते हैं, क्योंकि इसके बगैर, हमारी ज्वलंत आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।

इस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवाद की उपस्थिति को बढ़ाना हमारे यहां के किसी भी देश के लोगों के हित में नहीं है। हिन्दोस्तान और पाकिस्तान का, इस इलाके में अमरीकी साज़िशों या दूसरी साम्राज्यवादी साज़िशों में शामिल होना, हमारे हित में नहीं है। हिन्दोस्तान और पाकिस्तान दोनों, एक दूसरे पर दबाव डालने के लिये, अमरीकी साम्राज्यवाद से मदद मांगते रहे, यह हमारे लोगों के हितों के खिलाफ़ है।

इतिहास हमें दिखाता है कि जिन देशों के शासकों ने अमरीका की साज़िशों में हिस्सा लिया है, उन देशों तथा उनके लोगों का क्या भयानक हश्र हुआ है। इराक और पाकिस्तान इस समय इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इराक अमरीका के कब्जे में है तथा आज अमरीका पाकिस्तान का गला दबाये बैठा है। हिन्दोस्तान के शासक, इतिहास से सबक लेने के लिये, अमरीकी साजिशों में फंसने की ओर दौड़े चले जा रहे हैं, और इस बात की कोई परवाह नहीं कर रहे हैं कि आने वाले समय में इसकी वजह से हमारे देश पर क्या-क्या मुसीबतें आने वाली हैं।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह अमरीकी साम्राज्यवाद ही था जिसने सबसे पहले तरह-तरह के आतंकवादी गिरोहों को समर्थन व हथियार दिये थे। दुष्ट राज्यों की सूची में तो अमरीका सबसे आगे है, जो सारी दुनिया में आतंकवाद को समर्थन देता है और हमलावर तथा कब्जाकारी जंग छेड़ता है। आज उसे घोर आर्थिक संकट और बढ़ते विदेशी कर्जे का सामना करना पड़ रहा है। अत: अमरीका अपनी अर्थव्यवस्था को बचाये रखने के लिये, ज्यादा से ज्यादा हद तक सैन्यीकरण और जंग का सहारा ले रहा है। इस इलाके से अमरीकी साम्राज्यवाद को खदेड़ने के लिये डटकर संघर्ष किये बिना, न तो यहां आतंकवादी हमलों से निजात मिल सकती है और न ही शांति कायम हो सकती है।

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